Friday, 4 January 2019

मदवि की कल की घटना से छात्रराजनीति को गलत ठहराने वाले, कृपया एक मिनट विचारें!

छात्रसंघ चुनाव पूरे विश्व का अटल सत्य हैं, एक मदवि की कल की अप्रिय घटना से इनका औचित्य मत आंकिये| आंकना है तो यह आंकिये कि हरयाणा में छात्रसंघ चुनाव का फॉर्मेट कितना गलत कितना सही| आंकना है तो यह आंकिये कि छात्रसंघ चुनाव जबसे बंद हुए, हरयाणा के ग्रामीण परिवेश व् कल्चर से लगाव रखने वाले कितने नेता बने, शायद एक भी ढंग का गिना सको| हमारे जमाने में जितेंद्र पहल होते थे, जगदीश खटकड़ होते थे जींद की छात्र-राजनीति के सितारे| उस वक्त के मुख्यमंत्री भजनलाल कांपते थे उनसे कोई भी उल्ट निर्णय या अप्रिय निर्णय लेने से| नरवाना के कृष्ण श्योकंद, अजय चौटाला आदि की गाड़ियां बीच हाईवे रुकवाने की ताकत रखते थे| कुल मिलाकर छात्रराजनीति तो होनी ही चाहिए| फ्रांस-अमेरिका-दिल्ली यूनिवर्सिटी कहाँ नहीं है छात्रराजनीति, जो हरयाणा में होने को बुरा बता रहे?

हरयाणा की ग्रामीण राजनीति का इतना बुरा हश्र क्यों हुआ पिछले एक-डेड दशक में? इसकी वजहें आंकेंगे तो छात्रसंघ चुनाव बंद होना उसकी मुख्य वजहों में से एक पाएंगे| झगड़े-फसाद किस सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं? एक वक्त जींद में जगदीश खटकड़ की बाँधी बंधती थी, खुली खुलती थी| जींद की राजनीति के शहरी अड्डे तो थर-थर कांपते थे उससे| परन्तु उसको मारा जीतेन्द्र पहल ने (मैं उस वक्त तीसरी क्लास में होता था, मौत की खबर सुनते ही स्कूल की आधी छुट्टी हो गई थी)| उसके बाद यह नहीं हुआ कि नेतागिरी बंद हो गई| जीतेन्द्र पहल के रूप में ऐसा छात्र नेता उभरा कि भजनलाल मुख्यमंत्री तक की कुर्सी हिलती थी उसके भय से| सोचिये सीएम लेवल तक के राज जानता था वह बंदा, आज कितने युवा हैं जो सीएम तो छोड़िये एमएलए-एमपी या पार्षद स्तर तक के राज जानते हो युवा? यह छात्रराजनीति की ही जागरूकता थी कि जितेंद्र पहल को भजलनलाल तक के ऐसे राज पता थे| और इसी वजह से भजनलाल को षड्यंत्र रचवा कर जेल में मारना पड़ा था पहल को| फिर भी न्यूनतम एक दशक तक राज किया पहल ने जींद की छात्र राजनीती में|

पहल के बाद कृष्ण श्योकंद का उभार हुआ था| इनकी ताकत और रुतबा यह था कि चंडीगढ़ जाते हुए अजय चौटाला की कार को सिरसा-चंडीगढ़ हाईवे पर जहाँ रुकने की बोलते थे अजय को रुकना पड़ता था| परन्तु वह अपना पूरा उभार ले पाते उससे पहले ही 1996 में हरयाणा में छात्रसंघ के चुनाव ही बंद हो गए| बांगर की राजनीति के दबंग नेता जयप्रकाश (जेपी) इसी राजनीति की देन हैं|

इसलिए छात्रसंघ चुनाव के आपसी गुटबाजी वाले नुकसान हैं तो ग्रामीण कल्चर के रुतबे और रुवाब को कायम रखने के अपने फायदे भी हैं| वरना आज देख लो क्या हालत हो रखी है, बड़े-बड़े तुर्रमखां भी टुच्चे नेताओं के आगे-पीछे टूरते है|

यही हालत पानीपत-कुरुक्षेत्र साइड होती थी| छात्र राजनीति इतनी बढ़िया चलती थी कि क्या कहने| नरवाना वालों की विंग का ख़ास प्रभाव होता था कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में| "जींद कंट्री" (Jind Country) वाले बोला जाता था, नरवाना-जींद वालों को वहां|

भगवान करे कि प्रदीप देशवाल जल्द से जल्द स्वस्थ हो करआवें| रोहतक में छात्रराजनीति की यह पहली वारदात नहीं हुई है| नब्बे के दशक में होते थे एक से एक अलाही| ऐसे अलाही जो बीच चौराहे भजनलाल की धोती खोल लिया करते थे और भजनलाल तब भी चूं नहीं कर पाते थे| आज कोई नेताओं की धोती खोलना तो दूर उनकी तहमद तक हाथ ही पहुंचा के दिखा दो|

और इतने भावुक होने से क्या काम चलता है? क्या विधानसभा-लोकसभा चुनावों में जिस तरह के दांवपेंच, सरफुडाई, कुटाई, लड़ाई, दंगे-फसाद होते हैं उनसे भी बुरे हैं छात्रचुनाव? नहीं, कदापि नहीं| अपितु छात्रचुनाव का अनुभव रहता है तो बड़ी राजनीति और अच्छे से समझ आती है, उसके लिए ट्रेनिंग हो जाती है| वरना बिना छात्रराजनीति के अनुभव के तो भगत बनाने वाली फैक्ट्रियों द्वारा आपके बच्चे लपक लिए जाते रहेंगे और कभी ट्रेंड कबूतरों से ज्यादा कुछ नहीं बन पाएंगे| कभी अपना स्वछंद रवैया, रुतबा कायम नहीं कर पाएंगे| ऐसे ही फिरेंगे भगत बने फलाने-धकड़ों की बिना सोची जय बोलते| वैसे भी छात्रराजनीति में वही भाग लेते हैं जिनका पॉलिटिक्स में इंटरेस्ट होता है, जिनको डॉक्टर-इंजीनियर-सीए वगैरह बनना होता है; वह छात्रराजनीति होने पर भी चुपचाप पढाई करते हैं|

इसलिए अगर हमें "ट्रेंड-कबूतर" टाइप की बजाये "स्वछंद रवैये-रुवाब" वाले भविष्य के नेता चाहियें तो छात्रराजनीति जरूरी है |

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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