भारत में हिन्दू संस्कृति व् धर्म नाम की कोई चीज नहीं है; इसमें सिर्फ
तीन पार्टी हैं| एक बन्दूक चलाने वालों की, एक जिनके कन्धे रख के बन्दूक
चलाई जाती है उनकी और एक जिन पर बन्दूक चलाई जाती है उनकी|
आजकल हरयाणा में जिन समाजों के कन्धों पर रखकर बन्दूक चलाई जा रही है वो दो समाज हैं एक सैनी समाज और दूसरा अरोड़ा/खत्री समाज| बन्दूक चलाने वाले कौन हैं और किनके ऊपर चलाई जा रही है, यह जो हरयाणा के 1% हालात भी जानता होगा, बखूबी वाकिफ होगा|
ताज्जुब हुआ ना जानकर कि सैनी की तो देखी जाएगी, परन्तु क्या सवर्ण कहलाने वाला अरोड़ा/खत्री समाज भी ऐसे इस्तेमाल किया जा सकता है? तो जवाब है हाँ| और ऐसा इस समाज के इस्तेमाल जैसा पहली बार नहीं, इतिहास में पहले भी हो चुका है|
1984 में पंजाब में लड़ाई छिड़ी बन्दूक चलाने वालों में और जिनपर चलाई जा रही थी उनमें; और हिंदुओं के एक-इकलौते समुदाय जिसको इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था वो था खत्री/अरोड़ा समुदाय| 1991 की जनगणना के अनुसार पंजाब की जनसँख्या में 1981 से ले के 1991 के मध्य 5% हिन्दू कम हुआ जो कि यही समुदाय था| 1985 से लेकर 1991 तक गोली चलाने वालों को अपना कन्धा प्रयोग करने के लिए देने की वजह से यह समाज आतंकवाद के निशाने पर रहा और इस वजह से इस समुदाय को पंजाब छोड़, हरयाणा में शरण लेनी पड़ी थी|
क्या यह समुदाय फिर से बन्दूकचियों को अपना कन्धा प्रयोग करने देगा? देगा क्या, मेरे ख्याल से बखूबी प्रयोग हो रहा है|
राजकुमार सैनी से तो मैं उम्मीद ही छोड़ चुका हूँ, क्योंकि वो तो अब वह वाली नकटी लुगाई बन चुका है, जिसको एक मारो तो आगे से कहेगी "इबकै मार के दिखा"; परन्तु शायद मेरा यह लेख अरोड़ा/खत्री समाज को यह बात समझा जाए कि कोई उनका भी इस्तेमाल कर सकता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
आजकल हरयाणा में जिन समाजों के कन्धों पर रखकर बन्दूक चलाई जा रही है वो दो समाज हैं एक सैनी समाज और दूसरा अरोड़ा/खत्री समाज| बन्दूक चलाने वाले कौन हैं और किनके ऊपर चलाई जा रही है, यह जो हरयाणा के 1% हालात भी जानता होगा, बखूबी वाकिफ होगा|
ताज्जुब हुआ ना जानकर कि सैनी की तो देखी जाएगी, परन्तु क्या सवर्ण कहलाने वाला अरोड़ा/खत्री समाज भी ऐसे इस्तेमाल किया जा सकता है? तो जवाब है हाँ| और ऐसा इस समाज के इस्तेमाल जैसा पहली बार नहीं, इतिहास में पहले भी हो चुका है|
1984 में पंजाब में लड़ाई छिड़ी बन्दूक चलाने वालों में और जिनपर चलाई जा रही थी उनमें; और हिंदुओं के एक-इकलौते समुदाय जिसको इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था वो था खत्री/अरोड़ा समुदाय| 1991 की जनगणना के अनुसार पंजाब की जनसँख्या में 1981 से ले के 1991 के मध्य 5% हिन्दू कम हुआ जो कि यही समुदाय था| 1985 से लेकर 1991 तक गोली चलाने वालों को अपना कन्धा प्रयोग करने के लिए देने की वजह से यह समाज आतंकवाद के निशाने पर रहा और इस वजह से इस समुदाय को पंजाब छोड़, हरयाणा में शरण लेनी पड़ी थी|
क्या यह समुदाय फिर से बन्दूकचियों को अपना कन्धा प्रयोग करने देगा? देगा क्या, मेरे ख्याल से बखूबी प्रयोग हो रहा है|
राजकुमार सैनी से तो मैं उम्मीद ही छोड़ चुका हूँ, क्योंकि वो तो अब वह वाली नकटी लुगाई बन चुका है, जिसको एक मारो तो आगे से कहेगी "इबकै मार के दिखा"; परन्तु शायद मेरा यह लेख अरोड़ा/खत्री समाज को यह बात समझा जाए कि कोई उनका भी इस्तेमाल कर सकता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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