महाराजा भारतेंदु जवाहर सिंह के नेतृत्व में जाटों ने जब दूसरी बार दिल्ली
तोड़ी थी, यह तब की निशानी है| सलंगित चित्र देखें| इसके अलावा चित्तौड़गढ़
का "अष्टधातु" द्वार भी जाट साथ ले आये थे, जो कि आज भी भरतपुर के "दिल्ली
द्वार" में जड़ित है|
एक राज की बात बताऊँ जब जाटों को दिल्ली में सुस्ताते हुए महिनाभर हो गया था तो जाटों की मानमनुहार करके जाटों से दिल्ली को वापिस मुग़लों को दिलवाने वाले उसी विचारधारा के लोग थे जो आजकल तथाकथित राष्ट्रवाद का झंडा उठाये फिर रहे हैं| तब इन्होनें जाटों के गुस्से को शांत करने के लिए मुगल राजकुमारी को भी जाट भारतेंदु से ब्याहने का ऑफर मुग़लों से रखवाया था, लेकिन भारतेंदु ठहरे अपने सिद्धांतों के पक्के, इसलिए अपने फ्रेंच सेनापति व् मित्र सप्रू से उस मुग़ल राजकुमारी का ब्याह करवा दिया था| इन्होनें यह कहते हुए दिल्ली मुग़लों को वापिस दिलवाई थी कि "दिल्ली तो जाटों की बहु है!" जब चाहे कब्जा लें|
जाट को नकारात्मक छवि में दिखाने हेतु इस मति के लोग आज भी यदकदा दिल्ली के तोड़ने के इन वाक्यों को "जाटगर्दी" व् "जाटों की लूट" का नाम देते हैं| बताओ चित्तौड़गढ़ जैसी रियासत का मान-सम्मान बचा लाना, मुग़लों को हरा देना भी 'लूट' कैसे कही जा सकती है, यह तो 'विजय' कही जानी चाहिए, नहीं?
ये जाट गुस्से या जिद्द में आने पे वाकई में पौराणिक चरित्र शिवजी भोले जैसे होते हैं| औरंगजेब के वक्त में तो इन्होनें अकबर की कब्र खोद के उसकी हड्डियों की चिता बना के ही फूंक डाली थी| और ताजमहल, बताओ इतनी खूबसूरत, ऐतिहासिक और यादगार जगह को अपनी भैंसों के चारा रखने हेतु, उसमें तूड़ा-भूसा भर दिया था| लेकिन यह तथाकथित राष्ट्रवादी सोच वाले 'जाट जी, जाट जी' करते हुए फिर आ धमकते थे, समझौते करवा इन जगहों को खाली करवाने को|
ऐसे ही जाट अंग्रेजों के साथ करते थे, क्या भरतपुर, क्या लाहौर और क्या बल्ल्भगढ़, ऐसी रियासतें थी जिन्होनें अंग्रेजों को तेरह-तेरह बार हराया और अजेय रहे|
फिर एक सर छोटूराम हुए| तब के यूनाइटेड पंजाब में अंग्रेज बोले कि गेहूं का एमएसपी (MSP) सिर्फ 6 रूपये प्रतिक्विंटल देंगे| सर छोटूराम अड़ गए कि 10 लूंगा| अंग्रेज नहीं माने तो सर छोटूराम बोले कि देखो मेरे किसान जमीन की 'माल-दरखास' यानि टैक्स नियमित रूप से भर रहे हैं, अगर गेहूं का एमएसपी 10 नहीं किया गया तो सब बंद करवा दूंगा और अनाज की बिक्री भी रुकवा दूंगा| तब अंग्रेज बोले कि ठीक है 10 ले लो| परन्तु जब तक अंग्रेज 10 पे माने, तब तक सर छोटूराम किसानों की रैली कर चुके थे| तो उधर आंदोलन स्थल से ही बोले कि अब मामला मेरे हाथ में नहीं, अब तो जो किसान तय करेंगे वही देना होगा| इस पर बताते हैं कि किसान बोले कि 11 का शगुन शुभ होता है, इसलिए 10 की बजाये 11 दो, और अंग्रेजों को देना पड़ा था|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
