शायद ही कोई ऐसी लड़ाई सुनी हो दुनियाँ में जिसमें बीवी-बच्चे साथ लेकर गए हों, सिर्फ पानीपत की तीसरी लड़ाई को छोड़कर| सुसरो, युद्ध करने सिंगरे थे या पिकनिक मनाने? पानीपत ना हो गया कोई Sea-beach या Hill-station हो गया| मूवी में वजह भी बेहूदी सी बताते हैं बीवी-बच्चे साथ लेकर चलने की कि कहीं आप भी कोई मस्तानी ना ले आएं, इसलिए हम साथ चलेंगी| यानि इनकी लुगाईयों को ना तो इन पर भरोसा था और ना चरित्रवान बने रहने को इनको और कुछ सिखाया जाता था? कैसे यह प्रेमी थे व् कैसे थे यह वीर, जो साल-छह महीने के बिछोह में खुद पर संयम नहीं रख सकते थे?
और उस पर स्थानीय राजाओं से दिल्ली की गद्दी पर बैठने की मंशा छुपाने का यह ढोंग कि पानीपत जीते तो दिल्ली पर तो हम शाहजहाँ-3 की ताजपोशी करेंगे[ अच्छा तो दिल्ली में तुम्हें रहना नहीं था, ताजपोशी भी किसी हिन्दू की जगह मुसलमान की करनी थी (वह भी बावजूद हिन्दुओं को मुस्लिमों से डरा के ही, "हिन्दुओं को एक होने के लिए हिंदुत्व व् छद्म राष्ट्रवाद के घड़ियाली लेक्चर पिला के"?) तो फिर बीवी-बच्चे क्यों मरवाये?
इसीलिए तो हरयाणवी औरतों की जुबानी भाऊ की बजाये "हाऊ" कहलाये यानि अपनी सनक में अपने ही बीवी-बच्चों का कत्ले-आम करवाने वाले, हरयाणवी में कहूं तो, "अपने ही हाथों, अपनी कुणबाघाणी करवाने वाले"| यह तो शुक्र रहा जाट महाराजा सूरजमल, जाट खापों समेत आम हरयाणवियों का कि इनको शरण दे दी, वरना अब्दाली ने कोई औरत-बच्चा ना छोड़ना था इनका| सदाशिवराव भाऊ को हुड्डा खाप सांघी में आ के शरण मिली बताते हैं; व् ऐसे ही बहुतों को अन्य जाट-खापों में शरण मिली बताते हैं यानि इन राजे-रजवाड़ों से तो जाट-खाप ही इतनी ताकतवर हुआ करती थी कि अब्दाली के दुश्मन को पनाह देते हुए अब्दाली का खौफ भी नहीं माना करती?
फिर भी जलकंडपना नहीं जाता इनका| इसीलिए तो जाट बनाम नॉन-जाट रचवाते हैं, खापों पर अटैक करवाते हैं ताकि जाटों से इतनी नफरत करवा दी जाए आम जनता को कि वह जाटों की इन मानवताओं व् महानताओं को जानने की इच्छा-भर भी ना करें| इसीलिए तो यह वर्णवाद खत्म करने की बजाये जातिवाद ही टारगेट करते हैं, ताकि जाट जैसी जातियों के इन पर किये अहसानों के किस्से ही खत्म हो जाएँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
और उस पर स्थानीय राजाओं से दिल्ली की गद्दी पर बैठने की मंशा छुपाने का यह ढोंग कि पानीपत जीते तो दिल्ली पर तो हम शाहजहाँ-3 की ताजपोशी करेंगे[ अच्छा तो दिल्ली में तुम्हें रहना नहीं था, ताजपोशी भी किसी हिन्दू की जगह मुसलमान की करनी थी (वह भी बावजूद हिन्दुओं को मुस्लिमों से डरा के ही, "हिन्दुओं को एक होने के लिए हिंदुत्व व् छद्म राष्ट्रवाद के घड़ियाली लेक्चर पिला के"?) तो फिर बीवी-बच्चे क्यों मरवाये?
इसीलिए तो हरयाणवी औरतों की जुबानी भाऊ की बजाये "हाऊ" कहलाये यानि अपनी सनक में अपने ही बीवी-बच्चों का कत्ले-आम करवाने वाले, हरयाणवी में कहूं तो, "अपने ही हाथों, अपनी कुणबाघाणी करवाने वाले"| यह तो शुक्र रहा जाट महाराजा सूरजमल, जाट खापों समेत आम हरयाणवियों का कि इनको शरण दे दी, वरना अब्दाली ने कोई औरत-बच्चा ना छोड़ना था इनका| सदाशिवराव भाऊ को हुड्डा खाप सांघी में आ के शरण मिली बताते हैं; व् ऐसे ही बहुतों को अन्य जाट-खापों में शरण मिली बताते हैं यानि इन राजे-रजवाड़ों से तो जाट-खाप ही इतनी ताकतवर हुआ करती थी कि अब्दाली के दुश्मन को पनाह देते हुए अब्दाली का खौफ भी नहीं माना करती?
फिर भी जलकंडपना नहीं जाता इनका| इसीलिए तो जाट बनाम नॉन-जाट रचवाते हैं, खापों पर अटैक करवाते हैं ताकि जाटों से इतनी नफरत करवा दी जाए आम जनता को कि वह जाटों की इन मानवताओं व् महानताओं को जानने की इच्छा-भर भी ना करें| इसीलिए तो यह वर्णवाद खत्म करने की बजाये जातिवाद ही टारगेट करते हैं, ताकि जाट जैसी जातियों के इन पर किये अहसानों के किस्से ही खत्म हो जाएँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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