Tuesday 18 October 2016

यूरोपीय देशों में कल्चर खेती से जुडी है, जबकि भारत में निठल्लों की जुबान से!

आखिर क्यों सबसे धनी संस्कृति की शेखी बघारने वाले भारत की शहरी संस्कृति अलग है और ग्रामीण अलग; जबकि फ्रांस-इंग्लैंड जैसे देशों में वही शहर का कल्चर है जो यहां ग्रामीण एग्रीकल्चर का कल्चर है?

इंग्लिश और फ्रेंच भाषा, दोनों में कल्चर शब्द एग्रीकल्चर से निकलता है; यानि जैसी खेती वैसा कल्चर| और यह बात सही भी है| जबकि हिंदी हो या संस्कृत, दोनों में खेती शब्द का संस्कृति शब्द से कोई तालमेल ही नहीं दिखता; इन्होनें शब्दवाली ही ऐसी बनाई है कि खेती को संस्कृति से दूर रखा हुआ है| गंवार-गाँवटी कहते हैं यह खेती को| और इनके लिए संस्कृति यानि कल्चर वही है जो यह बोलते-लिखते हैं|

एक ख़ास बात और, इंग्लैंड-फ्रांस के शहरों का वही कल्चर है जो यहां के गाँवों का है; क्योंकि यहां शहर हों या गाँव, एक ही प्रकार के, एक ही संस्कृति के लोगों ने बसाये हैं| वही चौड़ी-चौड़ी सड़कें, हवादार गलियारे और शहर के बीच में गाँव की चौपाल की भांति सिटी सेंटर्स| जबकि हरयाणा को ही देख लो, एक भी शहर की बनावट, हरयाणवी ग्रामीण सभ्यता से मैच नहीं करती| इन शहरों की पुराणी गलियों में चले जाओ, इतनी भीड़ी होती हैं कि 3-4 मंजिल मकानों की कतार वाली गलियों में तो नीचे सड़क तक सूरज भी नहीं घुस पाता| छोटे-छोटे मकान, छोटी-छोटी रिहाइशें, किसी भी तरीके से इनमें हरयाणा की ग्रामीण संस्कृति का अंश नहीं झलकता|
और ऐसे ही महान ग्रामीण पृष्ठभूमि से शहरों में आन बसने वाले ग्रामीण हरयाणवी| इनको यह अहसास ही नहीं कि अपनी कल्चर को अपने साथ ले के चलो, बस शहर में आ गए, ऐसे मानने लग जाते हैं कि किसी दूसरी ही दुनियां में आ गए|

वैसे एक बार एक सरफिरे एंटी-हरयाणवी पत्रकार ने ताऊ देवीलाल जी से भी कल्चर के बारे पूछा था तो ताऊ जी ने दो-टूक कही थी कि हमारी कल्चर है एग्रीकल्चर। तो हरयाणवी समाज सोचे इस पहलु पर कि आपकी ग्रामीण और शहरी संस्कृति में इतना फर्क क्यों? जबकि फ्रांस-इंग्लैंड जैसे विश्व के वीटो पावर एवम विकसित देशों की ग्रामीण-शहर दोनों की संस्कृति एक जैसी है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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