अहसान करो तो सिर्फ मानवता पालने के लिए बेशक कर देना, इस बहम में कभी मत करना कि किसी के भीतर का दुश्मन मार दिया या मर जायेगा|
वह राजपूत जो पेशवाओं के लिए सदियों-सदियों इतनी लड़ाइयाँ लड़े, इतने समर्थन दिए; आज भी समाज में इनके सबसे कड़े समर्पित राजपूत ही जाने जाते हैं| फिल्म में क्या दिखाया उनके बारे? सबको यह बोलते हुए कि, "काट लो सर इनका?" ऐसे लोगों का अपना कहलाने का मतलब है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके आगे झुके रहो तो ही तुमको सराहा जायेगा, अपना बताया जायेगा|
जाट महाराजा का उपहास तो खैर उड़ाना ही था, यह तो अपेक्षित ही था| क्योंकि जाटों ने पेशवाओं को कभी इस तरीके से लीडरशिप लेने ही नहीं दी विशाल-हरयाणा की धरती पर जैसे मराठाओं ने इनको महाराष्ट्र में दे रखी थी या आज भी दी हुई है; ताजा-ताजा फडणवीस-पंवार एपिसोड जैसे अपवादों को छोड़ के| और यही वह बिंदु है जिस मामले में जाट, मराठाओं से भी ज्यादा मर्द सोच का माना जाता है| इसलिए तो मराठा, जाट को मिलता है तो कहता है "जय हरयाणा" और तब जाट भी प्रतिउत्तर में बोलता है कि, "जय महाराष्ट्र"; मराठे जानते हैं कि एक जाट ही हैं जो पेशवाओं के बुद्धि-बल के छलावों में कभी नहीं आये; 21वीं सदी के भक्त नामक अपवाद छोड़ दो तो|
अभी एक साथी ने मेरा "फंडी का डांगर मैनेजमेंट" लेख पढ़ के पूछा कि भाई तो महाराजा जी फंडी की किस केटेगरी में आये? भाई वह "फंडियों का फूफा" वाली केटेगरी में आते हैं| एक वह हैं, दूसरा बड़ा उदाहरण सर छोटूराम हैं| दोनों के किरदार एक ही शिक्षा देते हैं कि सबसे पहले फंडी के चपल उवाचों से अपना बचाव करना सीखो, फिर चाहे फंडी "हिन्दू एकता व् बराबरी" समेत "राष्ट्रवाद" के राग क्यों ना अलाप रहा हो| इनसे बच गए मतलब जीवन पार तर गए, अपना इनसे उन्मुक्त नाम कर गए| जैसे महाराजा सूरजमल व् सर छोटूराम ने किया| एक ने इन पेशवाओं की हेकड़ी निकाली थी और दूसरे ने फंडियों समेत सूदखोरी-जमाखोरी व् कालाबाजारी करने वालों की भी|
इसलिए इनको मारना आवे या ना आवे, इनको परास्त करना आवे या ना आवे; परन्तु इनसे बचना-बचाना जरूर आना चाहिए| क्योंकि अपने धन-बुद्धि-बल का इनके द्वारा प्रयोग नहीं होने देना इनको असली परास्त करना है जैसे महाराजा सूरजमल जी ने पेशवाओं को किया| आमने-सामने की इनकी हेकड़ी निकालने को तो अब्दाली जैसे बहुत मिल जायेंगे, उनको अड़ाते चलो इनके आगे|
देखा ना कि पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली से पिटे-छिते घायल मराठा-पेशवाओं की मरहमपट्टी पर 1761 के जमाने में 10 लाख खर्च कर देने के बाद भी महाराजा सूरजमल इनके भीतर की दुश्मनी-जलन-द्वेष नहीं मार पाए? मदद वाले किस्से में इस मूवी में कुछ दिखाया या नहीं परन्तु उपहास उल्टा खूब उड़ा दिया| इसलिए अहसान करने से कोई दुश्मन-वुष्मन नहीं मरा करते| इंसानियत के लिए करो अहसान, किसी अपेक्षा में कभी मत करना|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
