Monday, 21 December 2015

"कर्म किये जा, फल की चिंता ना कर" सिर्फ समाज में गुलाम और बेगार पैदा करने का सूत्र है!

"कर्म किये जा, फल की चिंता ना कर" की पद्द्ति पर या तो गधे की तरह काम करने वाले चल सकते हैं या फिर कोल्हू का बैल बनके चलने वाले; यानी कि गुलाम या बेगार| और गधे या बैल बनके खटने वालों का कर्म मंडी-फंडी जैसे परजीवी उड़ा ले जाते हैं| मानों या ना मानों, यह सूक्ति इन्होनें अपनी रोजी-रोटी हेतु बना रखी है| और आमजन को इसलिए थमा रखी है ताकि यह किसी की नेक कमाई लूट भी ले जाएँ तो इस लाइन को पकड़ के खुद को दिलासा देते रहो कि वह जो ले गया या गया वो तुम्हारा था ही नहीं, आदि-आदि|

मतलब लूट-हड़प के ले जाए गए के लिए कोई आवाज मत उठाओ, बस एक यही लाइन पकड़े बैठे रहो कि वो तुम्हारा था ही नहीं| तो भाई फिर इतनी बड़ी महाभारत क्यों करवा दी? दुर्योधन, पांडवों का राजपाट हड़प ले गया था तो पांडवों को यही दिलासा दे के बैठा देते कि "वो जो ले गया वो तुम्हारा था ही नहीं, उसके लिए व्यथित मत होवो, बस कर्म करते रहो|"

सच तो यह है कि बिना अधिकार क्षेत्र सुनिश्चित किये कोई कर्म हो ही नहीं सकता| और यही वो "अधिकार क्षेत्र" का मसला है जो इस सूत्र के रचियता अपने हाथ में रखना चाहते हैं| यह चाहते हैं कि आमजन बस कर्म करो, उसको अधिकार क्षेत्र हमें दे दो, हम निर्धारित करेंगे कि उसका फल कौन भोगेगा और कौन भुगतेगा| सीधा सा इशारा है भोगना होगा तो हम और भुगतना होगा तो आमजन|

If to say in English, this line leads human to become "Subjective" i.e. materialistic instead of reaching true wisdom of being "Objective" i.e. complete.

तुच्छ से तुच्छ ज्ञान का माँ-बाप भी अपने बच्चे को फ़ैल होने पे आगे बढ़ने के लिए दृढ करता है, पीछे हटने को नहीं| तो क्या इसका मतलब माँ-बाप बच्चे को फ़ैल होने पे आगे के लिए प्रेरित ही ना करें? यह तो तर्कसंगत नहीं|

इन सबपे विजय पाने का एक ही सूत्र है, बुद्ध पद्द्ति का "विपसना मैडिटेशन" करो, खुद को जानों, संसार को जानों और अपनी राह को सुदृढ़ करो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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