Thursday, 21 November 2019

ज्यादा जायदाद प्रॉपर्टी पर कण्ट्रोल के नाम पर परिसीमन होवे तो जमीन-दुकान-फैक्ट्री-मठ-मंदिर-मस्जिद हर किसी की प्रॉपर्टी का बराबर से होवे अन्यथा अकेले किसान-जमींदार का ना होवे!


भजनलाल सरकार के वक्त एक बात आई थी कि ज्यादा लैंड प्रॉपर्टी का परिसीमन यानि कण्ट्रोल किया जाए और जमींदारों के यहाँ एक जमींदार के नाम 12-15 एकड़ से ज्यादा लैंड नहीं होनी चाहिए?

आगे का रास्ता: आवाज उठाये रखनी होंगी कि ज्यादा प्रॉपर्टी तो दुकान-फैक्ट्री-इंडस्ट्री-कॉर्पोरेट वालों की भी होती है, मठ-मंदिर-अखाड़े-चर्च-मस्जिद आदि वालों की भी होती है; कभी इनका भी परिसीमन करे गवर्नमेंट| यह भी एक हद से ज्यादा किसी के पास हों तो हद तक की छोड़ के बाकी दूसरों में बाँट दे|

जैसे दुकान-फैक्ट्री व्यापारी का कारोबार है, मठ-मंदिर-मस्जिद धर्म के झण्डाबदारों का कारोबार है; ऐसे ही लैंड किसान-जमींदार की फैक्ट्री होती है| इसलिए या तो हर प्रकार की प्रॉपर्टी का परिसीमन होवे अन्यथा अकेले किसान-जमींदार पर इसकी मार क्यों?

यह आवाजें अभी से उठानी शुरू कर दीजिये सोशल मीडिया व् ग्राउंड दोनों पर अन्यथा किसान-जमींदार तैयार रहे अपने हाथों से जमीनें जाती देखने को| क्योंकि जिस तरीके से यह सरकार हर सरकारी संस्था-कंपनी बेच रही है प्राइवेट के हाथों, अचरज मत मानना अगर भजनलाल के ज़माने वाला दूसरा परिसीमन ना थोंप देवें तो आप पर|

इसलिए यह अंधभक्ति और धर्मभक्ति उतनी ही करो जितने से तुम्हारे घर-कारोबार-पुरखों की खून-पसीनों की बनाई जमीन-जायदादें बची रहें उनको छूने तक से यह डरते रहें| तुम्हारी अंधभक्ति इनको तुम्हारे घरों-प्रॉपर्टी तक की नीलामी करने की गुस्ताखी करने की ताकत देती हैं|

और एक ख़ास बात, किसान-जमींदार के तो अकबर के ज़माने से पहले व् उसके बाद के तो निरंतर अपनी प्रॉपर्टी के टैक्स वगैरह भरने के रिकार्ड्स तक हैं और जो टैक्स भरते हों उनको सरकार ऐसे परिसमनों के बहाने नीलाम नहीं कर सकती| और बावजूद इसके यह चीजें होने की दस्तक है| बावजूद इसके कि व्यापारी और पुजारी सबसे ज्यादा टैक्स चोर, सबसे ज्यादा लोन-फ्रॉड्स करते हैं वह भी करोड़ों-करोंड़ के, किसान की तरह एक-दो लाख के नहीं और फिर भी इनकी प्रॉपर्टीज को कोई नहीं छूता पता है क्यों? क्योंकि यह धर्म को धंधे वाली वेश्या की तरह धन कमाने को प्रयोग करते हैं और तुम अंधभक्त बनके इस धंधे को पोसते हो अपने घर धो के पोसते हो| या तो इतने बड़े उस्ताद बनो की इनकी तरह धर्म को धंधा बना के पैसा बना सको वरना मेरे दादा वाली भाषा वाली "घर फूंक तमाशा देख वाली बोली-ख्यल्लो" बनने में कुछ ना धरा|

बैलेंस में आ जाओ और सुधर जाओ, वरना अपनी बर्बादी की इबारत अपने हाथों लिख रहे हो ध्यान रखना; कल को किसी और के सर कम व् तुम्हारे सर सबसे ज्यादा उलाहना होगा| और इसमें दोनों ही आ गए, क्या शहरी क्या ग्रामीण| वर्ण के भी चारों आ गए क्या ब्राह्मण, क्या क्षत्रिय, क्या वैश्य, क्या शूद्र व् पाँचवा आवरण जाट भी आ गया| और के धर्म भी सारे आ गए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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