Saturday, 7 December 2019

सदाशिव राव "पानीपत" फिल्म में महाराजा सूरजमल को कहते हैं कि, "दिल्ली पर तो हम शाहजहाँ-3" की ताजपोशी करेंगे"!

सुन शुद्ध हरयाणवी और सीधा छाती में लगने वाला जवाब,"क्यों रै हाऊ, शाहजहाँ-3 कै के तेरी छोरी ब्याह राखी थी या बुआ ब्याह राखी थी? तेरा फूफा लगता था या जीज्जा वो?"

फिर कहोगे हरयाणवी लठमार भाषा है; थारै समझ में ही लठ आवैं हैं इसके अलावा तुम्हें समझ ही कहाँ आती है|

यह है सच्चाई इन "हिन्दू एकता व् बराबरी", तथाकथित राष्ट्रवाद व् तथाकथित "एक राष्ट्र" की चिंता करने व इसका ठेका उठाने वालों की| राग अलापेंगे "हिन्दू एकता" का रोना रोयेंगे हिन्दू एकता का; परन्तु शहंशाह बनाएंगे उन्हीं को जिनसे धर्म से ले राष्ट्र बर्बाद होने का "डर" भी दिखाएंगे|

"आगला शर्मांदा भीतर बढ़ गया और बेशर्म जाने मेरे से डर गया" वाले लोग हैं यह, तुम्हारी ख़ामोशी इनके लिए जीत होती है| इसलिए जवाब दो इनको कि तुम ना पानीपत जीते और ना यह फिल्म बना के जीते| तब भी "बिन जाटों हारे थे" और आज भी हारे हो|

सुवाद लेने वाले स्टाइल में जवाब दो इनको| इनको पता लगना चाहिए कि सुसरो इस फिल्म में खुद ही खुद के तथाकथित हिंदुत्व व् राष्ट्रवाद की बैंड बजाये हो|

बाकी महाराजा सूरजमल ने दिल्ली मांगी थी, आगरा का किला तो वैसे ही उनके पास था| और बाद में दिल्ली जीती भी, उससे पहले भी जीती और जाटों ने अकेले जीती वह भी 3-3 बार| तब यह पेशवे भी यहीं थे और मुग़ल भी| परन्तु फिर भी महाराजा सूरजमल व् भरतपुर खानदान धर्मनिपेक्ष रहा, मंदिर भी बनाते थे और मस्जिद भी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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