Tuesday, 6 September 2016

मुझे यह जाति और वर्ण की बातें करना कब से आ गया?

LKG से 3rd standard तक डेस्क मिले, फिर चौथी से सातवीं तक तप्पड़ पर बैठते थे| आठवीं में जा के फिर डेस्क मिले| एक डेस्क पे तीन बैठते थे| आठवीं-नौवीं-दसवीं तीनों क्लासों में, मैं एक जाट, एक दोस्त सुनार, दूसरा दोस्त चमार हम तीनों तीन साल एक डेस्क पर बैठे| कितनी ही बार ना सिर्फ इन दोनों के घर बल्कि कभी बनिए दोस्तों के घर, कभी अरोड़ा/खत्री दोस्तों के घर, कभी ब्राह्मण दोस्तों के घर, आंटीज ने बड़े प्यार से खाने खिलाये; कभी यह नहीं सोचा कि मैं ऊँची जाति के यहां खा रहा हूँ या नीची जाति के यहां; कभी अहसास ही नहीं हुआ कि सवर्ण-दलित, एससी/एसटी/ओबीसी, छूत-अछूत, ऊंच-नीच, गरीब-पिछड़ा क्या होता है|

यहां तक कि मेरे घर में काम करने वाले सीरियों (हरयाणा से बाहर वालों की भाषा में नौकर, हमारी हरयाणवी संस्कृति में नौकर को पार्टनर यानि सीरी बोलते हैं, you know the working culture of google, उन्होंने हमारे यहां से ही adopt किया है) जो कि अक्सर दलित जातियां जैसे कि धानक-चमार-हेड़ी (कश्यप राजपूत) व् इनके अलावा रोड़ आदि होते थे और आज भी हैं; उनके घरों में जा-जा के भी खूब खाने खाये| घर-कारोबार के औजार कभी खातियों के यहां तो कभी मुस्लिम लुहारों के यहां, मिटटी के बर्तन कभी मुस्लिम कुम्हारों के यहां, गाँव में बड़ी ही आदरणीय डूमणी (मिरासन) दादी सुरजे की माँ होती थी, उनके यहां बनने वाली सिलबट्टे की चटनी का स्वाद तो जैसे आज भी जिह्वा पे धरा है; सब कुछ तो इतना विहंगम, मनमोहक, बलिहारी होता था|

परन्तु जब से मोदी ने पीएम कैंडिडेट के भाषण देने शुरू किये, जैसे सब कुछ ढकता सा चला गया| मित्रों मैं पिछड़ा हूँ, मैं चाय बेच के बड़ा हुआ हूँ, मित्रों मैं वंचित वर्ग से आता हूँ; कान पका डाले और जातिवाद और वर्णवाद के जहर का प्र्थमया शरीर में संचार सा होता दिखा| फिर लगा कि अपनी लाचारी और गरीबी बता रहा है, कोई बात नहीं|

पर फिर आये यह हरयाणा की सत्ता में| पिछले दो साल से बीजेपी और आरएसएस ने ऐसा जाट बनाम नॉन-जाट और 35 बनाम 1 चलाया; कि यह भी अहसास हो गया कि मैं जाट भी हूँ, जाट| भाई हुआ होगा आपका आर्थिक या किसी और तरीके का "सबका साथ, सबका विकास" वाला विकास, मेरा तो सिर्फ इतना विकास हुआ कि मोदी-बीजेपी-आरएसएस ने मिलके ठीक वैसे ही मेरी सोई हुई आइडेंटिटी "जाट" को ठीक उसी तरीके से याद दिला दिया, जैसे माइथोलॉजी की पुस्तक यानि काल्पनिक शक्ति से लिखी गई रचना रामायण के चरित्र जाम्बवन्त, हनुमान को समुन्दर पार करने के वक्त उनको उनकी सोई हुई शक्तियों बारे बताते हैं|

मुझे ज्यादा पता नहीं है कि मुझे इस मेरी "जाट" आइडेंटिटी के साथ क्या करना है, परन्तु फिर भी कोशिश यही कर रहा हूँ कि अपने उसी स्टाइल में मगन रहूँ, जैसे इन जातिवाद और वर्णवाद से ग्रसित मानसकिता वालों की सरकार आने से पहले रहता था|

और मित्रो रहना भी इसी तरीके से, इन मोदी-बीजेपी-आरएसएस के आपको आइसोलेट करने के मनसूबों को मत कामयाब होने देना| फिर भले ही इस नए बदले परिवेश में बेशक कोई राजकुमार सैनी आपको रावण बोले, भले कोई अश्वनी अरोड़ा आपके खिलाफ 35 बिरादरी को लामबंद करता फिरे, भले कोई मोदी आप पर दूसरा जलियावालां काण्ड (फरवरी माह का जाटों पे हुआ गोलीकांड) करवाये, भले कोई खट्टर हरयाणवियों को कन्धे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर बताये (वैसे यह खट्टर महाशय ने हरयाणवियों की कन्धे से नीचे की मजबूती का टेस्ट कब किया, नामालूम)।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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