Thursday 21 November 2019

ए री दादी, ए री माँ; सुनती जाईए री!

हरयाणवी अणख, हरयाणवी किनशिप का चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया थी मेरी दादी! आज दादी की 17वीं मरगत-तिथि सै!

16 साल हो गए तुझे हमको छोड़ के गए हुए और मेरे से बिछड़े हुए तो 18 साल| तेरी वह बुझी सी सूरत आज भी जेहन में तरोताजा है जब मेरी फ्रांस जाने की बात सुनके सब खुश थे परन्तु तू जैसे शॉक में पलंग पे ही जमी रही 3 दिन, और मेरे फ्रांस आने की तैयारियां तेरे इर्द-गिर्द तेरे ही दिशा-निर्देश अनुसार चलती रही थी| आते हुए तुझे झकझोरा परन्तु तू बुत बनी बैठी थी| परन्तु यह इंस्ट्रक्शन देनी फिर भी नहीं भूली कि, "आपणे रीत-रवाज-पच्छोका सदा गेल राखिए"|

छह दिन का था जब जामण आळी चली गई थी, तेरे में ही माँ अर दादी दोनों रूप मिले| वो जो दुनियाँ को कई बार कहता हूँ ना कि, "पोतड़ों में पॉलिटिक्स सीख के बड़ा हुआ हूँ"| वह सबसे ज्यादा तुझसे ही तो सीखी थी|

जब तू सर धुवा कें चुण्डा करवाती थी और फिर सर पे लत्ता धरती थी तो तेरे चेहरे व् माथे का ललाट ऐसी आभा बिखेरता था कि महारानी भी फेल होती थी तेरे उस डठोरे के आगे|

जब तू मरी थी तो कईयों की जुबानों से कहते सुना था कि "गाम का मोड़ गया", "मैदान का बड़ गया"|

खैर तू जानती है फंडी-पाखंडियों वाले पुनर्जन्म-मरण-पितृ आदि से तेरे जैसे पुरखों ने दूर रहना ही सिखाया; थमनै इतना जरूर बताया कि अगले-पिछले जन्म का नहीं पर अगली-पाछली पीढ़ी का करया होया, उसतैं आगली पै जरूर चढ़या करै; तो इसे खातर इतना जरूर कर दिया था अक तेरी चिता की राख उठा के उसकी एक-एक मुट्ठी अपने सारे खेतों-रजबाहों में बहा दी थी, बिखेर दी थी| वहीँ होगी ना तू अपने खेतों में? कभी उनमें काम करती हुई, कभी उनकी डोल पे बैठ के तेरे बेटे यानि मेरे बाप की बाड़ बनी उसकी रूखाळी करती हुई? घर-कुणबे पै आई मुसीबतों में मेरे बाप-दादे से पहले उठा जेली हाथ में अपना धड़ उनसे आगे अड़ाते हुई, आज भी खड़ी है ना तू गाम के मैदान पे गरजती हुई कि, "आ जाओ मेरे तल्लाकियो, जमा-ए-सुन्ने ला लिए"? तुझसे ही सीखा है कि जाटणियां, हमले होते देख; "आग के कुंड सजा के उनमें कूदने की बजाए; जेळी से बैरी के मुंड छेद लिया करती हैं"| 

चिंता ना कर उधम के डब्बी आज भी कई बार कह देते हैं कि भाई दादी को देख उसके भय से हम जब गाल छोड़ दिया करते थे, वह गालें आज भी छोड़ने का जी करता है बस काश दादी फिर से मैदान-चौराहे पे पीढ़ा घालें बैठी दिख जाए तो|

तेरे छींट आळे दामण की झाल, तेरी छींट-चित्ते वाली चूंडे पे धरी चुन्दड़ियाँ, चर-चर करती तेरी जूती, चिंता ना करिये सब घर की बाहण-बेटी-बहुओं को भी पास कर रहा हूँ| सबसे ज्यादा दबाव मैं ही दिए रहता हूँ सब बुआ-बाहण-भाभियों को कि यही चीजें ही नहीं छोड़नी बस| सुलोचना की होक्के गेल आळी हरयाणवी ड्रेस की फोटो दिखाते तुझे जिन्दा होती तो|

तेरी वह रेहड़ी पर से बिना तुलवाए चीज नहीं खाने की सीख आज भी फ्रांस के शॉपिंग-माल्स तक में साथ ले के चलता हूँ और चीज को चखता भी तभी हूँ जब तुलवा लेता हूँ| वह तेरी "भूखा-माडा-नंगा भूखा नहीं जाने देने की और फंडी मुंह नहीं लाने की "दादा नगर खेड़े वाली सीख" भी साथ लिए हुए हूँ| सीरी-साझी को कुनबे शामल खाना खिलाने की सीख म्हारी माँ यानि तेरी बहु आज भी यूँ की यूँ चलाये हुए है|

