Wednesday, 12 October 2016

"युद्ध से बुद्ध" की राह आरएसएस वालों से क्यों नहीं प्रवणा देते, पी.एम. साहब?

गए महीनों तक तो सिर्फ अंतराष्ट्रीय पट्टल जैसे कि लन्दन-चीन-जापान जैसी जगहों के दौरों में ही पीएम के भाषण में "भारत बुद्ध का देश है" का जिक्र आता था; अब तो हालात यह हो गए हैं कि कोझिकोड और मथुरा की देशी रैलियों में भी जनाब के मुखमंडल पर "बुद्ध" विराजमान हैं। जबकि इनकी पैरेंट आर्गेनाइजेशन आरएसएस बुद्ध को अपने आस-पास, बाहर-भीतर कहीं भी फटकने तक नहीं देती।

राम, लक्ष्मण, कृष्ण सब बुद्ध के आगे फीके पड़ चुके हैं, हर तरफ बुद्ध-ही-बुद्ध। माफ़ करना परन्तु, आपके जुमले आपकी नौटंकियाँ कहाँ जा कर रुकेंगी; पीएम महोदय? यह तो शुक्र है कि हॉलीवुड में आपके जितनी मारी गई गपेड़ों पर फ़िल्में नहीं बनती, वर्ना उधर से संवाद-डिलीवरी के काम की बाढ़ आ चुकी होती। ज़रा बॉलीवुड वालों को न्योता दीजिये, यह लोग तो पक्का आपके दफ्तर के आगे लाइन लगा देंगे।

अब काम की बात: आप साधु-सन्तों-आरएसएस की उस मेहनत पर पानी फेर रहे हैं पीएम साहब; जिसके जरिये उन्होंने पिछले दो दशकों से माइथोलॉजी के राम-कृष्ण को टीवी पर गवा-दिखाकर, इन मैथोलोजिकल विषयों पर लोगों में इनके वास्तविक इतिहास होने का इम्प्रैशन छोड़ने की कोशिश करी है। आप क्यों व्यर्थ में आरएसएस द्वारा अपने तरीके से भारतीय इतिहास पुनर्लेखन के कार्य में बाधा डाल रहे हैं? युद्ध का समय नहीं होता, तो यही सोच लेता कि बुद्ध की तरफ जाते दलितों व् अन्य ओबीसी को आकर्षित करने का एजेंडा है "बुद्ध का नाम लेना"।
दरअसल यही तो झगड़ा है। आप लोग, हवाओं में बुद्ध के नाम की खाना चाहते हो। पहले 20 साल राम के नाम की खाई, अब सेना और बुद्ध दोनों उठा लिए हैं। बात यहां तक भी हो तो समझ में आवे; बात तो इससे भी आगे गहरी जाती है। तमाम टीवी चैंनलों पर तो लोगों को रामायण-महाभारत परोसते हो, और हकीकत की जिंदगी में बुद्ध को औजते हो?

दुनिया समझ ले इस बात को कि यही हकीकत है जो पीएम दिखा रहे हैं, सिर्फ इशारा समझने की बात है। पीएम कहना चाहते हैं कि रामायण और महाभारत टेलीविज़न में देखने तक ही सही हैं, हकीकत से इनका कोई लेना-देना नहीं। क्योंकि लेना-देना होता तो पीएम की जुबां पर बुद्ध नहीं राम और कृष्ण होते, गीता होती।

