गीण्ड-खुलीया का खेल यानि हॉकी का हरयाणवी रूपांतरण| मौका मिले तो आज जरूर
खेलिएगा और सांझी की दशमी की चांदनी भरी रात में तो जरूर खेल के देखिएगा|
शीतलता, चांदनी के प्रकाश और गुनगुना मौसम, तबियत को ऐसा आल्हादित करेगा कि
बस क्या कहने|
गींड-खुळीया के खेल की हरयाणवी शब्दों में कुछ व्याख्या:
आज का तो बेरा नहीं अक वें-हे चा रह-रेह सें अक नीह, पर एक-दशक-एक पह्ल्याँ तै, गाम के गोरयां पै गाम के गोरयां के इह्से आलम होया करदे अक आस्सुज की मोस गई नहीं, च्यांदण चढ्या नहीं अर चाँद की सीळी-सीळी सीळक आळी चांदणी म्ह गाभरुवों नें छड़दम मचाये नी| न्यूं हुलार उठया करदी जाणू तो उपरला भी धरती पै झुक-झुक देख्दा हो अक यू मेरे रचाये सुरग म्ह होण आळा नाच धरती पै क्योंकर माच रह्या सै|
सांझ होंदें, रोटी-टुक्के तैं निबटदें जित एक और नैं बहु-बेटी सांझी बनाण के लाहरया पड़ जांदी, ओडे-ए दूसरी औड नैं गाम के गाभरू-लड़धू-लोछर ठा-ठा आपणी-आपणी खुळीया लाठी (देशी हाकी, जो एक सबूत बन्या जोड़ की लाकडी की बणी हों सें) ले-ले पोहंच ज्यांदे गाम के गोरयां पै अर देर रयात ताहीं हे-ले-हे-ले, ले-ल्यो-ले-ल्यो, यु आया - ओ गया की रूक्क्याँ म्ह गींडां की ग्याँठ सी गांठण के इह्से झोटे-से भड्या करदे अक कुदरत भी एक टक देख्या करदी, अर इह्सी स्यांत हो ज्याया करदी अक जाणु चाँद नैं भी कहंदी हो अक रे इबै मत जाइये म्यरे बेट्याँ के खेल इबै थमे नहीं सें|
और यह सिलसिला आज सांझी के विदा करणे के दिन अपनी पराकाष्ठा पर होता आया और ऐसा झूम के मनता आया, जानूँ तो गाम-के-गाम, नगरी-की-नगरी बस गोरयां ऊपर आण डटी हों| घरां म्ह बस बड़े-बड़ेरे बचया करदे, नहीं तो गोरयां ऊपर सारे चैल-घाबरु और न्यून जोहडां के कंठारयाँ सुवासण छोरियां की स्वर-लहरी; बस मैंने तो इसतैं बड़ा सुरग आज लग ना देख्या ना सुणा|
इसी स्वर्ग सी खुशियों भरे दिन "सांझी" की आप सभी को सुबह कामनाएं| साथ ही दुर्गा-पूजा, दशहरा व् नवरात्रों के अंतिम दिन की भी सभी को शुभकामनाएं|
हाँ, आज रात की चांदनी में "गीण्ड-खुलीया" का खेल खेलना मत भूलना, खुलिया लाठी ना मिले तो बेशक हॉकी स्टिक से खेलना, परन्तु देखना तो जरूर आसुज्ज की चांदनी रात के इस आनंद का लुफ्त उठा के|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
गींड-खुळीया के खेल की हरयाणवी शब्दों में कुछ व्याख्या:
आज का तो बेरा नहीं अक वें-हे चा रह-रेह सें अक नीह, पर एक-दशक-एक पह्ल्याँ तै, गाम के गोरयां पै गाम के गोरयां के इह्से आलम होया करदे अक आस्सुज की मोस गई नहीं, च्यांदण चढ्या नहीं अर चाँद की सीळी-सीळी सीळक आळी चांदणी म्ह गाभरुवों नें छड़दम मचाये नी| न्यूं हुलार उठया करदी जाणू तो उपरला भी धरती पै झुक-झुक देख्दा हो अक यू मेरे रचाये सुरग म्ह होण आळा नाच धरती पै क्योंकर माच रह्या सै|
सांझ होंदें, रोटी-टुक्के तैं निबटदें जित एक और नैं बहु-बेटी सांझी बनाण के लाहरया पड़ जांदी, ओडे-ए दूसरी औड नैं गाम के गाभरू-लड़धू-लोछर ठा-ठा आपणी-आपणी खुळीया लाठी (देशी हाकी, जो एक सबूत बन्या जोड़ की लाकडी की बणी हों सें) ले-ले पोहंच ज्यांदे गाम के गोरयां पै अर देर रयात ताहीं हे-ले-हे-ले, ले-ल्यो-ले-ल्यो, यु आया - ओ गया की रूक्क्याँ म्ह गींडां की ग्याँठ सी गांठण के इह्से झोटे-से भड्या करदे अक कुदरत भी एक टक देख्या करदी, अर इह्सी स्यांत हो ज्याया करदी अक जाणु चाँद नैं भी कहंदी हो अक रे इबै मत जाइये म्यरे बेट्याँ के खेल इबै थमे नहीं सें|
और यह सिलसिला आज सांझी के विदा करणे के दिन अपनी पराकाष्ठा पर होता आया और ऐसा झूम के मनता आया, जानूँ तो गाम-के-गाम, नगरी-की-नगरी बस गोरयां ऊपर आण डटी हों| घरां म्ह बस बड़े-बड़ेरे बचया करदे, नहीं तो गोरयां ऊपर सारे चैल-घाबरु और न्यून जोहडां के कंठारयाँ सुवासण छोरियां की स्वर-लहरी; बस मैंने तो इसतैं बड़ा सुरग आज लग ना देख्या ना सुणा|
इसी स्वर्ग सी खुशियों भरे दिन "सांझी" की आप सभी को सुबह कामनाएं| साथ ही दुर्गा-पूजा, दशहरा व् नवरात्रों के अंतिम दिन की भी सभी को शुभकामनाएं|
हाँ, आज रात की चांदनी में "गीण्ड-खुलीया" का खेल खेलना मत भूलना, खुलिया लाठी ना मिले तो बेशक हॉकी स्टिक से खेलना, परन्तु देखना तो जरूर आसुज्ज की चांदनी रात के इस आनंद का लुफ्त उठा के|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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