सिर्फ दूसरों के दिए, बनाये या बताये त्योहारों-मान्यताओं की आलोचना करने
से, उनका उपहास उड़ाने भर से काम नहीं हो जाने वाला| और उपहास या आलोचना भी
सिर्फ उसकी ही उड़ानी ठीक रहती है जो आपकी आस्था-मान-मान्यता को दबाती हो|
अंध-आलोचना या अंध-उपहास कभी भी खुद की सभ्यता को सँजोने-सँवारने-उभारने
बारे सतर्क नहीं कर सकता|
इसलिए यह दूसरों की आलोचना-उपहास से पहले जरूरी है कि 'जाट व् मित्र जाति युवा शक्ति' अपने वाली आस्था-मान-मान्यता को अपने घरों की महिलाओं के जरिये अपने घर में उतारें| यह एक ऐसी लड़ाई है जो सोशल मीडिया पर नहीं अपितु घरों में लड़ी जाए तो ही विजय प्राप्त हो|
घर के मर्द की घर की औरत जरूर से जरूर सुनती है| औरत का हृदय कोमल और निष्पाप होता है| वह जो भी करती है अपने घर की भलाई की सोच के करती है| परन्तु वह तर्कशील नहीं होती, सिर्फ भावनाओं और आसपास क्या प्रभाव है उसके चलते वही अपने घर में करने-बरतने लग जाती है| लेकिन जब उसको यह समझ आता है कि यह देखा-देखी जो कर रही हूँ यह तो मेरे ही घर का आध्यात्मिक व् उससे भी बड़ा आर्थिक दोहन है तो वह जरूर उससे उल्टा हटती है| दूसरा वो ऐसा अपनी खुद की मान-मान्यता-आस्थाओं की जानकारी व् प्रचार के अभाव में भी करती है| इसलिए अपने घर की औरतों को इनके आध्यात्मिक-आर्थिक-अपनेपन के पहलुओं पर समझाना और समझना होगा|
'जाट व् मित्र जाति युवा शक्ति' को अगर यह दूसरों के त्यौहार जो हमारे घरों में घुस गए हैं, यह निकाल के; अपनी आस्था और मान-मान्यता घर में उतारे रखनी व् इनसे बचानी है तो अपने-अपने घर की औरतों से तार्किक बहस करनी होगी| इन आस्थाओं के पीछे सबसे बड़ा तर्क यह दो कि हमारी जितनी भी मान-मान्यताएं रही हैं वह हमारी आर्थिक स्थिति को उभारने वाली या बना के रखने वाली रही हैं; जबकि यह जो दूसरों की देखा-देखी अपने घरों में घुसा रही हो, इनमें अधिकतर हमारे घरों का आर्थिक दोहन व् इनको फैलाने वालों का आर्थिक-वर्धन करने वाली हैं| हमारी आध्यात्मिक मान्यता समाज में लोकतंत्र को बढाने वाली हैं, जबकि यह जो बाहर से घर में घुसा रही हो यह अधिनायकवाद, फासीवाद को बढ़ावा देने वाली हैं|
इसलिए बहुत हुए यह औरों की मान्यताओं-त्योहारों के उपहास उड़ाना व् आलोचना करना| अब इनकी बजाये इस पर ध्यान केंद्रित हो कि पहले हमारी जो मान-मान्यता-आस्थाएं हैं वो सम्भाली जाएँ; उन पर अपने घर-परिवारों में चर्चा होवें|
और इस जाट बनाम नॉन-जाट के माहौल से अपनी चीजों को सम्भालने की जाटों की लालसा व् उत्सुकता ने और सोशल मीडिया के जरिये यूनियनिस्ट मिशन के यौद्धेयों के प्रचार ने इतना तो प्रचारित कर दिया है कि असली जाटू-सभ्यता की मान-मान्यताएं क्या हैं| अब इनको सोशल मीडिया से उठा के अपने घरों में ले जाने की बारी है|
यह बिना-देखे-परखे बस देखा-देखी में किसी की भी बताई कोई भी मान-मान्यता को अपने घर में घुसा लेना उन सबसे बड़े कारणों में से एक है जिसकी वजह से आज आपका समाज जाट बनाम नॉन-जाट का दंश झेल रहा है| इसलिए ऐसा मत समझना कि यह जाट बनाम नॉन-जाट, कोई ओपरी-पराई आ के आपके ऊपर उतार गई; नहीं बल्कि आपकी इन रीशम-रीशां कुछ भी घर में घुसा लेने की आदत ने ही इन लोगों के इतने हौंसले बुलन्द किये हैं कि अब इन्होनें आप पर जाट बनाम नॉन-जाट थोंप दिया| बस इसको ठीक कर लीजिये 100% जाट बनाम नॉन-जाट कुछ ही समय में स्वाहा ना हो जाए तो मेरे कान पकड़ लेना; कि क्या कह रहा था|
