Thursday, 13 October 2016

शोषककर्ता अनुत्पादक वर्ग कभी नहीं चाहेगा कि उत्पादक वर्ग अपनी समस्याओं पर विमर्श हेतु सोचे भी! - दीनबन्धु रहबर-ए-आजम चौधरी सर छोटूराम!

9 अप्रैल सन 1944 को लायलपुर में पंजाब की जाट महासभा का महासम्मेलन आयोजित था|  सारा शहर पोस्टर और बैनेरो से पटा पड़ा था| उर्दू और पंजाबी दोनों भाषाओ में लिखित नारों से दीवारे रंगी पड़ी थी| कितने ही स्वागत द्वार सजे थे, लायलपुर के कृषि कॉलेज की सारे भारत में धाक थी|

दीनबंधु चौधरी छोटू राम जी इस आयोजन के मुख्य अथिति थे| उनको हाथी पर बैठाकर सभास्थल तक लाया गया ,नारों और नादों से गगन गुंजित था, चारों और से समवेत श्वर-नाद गुंजित थे - जाट सभा जिंदाबाद जिंदाबाद!! जाट जवान! जाट बलवान! जय भगवान! छोटूराम तुम आगे बढ़ो -हम तुम्हारे साथ हैं!

यह एक प्रकार से उन्हीं का सम्मान समारोह था! वही आज के मुख्य अथिति और मुख्य वक्ता थे| उन्होंने अपने उदगारों को उच्छल अभिव्यक्ति दी थी - "जाट सभा के सदर चौधरी शहाबुद्दीन साहब, सेक्रेटरी बैरिस्टर हबीबुल्ला खान साहब, मेरे प्यारे जाट किसान भाईयो,आज आपके बीच में पाकर, मै स्वयं को बहुत गौरावान्वित अनुभव कर रहा हूँ| आपने ये जो इतना बड़ा इजलास यहाँ बुलवाया है, मुझे नहीं मालूम इसका मकसद क्या है? लेकिन मै इतना जानता हूँ कि हम जाट लोग किसी जाति या वर्ग विशेष के विरोधी नहीं हैं, हम तो अपने सामजिक और आर्थिक तथा राजनैतिक हालतों पर ही तबाद्लाये -ख्याल करने के लिए ही यहाँ एकत्र हुए हैं| जब दूसरे लोग ब्राहमण सभा, खत्री सभा, कायस्थ सभा और बहाई,अराई या सैयद सभा, या व्यापार मंडल के नाम से एक जुट हो सकते हैं तो फिर जाटों के सामाजिक या राजनैतिक संगठन पर ही तोहमतें क्यों जड़ी जाती हैं? सबब साफ़ है कि जब अनुत्पादक वर्ग स्वयं तो शोषण करने के लिए संगठित रहना चाहता है, और जब उत्पादक वर्ग किसी बहाने से मिल बैठकर अपनी जीवन दशाओं पर विचार विनिमय करना चाहते हैं तो यह वर्ग बौखला उठते हैं| सबसे ज्यादा परेशानी आज इस रूप में आपको बैठे देखकर मजहबी कठमुल्लों को हो रही होगी, क्योंकि वही तो आप लोगों को हिन्दू, मुस्लिम, सिख तथा ईसाई के रूप में बांटकर शोषकों का काम आसान करते हैं| हम कोई धर्म मात्र के विरोधी नहीं हैं, लेकिन हमारा पूर्ण विश्वाश है कि मत-मजहब केवल मनुष्य के विचारों को ही बदल सकता है; वह आदमी की नस्ल या खून में कोई तब्दीली नहीं ला सकता| इस रक्त की रंगत को फीकी नहीं कर सकता| इसीलिए जाहिर है कि -

"हमनें यह माना कि मजहब जान है इंसान की,
कुछ इसके दम से कायम शान है इंसान की|
रंगे- कौमियत मगर इससे बदल सकता नहीं,
खूने आबाई रंगे तन से निकल सकता नहीं||"

हवाला: लेखक श्री सूरजभान दहिया, एम.एस. सी. (सांख्यिकी), एम .ए. (अर्थशात्र) स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पत्रकारिता ) द्वारा लिखित पुस्तक - "दीनबंधु छोटूराम के व्यक्तित्तव की झलक" से रहबरे-आजम नामक पाठ के कुछ अंश|

उपलब्धकर्ता: कुंवर विजयंत सिंह बेनीवाल

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