चौधरी छोटुराम जी की सोच व संघर्ष चौधरी
छोटुराम जी की सोच व संघर्ष:
1) औरतों पर अत्याचार बंद करें| चौधरी छोटूराम
ने औरतों पर अत्याचार बंद करवाने के लिए 'जेण्डर इक्विटी एक्ट-1942
बनाकर उन्हें
पुरुषों के समान अधिकार दिलाए। पंचायती राज स्थापित कर औरतों को 50 प्रतिशत सीटों पर भागीदारी दी। विधानसभा में 20
प्रतिशत सीटें
प्रथम बार 1943
के चुनाव में
तथा पांच वर्ष बाद 50 प्रतिशत सीटें देने का प्रावधान किया। औरतों को शिक्षित करने के लिए नारी-शिक्षा को
अनिवार्य करने का प्रस्ताव पास कराया। परन्तु यह काम इसलिए अधूरे रह गए, क्योंकि चौधरी छोटूराम का देहान्त 1945 में ही हो गया। और विरला समाज
सुधारक इस दुनिया से विदा हो गया।
2) मुलतान जिले (हाल पाकिस्तान) में दलितों को कृषि भूमि देना दीनबंधू सर
छोटूराम का दीनबन्धू नामकरण दलितों द्वारा किया गया,
क्योंकि इन्होंने कहा था
कि दलित शब्द समाप्त करना जरूरी है नहीं तो शोषित वर्ग समाज में बराबरी पर नहीं आ सकता। 13 अपे्रल 1938 को जब ये कृषिमंत्री थे तब भूमिहीन दलितों को खाली पड़ी सरकारी कृषि भूमि 4 लाख 54 हजार 625
एकड़ (किले) जो
मुलतान जिले में थी भूमिहीन दलितों को रु. 3/- (तीन) प्रति एकड़ जो 12
वर्षों में बिना
ब्याज,
प्रतिवर्ष चार
आने किश्तों पर चुकाने की शर्तों सहित अलॉट कर
दलितों को भू-स्वामी बनाया। दलितों ने सर छोटूराम को दीनबन्धू का नाम देकर इन्हें हाथी पर चढ़ा कर ढोल-नगाड़ों से जुलूस निकालकर जलसा किया। ऐसे
पड़ा था इनका नाम दीनबन्धू।
3) छुआछूत बुराई कानून राज्य में 1 जुलाई 1940 को सर छोटूराम ने यह कानून बनाकर
सख्ती से लागू कर दलित शब्द मिटाने का वचन निभाया। एक सरकुलर जारी किया गया, जिसके अनुसार सारे पब्लिक कुएं सारी जातियों के लिए खोल दिए गए। इससे दलितों
को इंसानी हकूक कानूनी तौर पर मिल गए, जिससे वह सदियों से रिवाज और जाति-पाति के चक्करों से वंचित कर दिए गए थे।
जमींदारा पार्टी का यह फैसला लागू होने पर मोठ गांव में स्वर्णों ने दलितों को
कुओं पर चढऩे से रोकने पर खुद चौ. छोटूराम ने वहां जाकर समझाइश कर दलितों को कुएं पर चढ़ाकर पानी भरवाकर घड़े दलित महिलाओं के सिर पर चकवाकर उनका
सम्मान बढ़ाया।
4) इसके अतिरिक्त सरकारी हुक्म जारी कर दिए कि
कोई ऑफिसर किसी दलित या पिछड़ी जाति के
आदमी से किसी प्रकार की 'बेगार’ नहीं लेगा। सरकारी दौरे पर दलित से अपना सामान नहीं उठवाएगा। हिदायत दी कि बेगार लेना कानूनी जुर्म है। इन्सान की बेकदरी है।
5) मुस्लिम समाज से भाईचारा सर छोटूराम ने
नेशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी वर्ष 1923 में बनाई, परन्तु सर फजली हुसैन जिन्होंने इंग्लैण्ड से वकालत की थी को इसका अध्यक्ष बनाया। जब जमींदारा पार्टी वर्ष 1935 में सत्ता में आई तब सर सिकन्दर हयात खां एक मुस्लिम को वजीरे आला (मुख्यमंत्री) बनाया। सर सिकन्दर
हयात खां लन्दन स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से
पढ़े विद्वान थे जो उस समय रिजर्व बैंक - दिल्ली में इसके गवर्नर थे। सर सिकन्दर हयात खां के देहान्त
के बाद इन्होंने उसके पुत्र सर खीजर हयात खां को वजीरे आला बनाया। सन् 1945 में चौधरी छोटूराम के देहान्त के बाद सर खीजर हयात खां को इतना सदमा लगा कि वह देश छोड़कर इंग्लैण्ड यह कहते हुए चला गया कि जब चाचा ही नहीं रहे तो
अब शासन किसके सहारे करूंगा।
6) राजपुताना में कुम्हारों पर लगी 'चाक लाग’ को समाप्त कराया दीनबन्धु सर छोटूराम ने राजपुताने के राजाओं तथा
ठिकानेदारों द्वारा कुम्हारों के घड़े व मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने पर 'चाक लाग’
लगा रखी थी जो
रु. 5/-
वार्षिक अदा
करनी पड़ती थी। राजाओं का कहना था कि जिस मिट्टी से कुम्हार बर्तन व घड़े बनाकर बेचते हैं वह मिट्टी
राजाओं की जमीनकी है,
इसलिए यह लाग
देनी पड़ेगी। सर छोटूराम ने 5 जुलाई 1941
को बीकानेर में
कुम्हारों को इक्ट्ठा कर महाराजा गंगासिंह से बातचीत कर
इन्हें इस 'चाक लाग’ से मुक्ति दिलाई। कुम्हारों ने खुश होकर सर
छोटूराम को एक सुन्दर 'सुराही’ जिसमें पानी ठण्डा रहता हंै भेंटकर सम्मान किया। सर छोटूराम ने मरते दम तक वह
सुराही अपने पास रखी।
7) 'कतरन लाग’ से नाइयों तथा नायकों को मुक्तिनायक तथा बावरी जातियां भेड़-बकरियां पालती थी। भेड़-बकरियों
के बाल तथा ऊन कतरने पर ठिकानों ने 'कतरन लाग’ लगा रखी थी। इसी प्रकार नाइयों द्वारा बाल काटने का धन्धा करने पर इस कतरन लाग का भुगतान करना
पड़ता था। सर छोटूराम ने 26
जुलाई 1941 को मारवाड़ के गांव रतनकुडिय़ा तथा पहाड़सर
में भेड़-बकरी पालकों को इक्ट्ठा कर 'कतरन लाग’ के विरूद्ध प्रदर्शन कर इस 'कतरन लाग’ से इन्हें मुक्ति दिलाई।
8) 'बुनकर लाग’ का उन्मूलन कर बुनकरों को राहतबुनकर जो अधिकतर जुलाहे मेघवाल समाज से होते थे जो डेवटी की
रजाई का कपड़ा,
खेस, चादर तथा मोटा कपड़ा रोजी-रोटी कमाने के लिए बुनकर बेचते
थे। सूत गृहणियां कातकर उन्हें देती थी
और वे उस सूत से उनकी इच्छानुसार वस्तुएं बुनकर दे देते थे। शेखावाटी तथा मारवाड़ और विशेषतौर पर जयपुर, पाली तथा बालोतरा में यह काम जोरों पर था। ठिकानेदारों न इस काम पर 'बुनकर लाग’ रखा रखी थी। जिसका विरोध 4 वर्षों तक सन् 1937
से 1941 तक सर छोटूराम ने अपनी अगुवाई में करके समाप्त कराया। बालोतरा में 9 अगस्त 1941 को ठिकानेदारों ने जुलाहों के घरों को लाग नहीं देने पर आग लगा दी जिससे सारा
कपड़ा जल गया। सर छोटूराम वहां गए और 8 दिन भूख हड़ताल की तब जाकर जोधपुर के राजा का
सन्देश आया कि यह लाग समाप्त कर दी गई है। सर छोटूराम ने 28 मेघवाल परिवारों को नुकसान की भरपाई के लिए
रु. 1500/-
प्रत्येक परिवार
को राजा से दिलवाने की मांग पर अड़ गए। तीन दिन बाद राजा ने प्रत्येक परिवार को
रु. 1500/-
देने की घोषणा
की। ऐसे संघर्ष सर छोटूराम ने मंत्री पद पर रहते हुए किसानों और दलितों की भलाई के
लिए किए जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
9) जागीरदारी प्रथा - लगान वसूली व बेगारों में निर्दयता रियासती काल में
ठिकानें जागीरदारों के अधीन थे। जागीरदार उनसे अनेक प्रकार की श्रमसाध्य और जानलेवा बेगारें लेते थे। ये जागीरदार बड़े ही निरंकुश और अत्यन्त मनमानी
करने वाले माने जाते थे। जागीरदार की
मर्जी ही कानून था। यदि किसान से लगान वसूली नहीं होती तो किसान
को पकड़कर ठिकाने के गढ़ या हवेली में लाया जाता और उसके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार
किया जाता था,
जैसे - काठ में
डाल देना,
भूखा रखना आदि
दण्ड - उपाय, जो एक जघन्य अपराधी के खिलाफ भी प्रयोग में नहीं लिए जाते थे। गरीब किसान के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक किन्तु