और इसमें ग्रामीण जाट से शहरी जाट ज्यादा दोषी है, इन्होनें ही समाज में यह रीशम-रीशां और थोथे एट्टीट्यूड के नकचढ़े दिखावों के चक्कर में यह जाट बनाम नॉन-जाट की बला जाट समाज पे ज्यादा उडलवाई है| हालाँकि दोषी ग्रामीण जाट भी है; परन्तु इस बीमारी की लीडरशिप में शहरी जाट है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इसलिए यह दूसरों की आलोचना-उपहास से पहले जरूरी है कि 'जाट व् मित्र जाति युवा शक्ति' अपने वाली आस्था-मान-मान्यता को अपने घरों की महिलाओं के जरिये अपने घर में उतारें| यह एक ऐसी लड़ाई है जो सोशल मीडिया पर नहीं अपितु घरों में लड़ी जाए तो ही विजय प्राप्त हो|
घर के मर्द की घर की औरत जरूर से जरूर सुनती है| औरत का हृदय कोमल और निष्पाप होता है| वह जो भी करती है अपने घर की भलाई की सोच के करती है| परन्तु वह तर्कशील नहीं होती, सिर्फ भावनाओं और आसपास क्या प्रभाव है उसके चलते वही अपने घर में करने-बरतने लग जाती है| लेकिन जब उसको यह समझ आता है कि यह देखा-देखी जो कर रही हूँ यह तो मेरे ही घर का आध्यात्मिक व् उससे भी बड़ा आर्थिक दोहन है तो वह जरूर उससे उल्टा हटती है| दूसरा वो ऐसा अपनी खुद की मान-मान्यता-आस्थाओं की जानकारी व् प्रचार के अभाव में भी करती है| इसलिए अपने घर की औरतों को इनके आध्यात्मिक-आर्थिक-अपनेपन के पहलुओं पर समझाना और समझना होगा|
'जाट व् मित्र जाति युवा शक्ति' को अगर यह दूसरों के त्यौहार जो हमारे घरों में घुस गए हैं, यह निकाल के; अपनी आस्था और मान-मान्यता घर में उतारे रखनी व् इनसे बचानी है तो अपने-अपने घर की औरतों से तार्किक बहस करनी होगी| इन आस्थाओं के पीछे सबसे बड़ा तर्क यह दो कि हमारी जितनी भी मान-मान्यताएं रही हैं वह हमारी आर्थिक स्थिति को उभारने वाली या बना के रखने वाली रही हैं; जबकि यह जो दूसरों की देखा-देखी अपने घरों में घुसा रही हो, इनमें अधिकतर हमारे घरों का आर्थिक दोहन व् इनको फैलाने वालों का आर्थिक-वर्धन करने वाली हैं| हमारी आध्यात्मिक मान्यता समाज में लोकतंत्र को बढाने वाली हैं, जबकि यह जो बाहर से घर में घुसा रही हो यह अधिनायकवाद, फासीवाद को बढ़ावा देने वाली हैं|
इसलिए बहुत हुए यह औरों की मान्यताओं-त्योहारों के उपहास उड़ाना व् आलोचना करना| अब इनकी बजाये इस पर ध्यान केंद्रित हो कि पहले हमारी जो मान-मान्यता-आस्थाएं हैं वो सम्भाली जाएँ; उन पर अपने घर-परिवारों में चर्चा होवें|
और इस जाट बनाम नॉन-जाट के माहौल से अपनी चीजों को सम्भालने की जाटों की लालसा व् उत्सुकता ने और सोशल मीडिया के जरिये यूनियनिस्ट मिशन के यौद्धेयों के प्रचार ने इतना तो प्रचारित कर दिया है कि असली जाटू-सभ्यता की मान-मान्यताएं क्या हैं| अब इनको सोशल मीडिया से उठा के अपने घरों में ले जाने की बारी है|
यह बिना-देखे-परखे बस देखा-देखी में किसी की भी बताई कोई भी मान-मान्यता को अपने घर में घुसा लेना उन सबसे बड़े कारणों में से एक है जिसकी वजह से आज आपका समाज जाट बनाम नॉन-जाट का दंश झेल रहा है| इसलिए ऐसा मत समझना कि यह जाट बनाम नॉन-जाट, कोई ओपरी-पराई आ के आपके ऊपर उतार गई; नहीं बल्कि आपकी इन रीशम-रीशां कुछ भी घर में घुसा लेने की आदत ने ही इन लोगों के इतने हौंसले बुलन्द किये हैं कि अब इन्होनें आप पर जाट बनाम नॉन-जाट थोंप दिया| बस इसको ठीक कर लीजिये 100% जाट बनाम नॉन-जाट कुछ ही समय में स्वाहा ना हो जाए तो मेरे कान पकड़ लेना; कि क्या कह रहा था|
और इसमें ग्रामीण जाट से शहरी जाट ज्यादा दोषी है, इन्होनें ही समाज में यह रीशम-रीशां और थोथे एट्टीट्यूड के नकचढ़े दिखावों के चक्कर में यह जाट बनाम नॉन-जाट की बला जाट समाज पे ज्यादा उडलवाई है| हालाँकि दोषी ग्रामीण जाट भी है; परन्तु इस बीमारी की लीडरशिप में शहरी जाट है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment