Tuesday, 12 January 2016

मीडिया वालो रहम करो 'हरयाणा' शब्द पर!

उत्तर प्रदेश में 2001 में लिंगानुपात जहां 916 था, वहां अब 2011 में 902, इसी तरह बिहार में 2001 में 942 जो घटकर 2011 में 935, मध्यप्रदेश में 2001 में 932 जो 2011 में घटकर 918 हो गया है| लेकिन मीडिया नें इन आकड़ों का कभी भी विश्लेषण करके नहीं दिखाया|

हरयाणा में 2011 में लिंगानुपात 879 है, जो कि 2001 में 861 था। हरियाणा में 2011 के जनगणना के अनुसार 0-6 वर्ष बच्चों का लिंगानुपात 1000 लड़कों पर सिर्फ 834 लड़कियाँ हैं| जो एक चिंता का विषय है| लेकिन हम यह क्यूँ भूल जाते हैं कि सन 2001 में यह आंकड़ा सिर्फ 819 था जो कि घटने के बजाय बढ़ा है; वो भी तब जब यहाँ सन 47 से ले के अब तक लगातार ऐसे सम्प्रदायों का शरणार्थी आ के बसा है जिनके यहाँ 24 लड़कों पर 9 लड़कियाँ होने की औसत रही है| वो भी तब जब पूर्वोत्तर से आने वाला 70% शरणार्थी बिना बीवी-बच्चों के आता है, जिसमें वो अपना वोट तो हरयाणा में बना लेता है और बाकी परिवार का अपने मूल राज्य में| इनमें से औसतन 80% को औसतन दस साल लगते हैं अपना परिवार यहां लाने में, अन्यथा तब तक उसके परिवार के नाम पर हरयाणा में सिर्फ उसी का वोट और जनगणना काउंट होती है।

मीडिया ट्रायल में यह भी खूब दिखाया जाता हैं कि भूर्ण हत्या कि वजह से हरियाणा में 40.3% लोग अविवाहित हैं| लेकिन मीडिया नें यह कभी नहीं बतलाया कि क्या कारण है कि पूरे भारत में 49.8%, गुजरात में 40.98%, नागालैंड में 55.83%, अरुणांचल में 53.33%, जम्मू-कश्मीर में 51.64%, मेघालय में 47.96%, आसाम में 47.09% मणिपुर में 47.96%, लोग अविवाहित क्यों हैं?

किसी अज्ञात और अनिश्चित भय से पीड़ित यह मीडिया अगर यही बक्वासें मुंबई में बैठ महाराष्ट्र के बारे काट रहा होता तो अब तक तो मुम्बईया पेशवा-मराठाओं ने इनको पीट-पीट के इनकी जय बुलवा दी होती। और यह फिर भी कहते हैं कि हरयाणवी उददंड होते हैं| पता नहीं उस दिन क्या होगा जिस दिन इनकी इन बकवासों से परेशान हो हरयाणवी वास्तव में अपनी उददण्डता पर उतर आये तो; क्योंकि इतिहास गवाह है कि मराठी-पेशवा तो सिर्फ उनके यहां से मार कर भगाते हैं, जबकि हरयाणवी तो इससे भी आगे जाते हुए घर तक गया कि नहीं इस तक की भी तसल्ली किया करते हैं। इसीलिए तो हम अपने गुस्से से डरते हैं और यह वाहियात लोग हैं कि इस बात को समझते ही नहीं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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