अब चलते-चलते "युद्ध से बुद्ध" की हकीकत भी बता दूँ। "बुद्ध से युद्ध" तक लाने वाले भी यही लोग और अब "युद्ध से बुद्ध" की गाने वाले भी यही लोग। आज से पंद्रह-एक शताब्दी पहले पूरे उत्तरी भारत में बुद्ध-ही-बुद्ध था। परन्तु इन लोगों को वह बुद्ध कहाँ भाया था, ऐसी मार-काट मचवाई (जैसे आज जाट बनाम नॉन-जाट के नाम पर मचवाने को उतारू फिर रहे हैं) कि आज तलक भी हरयाणा में "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" की कहावतें चलती हैं। यह तो बुद्ध भक्ति में लीन बैठे जाटों द्वारा ध्यान और समाधी छोड़ लठ और हथियार उठा जब उन ध्यान भंग करने वालों के मुंह-तोड़े गए तब जा के टिके थे; यह लोग। और वही स्थिति आज आरएसएस की शह पर भोंपू बने लोगों ने हरयाणा में बना रखी है| जाट और सहयोगी जातियां जितना संयम खींच रही हैं, यह उतने ही भोंक रहे हैं। दाद है आप लोगों के संयम को वर्ना फरवरी में इन्होनें तो "बुद्ध से युद्ध" करने की पुरजोर कोशिश करी थी; शांति और भाईचारे की समाधी में बैठे हरयाणा पर युद्ध थोंपा था; परन्तु पन्द्रह-एक शताब्दी पहले वाले इतिहास की पुनरावृति हुई और जैसे ही जाट ने तीसरी आँख खोली, चार दिन में हौंसले पस्त गए।

खैर, समस्या यही तो है कि बॉर्डर पर दुश्मन चढ़ा आया तो इनको बुद्ध याद आया, वर्ना बॉर्डर के भीतर तो काँधे लाठियां धरवा के ऐसी परेडें निकालते हैं आरएसएस वाले, जैसे अभी-के-अभी बॉर्डर पर मोर्चा लेने निकल जायेंगे। कितना बेहतर होगा जो इनके हाथों में लाठियों की बजाये बुद्ध धरवा दें तो, हमारे पीएम साहब?

विशेष: पीएम साहब, मेरी पोस्ट को पाकिस्तान से युद्ध शुरू करने की जनता की इच्छा मत समझना, अपितु यह समझना कि नॉन-बीजेपी वोटर को "युद्ध से बुद्ध" बताने से पहले यही सब आरएसएस के कैडर को कैसे समझाऊं। क्योंकि कहीं दलितों पर अत्याचार, कहीं माइनॉरिटी पर अत्याचार, कहीं जातिवाद के जहर का बॉर्डर के भीतर का युद्ध तो यह लोग चलाये हुए हैं ना; जिसकी वजह से आपको "गुंडे" जैसे शब्दों वाले बयान देने पड़ जाते हैं। बाकी बॉर्डर की चिंता ना करें, उसको तो हमारी सेनाएं अच्छे से सम्भालना जानती हैं। आप बस यह "युद्ध से बुद्ध" की राह देश के भीतर ऊपर बताये वालों को सिखा दीजिये।

"म्हारे बल्धां की सूं" जिस दिन दिखाने भर को भी बुद्ध बन गया, उसी दिन से बीजेपी/आरएसएस वालों को मरोड़े लगने शुरू होंगे और मेरे अपनों को ही कहेंगे कि यह तो दलितों का धर्म है, इस जाट ने अपने-आप को समाज से गिरा के सही नहीं किया| जबकि हकीकत यह है कि जाट के डी.एन.ए. से कोई धर्म शत-प्रतिशत मैच करता है तो वह है ही बुद्ध धर्म|

तो भाई DONE, पीएम ने दो-चार रैलियों में और ऐसे ही बुद्ध का जिक्र किया और मैं बुद्ध बना| फिर मेरे नहीं अपने पीएम के जा के कान पकड़ना| क्योंकि फिर तुम ही "युद्ध से बुद्ध" की बजाये "बुद्ध से युद्ध" पर पलटी मारने में एक पल नहीं गंवाओगे|

और मेरा स्लोगन होगा, "या तो पीएम के मुख से राम-कृष्ण को भी किनारे व् इग्नोर करते हुए बुद्ध का गुणगान बांध करवाओ, विष्णु पुराण में बुद्ध को हिन्दू धर्म का गयारहवां अवतार लिखना बन्द करो, वर्ना मुझे शांति से "बुद्धम शरणम गच्छामि" होने दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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