Monday, 3 October 2016

हरयाणा की "सांझी" है, बंगाल की "दुर्गा पूजा", अवध के "दशहरे", सिंधी-अरोरा-खत्रियों के "नवरात्रों" व् गुजरात के "गरबा" का समानांतर शुद्ध हरयाणवी त्यौहार!

परन्तु एक फर्क के साथ, और वो है वास्तविकता का| हरयाणा की सांझी का कांसेप्ट वास्तविकता की व्यवहारिकता पर आधारित है, जबकि बाकी सब माइथोलॉजी पर आधारित|

"सांझी" क्या होती है, इसकी विस्तृत व्याख्या तीन साल पहले हरयाणवी में लिखे मेरे इस लेख में जानें:

सांझी का पर्व:
सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळआ त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|
पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जा सै|

आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या के मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया जा सै।

के हो सै सांझी का त्युहार:
जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।

सांझी नैं बनाण का सामान:
आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|

सांझी बनाण का मुहूर्त:
जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।

सांझी के भाई के आवण का द्यन:
आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|

दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई:
इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गंदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।

उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|

भ्रान्ति:
सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी, सिंधी-अरोरा-खत्रियों के "नवरात्रों" व् गुजरात का "गरबा" अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या तैं आया त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|

सांझी का सर्वप्रसिद्ध लोकगीत - "सांझी री":
सांझी री मांगै मड्कन जूती,
कित तैं ल्याऊं री मड्कन जूती।
म्हारे रे मोचियाँ कें तैं,
ल्याइये रे बीरा जूती॥
सांझी री मांगै हरया गोबर,
कित तैं ल्याऊं री हरया गोबर।
म्हारे रे पाळी ब्य्टोळएं गोरयां,
ल्याइये रे बीरा, हरया गोबर||
सांझी री मांगै दामण-चुंदड़ी,
कित तैं ल्याऊं री दामण-चुंदड़ी|
म्हारे रे दर्जी के भाई,
दे ज्याइये रे दामण-चुंदड़ी||
सांझी री मांगै गंठी-छैलकड़ी,
कित तैं ल्याऊं री गंठी-छैलकड़ी|
म्हारे रे सुनारां के तैं,
ल्याइये रे बीरा गंठी-छैलकड़ी॥
सांझी री मांगै चिकणी-माटी,
कित तैं ल्याऊं री चिकणी-माटी|
म्हारे रे डहर-लेटा की,
ल्याइये रे बीरा चिकणी-माटी||
सांझी री मांगै नए तीळ-ताग्गे,
कित तैं ल्याऊं री नए तीळ-ताग्गे|
म्हारे रे बाणियाँ के तैं,
पड़वाइए रे बीरा तीळ-ताग्गे||
सांझी री मांगै छैल-बैहलड़ी,
कित तैं ल्याऊं री छैल-बैहलड़ी|
म्हारे रे खात्ती के तैं,
घड़वाइए रे बीरा छैली-बैहलड़ी॥
सांझी री मांगै टिक्का-चोटी,
कित तैं ल्याऊं री टिक्का-चोटी|
म्हारी री मनियारण के तैं,
ल्याइये री भाभी टिक्का-चोटी||

 हरयाणा मतलब आज का हरयाणा, दिल्ली, वेस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान व् उत्तराखंड का ग्रेटर हरयाणा कहे जाने वाला भूभाग|

Root Source: http://www.nidanaheights.net/culturehr-aasujj.html

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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