मैंने भी कह दिया उसको उस दिन, "मखा ओ सुन जाट की अक्ल घुटनों में बताने वाले"! जाट के बच्चे को कोई खरोंच भी मार दे तो जाट अगले ही पल अगले का चाम उतार दे और मखा तुम्हारे तो वंश के वंश 21-21 बार मारे बताये और तुमको फिर भी दर्द नहीं, वरन उन्हीं की स्तुति और भक्ति करते नहीं थकते| मखा मुझे हंसा मत, पहले अपनी अक्ल ढूंढ कि तेरी कहाँ खोई है| इन द्वारा मारे अपने उन पुरखों के लिए कोई दर्द या सम्मान नहीं जिसमें, वो तू मुझे बताएगा कि मेरी अक्ल कहाँ है? जिनकी तुम स्तुति और भक्ति करते हो उनसे हम "जाट जी" कहलवाते और लिखवाते आये हैं| और इतनी अक्ल भतेरी हमनैं| कोई जवाब ना सूझ कहने लगा कि क्षत्रिय तो तुम भी हो, जो 21 बार मारे थे वो तुम्हारे भी तो थे| मैंने पड़ते ही जवाब दिया मखा हमें तो शूद्र बतावैं, हम इनके लिए क्षत्रिय कब से हो गए? हाँ वो अलग बात है कि हमारे शौर्य का डंका बिना इनके तमगों और टैगों के यूरोटनल से ले चाईना तक बजता आया और बजता है| और मखा इसी वजह से तुमको जाटों का तुम्हारे लिए भाईचारा ना कभी समझ आया और ना आएगा| - जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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