हाऊ यानि महाराष्ट्र के चितपावनी ब्राह्मण जो पेशवे कहलाते हैं| जो एक ही जाति-वर्ण के होते हुए भी हरयाणवी ब्राह्मण को दलित बराबर समझते हैं|
दलित बराबर समझते हैं तभी तो दोबारा उसी को मुख्यमंत्री बना दिया जिसने "भरी सभा में एक वयोवृद्ध हरयाणवी ब्राह्मण नेता को फरसा दिखा गला काटने की धमकी दी"| यहाँ तक कि माफ़ी तक नहीं मंगवाई है आज तक|
दलित बराबर समझते हैं तभी तो हरयाणा के हर मंदिर में हरयाणा से बाहर के ब्राह्मण पुजारी बैठाये जा रहे हैं|
चिंता मत करियो अगर पानीपत फिल्म में महाराजा सूरजमल का अपमान किया है तो, इससे ज्यादा तो यह हरयाणवी ब्राह्मण का रोज-रोज कर रहे हैं, करवा रहे हैं और होता देख चुप भी हैं| हरयाणवी ब्राह्मण की रोजी-रोटी भी छीन रहे हैं और सारा दान-पुन-चढ़ावा यहाँ से महाराष्ट्र-गुजरात ले जा रहे हैं|
और हाँ, मैं इस मुद्दे को लेकर अति-गंभीर रहा हूँ शुरू से; बेशक हरयाणवी ब्राह्मण से जुड़ा हुआ हो| इस मामले में हरयाणवी पहले हूँ, बाकी कुछ बाद में|
और जो नादाँ यह समझता हो कि इन नागपुरी-पुणे पेशवों की शय व् इशारे के बिना "पानीपत" फिल्म बनी है तो समझो उसे तो भारतीय राजनीति की अभी एबीसी भी नहीं मालूम|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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