Thursday, 3 December 2015

खप्परभरणा, जा मरखप!

हरयाणा में खप्परभरणा अक्सर उसको कहा जाता है जो बिलकुल ही बेख़ौफ़ और दुर्दांत किस्म का बालक हो| पुराने जमाने में खाप यौद्धेय जैसे दुश्मन की लाशों के खप्पर भर दिया करते थे; ठीक वैसे ही ऐसे लक्षण वाले बालक को खप्परभरणा और बालिका को खप्परभरणी कहा जाता है|

किस अनाड़ी बालक को बार-बार मनाने पर भी जब वो ना माने तो बड़े अक्सर झल्ला के उसको कहते हैं कि 'जा मरखप' यानी तू मरना जरूर परन्तु खाप वालों की तरह नाम कमाते हुए|

कितनी शानदार शब्दावली रही है हरयाणवी, जिनके अंदर आपको गुस्से में कोसा भी जाता है तो इस तरीके से कि आपका गुस्सा-क्रोध-जोश ऐसी दिशा में जा के लगे कि आप महानता ही कमाओ|

नादान हैं वो लोग जो हरयाणवी भाषा को भद्दी या लठैत की भाषा कहते हैं| इनके शब्दों के अर्थ और इनका मर्म जानो तो इस भाषा से स्वत: ही प्यार हो जाए| और मुझे तो फिर होना लाजिमी ही है, क्योंकि हरयाणवी भाषा के असीम ज्ञानकोष मेरी दादी से इन शब्दों के शब्दार्थ जानते हुए बड़ा हुआ हूँ|

जाटनी का जाया हूँ, "दादा खेड़ा" धर्म निभाऊंगा।
ना मूर्ती पूजनी ना पाखंड धारणे, लोकतंत्र आगे बढ़ाऊंगा||
गॉड गोकुला, बाबा धुला बाल्मीकि संग सूरजमल स्मारक बनाऊँगा।
वीर प्रसूता महारानी किशोरी संग भागीरथी और रामप्यारी गुजरी का गूँज उठा नारा है,
कहो गर्व से हम खप्परभरणे हैँ और समस्त खापलैंड हरयाणा है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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