वह राजपूत जो पेशवाओं के लिए सदियों-सदियों इतनी लड़ाइयाँ लड़े, इतने समर्थन दिए; आज भी समाज में इनके सबसे कड़े समर्पित राजपूत ही जाने जाते हैं| फिल्म में क्या दिखाया उनके बारे? सबको यह बोलते हुए कि, "काट लो सर इनका?" ऐसे लोगों का अपना कहलाने का मतलब है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके आगे झुके रहो तो ही तुमको सराहा जायेगा, अपना बताया जायेगा|
जाट महाराजा का उपहास तो खैर उड़ाना ही था, यह तो अपेक्षित ही था| क्योंकि जाटों ने पेशवाओं को कभी इस तरीके से लीडरशिप लेने ही नहीं दी विशाल-हरयाणा की धरती पर जैसे मराठाओं ने इनको महाराष्ट्र में दे रखी थी या आज भी दी हुई है; ताजा-ताजा फडणवीस-पंवार एपिसोड जैसे अपवादों को छोड़ के| और यही वह बिंदु है जिस मामले में जाट, मराठाओं से भी ज्यादा मर्द सोच का माना जाता है| इसलिए तो मराठा, जाट को मिलता है तो कहता है "जय हरयाणा" और तब जाट भी प्रतिउत्तर में बोलता है कि, "जय महाराष्ट्र"; मराठे जानते हैं कि एक जाट ही हैं जो पेशवाओं के बुद्धि-बल के छलावों में कभी नहीं आये; 21वीं सदी के भक्त नामक अपवाद छोड़ दो तो|
अभी एक साथी ने मेरा "फंडी का डांगर मैनेजमेंट" लेख पढ़ के पूछा कि भाई तो महाराजा जी फंडी की किस केटेगरी में आये? भाई वह "फंडियों का फूफा" वाली केटेगरी में आते हैं| एक वह हैं, दूसरा बड़ा उदाहरण सर छोटूराम हैं| दोनों के किरदार एक ही शिक्षा देते हैं कि सबसे पहले फंडी के चपल उवाचों से अपना बचाव करना सीखो, फिर चाहे फंडी "हिन्दू एकता व् बराबरी" समेत "राष्ट्रवाद" के राग क्यों ना अलाप रहा हो| इनसे बच गए मतलब जीवन पार तर गए, अपना इनसे उन्मुक्त नाम कर गए| जैसे महाराजा सूरजमल व् सर छोटूराम ने किया| एक ने इन पेशवाओं की हेकड़ी निकाली थी और दूसरे ने फंडियों समेत सूदखोरी-जमाखोरी व् कालाबाजारी करने वालों की भी|
इसलिए इनको मारना आवे या ना आवे, इनको परास्त करना आवे या ना आवे; परन्तु इनसे बचना-बचाना जरूर आना चाहिए| क्योंकि अपने धन-बुद्धि-बल का इनके द्वारा प्रयोग नहीं होने देना इनको असली परास्त करना है जैसे महाराजा सूरजमल जी ने पेशवाओं को किया| आमने-सामने की इनकी हेकड़ी निकालने को तो अब्दाली जैसे बहुत मिल जायेंगे, उनको अड़ाते चलो इनके आगे|
देखा ना कि पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली से पिटे-छिते घायल मराठा-पेशवाओं की मरहमपट्टी पर 1761 के जमाने में 10 लाख खर्च कर देने के बाद भी महाराजा सूरजमल इनके भीतर की दुश्मनी-जलन-द्वेष नहीं मार पाए? मदद वाले किस्से में इस मूवी में कुछ दिखाया या नहीं परन्तु उपहास उल्टा खूब उड़ा दिया| इसलिए अहसान करने से कोई दुश्मन-वुष्मन नहीं मरा करते| इंसानियत के लिए करो अहसान, किसी अपेक्षा में कभी मत करना|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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