एक वो तेरा जो तेरी गाम-गुहांड की अपने घर आई डब्बणों (म्हारी दादियों से) से तीन बार गाल-से-गाल मिला के गाफी भर-भर मिलना होया करता ना (के कह के मिला करती जो घनी प्यारी होया करती उससे कि "हे आ जा मेरी तल्लाकण, काळजे के लाग जा"; वो यहाँ फ्रांस के कल्चर में भी यूँ का यूँ ही है| यहाँ देखता हूँ तो सुखद अनुभूति लेता हूँ कि क्या ग्लोबल स्टैण्डर्ड का कल्चर विरासत में मिला; थारे बरगे पुरखों के जरिए| 

और कितने किस्से गाऊं तेरे आ के बता जा तू ही|

आज तक भी जितना रोमांचित मुझे मोहळे व् ज्याब की (तेरे पीहरों की यानि मेरे दोनों दादकों की) यादें करती हैं इतना रोमांचित बाकी यादों में होता तो हूँ परन्तु इन जितना नहीं| मोहळा (हिसार) की गलियों के तब के वेस्ट-मैनेजमेंट के सिस्टम, साफ़-सफाई इतनी कि आज की मोदी की सफाई अभियान फेल हो जाए, इतनी चमचमाती गलियां और वो रूख, वो परस, वो काका रमेश के ब्याह में केसूहड़े आगे नाचती घुंघरुओं वाली घोड़ी, घोड़ी के आगे बजता धौंसा और तेरा दामण पकड़ें उनको देखता मैं; सब यूँ के यूँ धरे दिमाग में कि जी में आवै उठा के गूंची सब उतार दूँ पेंटिंग में|

जब तू मरी थी तो उस वक्त गया था तेरे दोनों पीहर, अब भी जाता रहता हूँ| उस वक्त मोहळा में दादा होशियारा बड़ी नदी के पार वाले खेतों वाली वह पाळ दिखा के लाया था जहाँ बालकपन में तुम भाई-बहन इकट्ठे डांगर चराया करते| दादा रोने लग गया था तुझे याद करता-करता| बहुत किस्से सुनाएँ थारे बचपन के, क्यूकर तुझे भुळा के बड़ी बहन का हवाला दे, अधिकतर वक्त तेरे से ही डांगर हिरयवाया करते और फिर जब तुझे उनकी स्यानपत पता लगती तो तू कैसे उन सारों की कुटाई किया करती| जितना तेरे से डरते थे तेरे भाई उससे कई गुणा ज्यादा प्यार करते थे तुझसे; उस दिन खेत की डोल पे दादा होशियारे को बैठ के तेरी याद में रोते देख इस बात का अहसास हुआ मुझे| दादा बोला पोता तेरा बाप आ लिया, तेरा दादा आ लिया तेरे भाई-बाहण भी आ लिए पर जो हरक तेरी दादी के नाम का तैने ठुवा दिया इसकी टीस ही न्यारी सै| और इसकी वजह बताई कि जो छड़दम तू तारया करता मोहळा आ के वें सबतैं न्यारे होया करते और सबतैं निश्छल व् प्यारे भी; इसीलिए तुझे आता देख के तो न्यू लगया जानूं खुद धूळा  चाली आवै सै|

तेरे दूसरे पीहर ज्याब (रोहतक) भी गया था| वहां सारे दादी-काके-ताऊ-भाईयों में तेरे नाम की, तेरी याद की चमक-धमक दोनों उतने ही वेग की ताजा हैं; जैसे कभी तेरे साथ हमें आते देख; भाजड़ पड़ ज्याया करती; "बुआ आ गई, बुआ आ गई" करते हुओं की| ज्याब जित थम मैंने घाल्या करते या छोड़ के आया करते 2-4 दिन के लिए और मैं मोरा मार के 20-20 दिन सारी छुटियाँ वहीँ काट आया करता| क्योंकि मुझे वहां कोई रोक-टोक नहीं होती थी; आइशर-मेसी-फोर्ड-HMT चारों ट्रेक्टर चलाने मुझे ज्याबियों ने ही तो सिखाए थे| वो कलानौर में ताऊ आळे घर में बेबे के फेरों के वक्त, मिठाई के कोठे पे डिठोरे से एक हाथ चौखट पर व् एक हाथ में मुझे पकड़े; आज भी खड़ी दिखती है तू| दोनों दादकों में ब्याह-वाणो में मिठाई के कोठों का चार्ज तुझे मिलता, आज भी देखना चाहूँ सूं| ईबी भी म्हारे में तें कोई सा चला जाओ, सबकी निगाह तैने टण्डवालती पावें म्हारे म|  

इब बता कित-तैं-ल्या कैं द्यूं तैने इन ताहिं| ज्याबियों की खजानी तू और मोह ळी यों की धनकौर उर्फ़ धूळा तू, बता कित तैं ल्या कें दयूं तैने इन ताहीं? अर और के-के तो लिखूं और के-के छोडूं? कदे जिंदगी ने फुरसत दी तो किताब ही लखूँगा तेरे पे|

सलंगित फोटो में हैं मेरी दादी, बाबू, बाबू की गोदी में मैं और दादी के बगल में बड़ा भाई मनोज| 

जय यौधेय! - फूल मलिक









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