देर रात काम करते-करते, यह रागणी याद हो आई!
बाबा जी तेरी श्यान पै बेहमाता चाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
दिखे तेरे जैसे माणस नैं चाहियें थे हाथी-घोड़े,
तेरे ऊपर वार कें फेंकू, समझ कें मोती रोड़े!
रूप दिया तै भाग दिया ना, कर्म डाण नैं फोड़े,
बाबा जी तेरी शान देख कें, हाथ दूर तैं जोड़े!!
चाहियें थे सोने के तोडे, काठ की माळा करगी!
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
तेरे ऊपर वार कें फेंकू, समझ कें मोती रोड़े!
रूप दिया तै भाग दिया ना, कर्म डाण नैं फोड़े,
बाबा जी तेरी शान देख कें, हाथ दूर तैं जोड़े!!
चाहियें थे सोने के तोडे, काठ की माळा करगी!
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
तेरे के से माणस के हों, पलटण-फ़ौज-रिसाले,
सुथरी बहु परोसे भोजन, भूख लागते ही खा ले!
अर्थ-मझोली, टमटम-बग्गी, जिब चाहे जुड़वा ले,
मेवा और मिष्ठान मिठाई, मोहन-भोग मसाले!!
चाहियें थे तैने शाल-दुःशाले, वा कंबळ काळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
सुथरी बहु परोसे भोजन, भूख लागते ही खा ले!
अर्थ-मझोली, टमटम-बग्गी, जिब चाहे जुड़वा ले,
मेवा और मिष्ठान मिठाई, मोहन-भोग मसाले!!
चाहियें थे तैने शाल-दुःशाले, वा कंबळ काळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
दिखे लोहे की रित लगे बराबर, तू सोना अठमासी का,
किले-उजले घर चाहियें थे, बालम सोलह राशि का!
म्हारे के सी रह सेवा म्ह, रूप बना दासी का,
तेरे रूप की चमक इशी जाणु चाँद खिला परणवासी का!!
लख-चौरासी जीवजंतु, सहम रूखाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
किले-उजले घर चाहियें थे, बालम सोलह राशि का!
म्हारे के सी रह सेवा म्ह, रूप बना दासी का,
तेरे रूप की चमक इशी जाणु चाँद खिला परणवासी का!!
लख-चौरासी जीवजंतु, सहम रूखाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
दिखे मांगेराम चाल पड्या घर तैं, लत्ते-चाळ ठान कें,
दुखी इसी मेरे जी म्ह आवै, मर ज्यां लिपट नाड कै!
और घनी दूर तैं देख लिया मैंने, अपनी नजर तार कें,
सारी दुनिया तोल लई सै, पक्के बाट हाड़ कैं!!
दिखे जिसने जाम्या पेट फाड़ कें, क्यों ना टाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
दुखी इसी मेरे जी म्ह आवै, मर ज्यां लिपट नाड कै!
और घनी दूर तैं देख लिया मैंने, अपनी नजर तार कें,
सारी दुनिया तोल लई सै, पक्के बाट हाड़ कैं!!
दिखे जिसने जाम्या पेट फाड़ कें, क्यों ना टाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
बाबा जी तेरी श्यान पै बेहमाता चाळा करगी,
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
कलम-तोड़गी लिख दई पूँजी, रात दीवाळा करगी!
फूल मलिक
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