Friday, 29 July 2016

"साम्मण उतरया - म्हारे हो आंगणा"


टेक: 'बादळ उठ्या री सखी, मेरे सांसरे की ओड़'

साम्मण उतरया - म्हारे हो आंगणा, घटा मतवाळी छा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
बादळ उठें उमडें-घुमडें, रुक्खां कै गळ-मठ्ठे घालैं,
प्यछ्वा के झ्यकोळए चालैं, ओळए-बोळए-सोळए चालैं|
मोराँ के पिकोहे गूंजें, स्यमाणे अर अम्बर झूमैं,
नाचण के हिलोरें पड़ें, गात्तां म्ह डयठोरे डटैं।।
सुवासण ज्यूँ हरियल खेती, जावै चढ़ी-ए-चढ़ी|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||

कोथळीयाँ के लारें पडैं, शक्कर और पारे घूटें,
द्य्लां म्ह हुलारे फुटटें, भाहणां के रे हिया छूटें|
पींघां की च्यरड़-म्यरड़, सास्सुवां के नाक टूटें,
माँ के जाए कद आये न्यूं, नैनां म्ह तें अश्रु फूटें||
मुखड़ा द्य्खा दे रे बीरा, बाट मैं जोह करड़ी रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||

बाग्गां से फूल जडूं, फून्द्याँ आळी पोंह्ची बनूं,
छ्यांट-छ्यांट रंग धरूं, बीरे की कलाई भरूँ|
मूळ तें हो सूद प्यारा, भतिज्याँ के लाड लड़ूं,
माँ-बाप्पां से भाई हो सैं, किते छिक्कें किते टांड धरुं||
हे री ना चहिये मैंने चांदी-सोना, बस माँ के ज्यायां की हो उम्र बड़ी।
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||

नगरां के प्यटारे हो सें, भक्ति के भी लारे हों सें,
दादे-खेड़े के द्वारे धोकूं, जो पुरख्यां के मान हो सैं।
सासु-पीतस नैं श्याल उढ़ाउं, ससुर-पितसरे की खेस्सी ल्याऊं,
फुल्ले-भगत नयुँ-ए-हांडै रूळदा, तैने तो बस ठोसयां जळाऊँ।
जहर हो पीणा, भोळे जिह्सा जीणा, घड़ी बख्त की गा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
साम्मण उतरया - म्हारे हो आंगणा, घटा मतवाळी छा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||

जय यौद्धेय!

लेखक: फूल कुमार मलिक!

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