आक्रोश पैदा करने वाली स्थिति थी। इन सजाओं की कोई सीमा न थी, कोई कानून न था,
कोई व्यवस्था न
थी और कोई विधि-विधान भी न था। खड़ी खेती कटवा लेना, पशु खुलवाकर हांक ले जाना, घर-गृहस्थी के बर्तन, कपड़े लते उठा लेना और किसान की मुश्कें कसवा
देना साधारण बात थी। दाढ़ी-मूछें उखाड़ लेना, भूमि से बेदखल कर देना कोई बड़ी बात न थी। किसान तथा उसके परिजनों को गोली का निशाना तक
बनाया जाने लगा था। जागीरदार की
हवेली में हाथ का पंखा दलितों से खिंचवाया जाता था और थोड़ी चूक करने पर अपशब्द बोले जाते थे।
10) सामाजिक दमनचक्र सामाजिक दमन का
चक्र कितना गम्भीर था, इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि
कुछ पिछड़ी जातियों के लोग वहां के सवर्ण जातियों के
लोगों के सामने चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे। उनके सामने पांचों कपड़े नहीं पहन सकते थे। यह लोग किसी तीर्थ
में स्नान भी नहीं कर सकते थे। जागीरदार के घर बेटी पैदा हो गई तो एक मण अनाज की लाग किसान पर थी जिसे 'बाई जामती की लाग’ कहते थे और लड़की की शादी होने तक हर साल
गाजर,
मूली, शकरकन्द की एक क्यारी किसान को देनी पड़ती
थी। नाच-गानों का मेहनताना 5 सेर अनाज ढाढ़ी का व 5 सेर भगतण को किसान को ही देना पड़ता था।
11) किसान की जाति क्या है चौधरी छोटूराम
ने कहा था कि किसान की जाति उसकी
पार्टी है। आज से जो किसान होगा चाहे वह दलित हो या सवर्ण, अगर वह जमींदारा पार्टी से जुड़ा है तो वह जमींदार कहा जाएगा। वह जमींदारा पार्टी का सच्चा सिपाही और जमींदार होगा।
12) युवा वर्ग व नारियों को उचित प्रतिनिधित्व चौधरी छोटूराम
ने युवावर्ग तथा महिलाओं को राजनीति में उचित स्थान दिया। वे कहते थे कि युवावर्ग तथा
महिलाओं के बगैर राजनीति सारहीन है। प्रत्येक चुनावी वर्ष में उम्मीदवारों का बदलाव जरूरी है ताकि अन्य उम्मीदवारों को आने का मौका मिले। बार-बार एक
ही व्यक्ति या एक ही परिवार के
व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाने से समाज में आक्रोश पैदा हो जाता है। जिस प्रकार फसलें फेर-बदल कर बोनी चाहिए, राजनीति भी इस सिद्धान्त से अछूती नहीं। योग्य तथा योग्यता के
सिद्धान्त के आधार पर उम्मीदवारी तय की जाए। पढ़े-लिखे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाए।
13) बदलाव करना नितान्त आवश्यक है। स्टूडेन्ट्स
कान्फे्रंस सन् 1934
के दिसम्बर
महीने में 'अखिल भारतीय जाट स्टूडेन्ट्स कान्फे्रंस’ का आयोजन मास्टर रतनसिंह के संयोजकता में पिलानी कस्बे में किया गया। कॉलेज के विद्यार्थी तथा प्रोफसरों ने भारी
परिश्रम किया। कॉन्फे्रंस का प्रधान सर छोटूराम को बनाया गया व कुंवर नेतराम सिंह स्वागताध्यक्ष थे। सर छोटूराम का
जुलूस हाथी परसज-धज के निकला जिसे देखने को सारा शहर उमड़ पड़ा। चौधरी रामसिंह, ठाकुर झम्मनसिंह, ठाकुर देशराज,
सरदार हरलाल
सिंह आदि गणमान्य व्यक्ति भी पधारे। विभिन्न प्रान्तों एवं देहातों से बड़ी तादाद में किसान शरीक
हुए थे। इस सम्मेलन में युवाओं ने नई जान फूंक दी। सर छोटूराम ने उस वक्त यातायात के साधन ना होते हुए भी जगह-जगह घूमकर किसानों में जागृति पैदा की
जिसे यह सामाज कभी भूल नहीं सकेगा। आज भी किसानी और किसान को बचाने के लिए युवा वर्ग हिचकोले ले
रहा है। अब वह दिन दूर नहीं कि किसान क्रांति आकर रहेगी।
No comments:
Post a Comment