एक राज की बात बताऊँ जब जाटों को दिल्ली में सुस्ताते हुए महिनाभर हो गया था तो जाटों की मानमनुहार करके जाटों से दिल्ली को वापिस मुग़लों को दिलवाने वाले उसी विचारधारा के लोग थे जो आजकल तथाकथित राष्ट्रवाद का झंडा उठाये फिर रहे हैं| तब इन्होनें जाटों के गुस्से को शांत करने के लिए मुगल राजकुमारी को भी जाट भारतेंदु से ब्याहने का ऑफर मुग़लों से रखवाया था, लेकिन भारतेंदु ठहरे अपने सिद्धांतों के पक्के, इसलिए अपने फ्रेंच सेनापति व् मित्र सप्रू से उस मुग़ल राजकुमारी का ब्याह करवा दिया था| इन्होनें यह कहते हुए दिल्ली मुग़लों को वापिस दिलवाई थी कि "दिल्ली तो जाटों की बहु है!" जब चाहे कब्जा लें|
जाट को नकारात्मक छवि में दिखाने हेतु इस मति के लोग आज भी यदकदा दिल्ली के तोड़ने के इन वाक्यों को "जाटगर्दी" व् "जाटों की लूट" का नाम देते हैं| बताओ चित्तौड़गढ़ जैसी रियासत का मान-सम्मान बचा लाना, मुग़लों को हरा देना भी 'लूट' कैसे कही जा सकती है, यह तो 'विजय' कही जानी चाहिए, नहीं?
ये जाट गुस्से या जिद्द में आने पे वाकई में पौराणिक चरित्र शिवजी भोले जैसे होते हैं| औरंगजेब के वक्त में तो इन्होनें अकबर की कब्र खोद के उसकी हड्डियों की चिता बना के ही फूंक डाली थी| और ताजमहल, बताओ इतनी खूबसूरत, ऐतिहासिक और यादगार जगह को अपनी भैंसों के चारा रखने हेतु, उसमें तूड़ा-भूसा भर दिया था| लेकिन यह तथाकथित राष्ट्रवादी सोच वाले 'जाट जी, जाट जी' करते हुए फिर आ धमकते थे, समझौते करवा इन जगहों को खाली करवाने को|
ऐसे ही जाट अंग्रेजों के साथ करते थे, क्या भरतपुर, क्या लाहौर और क्या बल्ल्भगढ़, ऐसी रियासतें थी जिन्होनें अंग्रेजों को तेरह-तेरह बार हराया और अजेय रहे|
फिर एक सर छोटूराम हुए| तब के यूनाइटेड पंजाब में अंग्रेज बोले कि गेहूं का एमएसपी (MSP) सिर्फ 6 रूपये प्रतिक्विंटल देंगे| सर छोटूराम अड़ गए कि 10 लूंगा| अंग्रेज नहीं माने तो सर छोटूराम बोले कि देखो मेरे किसान जमीन की 'माल-दरखास' यानि टैक्स नियमित रूप से भर रहे हैं, अगर गेहूं का एमएसपी 10 नहीं किया गया तो सब बंद करवा दूंगा और अनाज की बिक्री भी रुकवा दूंगा| तब अंग्रेज बोले कि ठीक है 10 ले लो| परन्तु जब तक अंग्रेज 10 पे माने, तब तक सर छोटूराम किसानों की रैली कर चुके थे| तो उधर आंदोलन स्थल से ही बोले कि अब मामला मेरे हाथ में नहीं, अब तो जो किसान तय करेंगे वही देना होगा| इस पर बताते हैं कि किसान बोले कि 11 का शगुन शुभ होता है, इसलिए 10 की बजाये 11 दो, और अंग्रेजों को देना पड़ा था|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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