"एशिया का Odysseus" व् "जाटों का Plato" कहलाते हैं महाराजा सूरजमल सुजान इंटरनेशनल जगत में|
ऐ नादाँ बजरबट्टूओं, यह महाराजा सूरजमल है जो इराक-ईरान-तुर्की से ले पूर्तगीस-डच-फ्रेंच व् लन्दन की ब्रिटिश लाइब्रेरी तक के दस्तावेजों में कहीं "जाट प्लेटो - Plato" तो कहीं "एशियाई ओडीसूस - Odysseus" के नाम से दर्ज है; कोई पेशवा या तुम्हारी मनघढ़ंत माइथोलोजी का किरदार नहीं है| यूँ फिल्मों में उनका अपमान करके, तुम्हारे द्वारा उनकी "लो" कम करने से कम ना होने वाली| फिर भी बहम हो तो पूरी दुनियाँ के बुद्धिजीवी व् इतिहासकारों में सर्वे करवा कर देख लो, रेसर्चेज-रेफरेन्सेस खंगाल के देख लो; इतने रेफरेन्सेस तो तुम्हारे किसी पेशवा या किसी तथाकथित मैथोलॉजिकल करैक्टर तक के नहीं मिलने जितने सूरजमल सुजान भरतपुर वाले जाट के मिलेंगे|
समझ नहीं आती कि लोग फिर भी इनके कौनसे वाले हिंदुत्व एकता व् बराबरी के राग में उलझ जाते हैं जबकि यह हिन्दू समाज की इंटरनेशनल स्तर पर स्थापित इतनी बड़ी हस्ती तक का यूँ फिल्मों में मजाक बना उड़वा देते हैं? कौनसा हिंदुत्व है यह और कौनसा राष्ट्रवाद है यह? कोई इनका अंधभक्त बना जाट ही समझा दे मुझे; समझा दे मुझे कि यही वह हिंदुत्व है क्या जिसके लिए इनके पीछे पागल बने घूमते हो? यह वह राष्ट्रवाद है क्या जिसमें तुम्हारे समाज-धर्म से आने वाले इंटरनेशनल स्तर पर सबसे शक्तिशाली कहलाये महाराजा का उपहास-मजाक उड़ाया जाता हो? पूछो हर अंधभक्त से व् जाट अंधभक्त से तो खासतौर से पूछो|
पानीपत फिल्म का डायरेक्टर आशुतोष गवारिकर वही है जो "जाटों के किरदार" निभा-निभा फ़िल्मी कैरियर की सीढ़ी चढ़ा है| 1980 के दशक में आई हरयाणवी फिल्म "जाट" का हीरो यही है जिसमें "कोठे चढ़ ललकारूं" वाला फेमस सांग है| आज इसको जाटों से क्या चिढ हो गई या नागपुरी-पेशवों का पानी लग गया? खैर साबित बजरबट्टू ही हुआ, "महाराजा जी के मजाक से ज्यादा, पेशवाओं के ही छद्म राष्टवाद व् हिंदुत्व की पोल खोल गया" उस वाले सीन में जिसमें सदाशिव राव बोलता है कि, "दिल्ली पर तो हम शाहजहाँ-3 की ताजपोशी करेंगे"| भाई लगते-लारे यह और बता देता कि शाहजहाँ-3 पेशवों का फूफा लगता था या जीज्जा? समझ जाओ इसी से कि यह जिन मुस्लिम का भय दिखा के तुम पर इनके छद्म हिंदुत्व व् राष्ट्रवाद का प्रभाव जमाते हैं, हकीकत में उन्हीं की दिल्ली में ताजपोशी करते रहे हैं| इसलिए इनके उकसावे पर किसी मुस्लिम भाई से नफरत मत करना कभी| मुस्लिम कहीं अधिक तुम्हारा है इनसे तो खासकर| और यह मैं नहीं बल्कि इन्हीं की पानीपत की हिस्ट्री व् आज पानीपत पर बनाई फिल्म तुम्हें-हमें चिल्ला-चिल्ला बता रही है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
ऐ नादाँ बजरबट्टूओं, यह महाराजा सूरजमल है जो इराक-ईरान-तुर्की से ले पूर्तगीस-डच-फ्रेंच व् लन्दन की ब्रिटिश लाइब्रेरी तक के दस्तावेजों में कहीं "जाट प्लेटो - Plato" तो कहीं "एशियाई ओडीसूस - Odysseus" के नाम से दर्ज है; कोई पेशवा या तुम्हारी मनघढ़ंत माइथोलोजी का किरदार नहीं है| यूँ फिल्मों में उनका अपमान करके, तुम्हारे द्वारा उनकी "लो" कम करने से कम ना होने वाली| फिर भी बहम हो तो पूरी दुनियाँ के बुद्धिजीवी व् इतिहासकारों में सर्वे करवा कर देख लो, रेसर्चेज-रेफरेन्सेस खंगाल के देख लो; इतने रेफरेन्सेस तो तुम्हारे किसी पेशवा या किसी तथाकथित मैथोलॉजिकल करैक्टर तक के नहीं मिलने जितने सूरजमल सुजान भरतपुर वाले जाट के मिलेंगे|
समझ नहीं आती कि लोग फिर भी इनके कौनसे वाले हिंदुत्व एकता व् बराबरी के राग में उलझ जाते हैं जबकि यह हिन्दू समाज की इंटरनेशनल स्तर पर स्थापित इतनी बड़ी हस्ती तक का यूँ फिल्मों में मजाक बना उड़वा देते हैं? कौनसा हिंदुत्व है यह और कौनसा राष्ट्रवाद है यह? कोई इनका अंधभक्त बना जाट ही समझा दे मुझे; समझा दे मुझे कि यही वह हिंदुत्व है क्या जिसके लिए इनके पीछे पागल बने घूमते हो? यह वह राष्ट्रवाद है क्या जिसमें तुम्हारे समाज-धर्म से आने वाले इंटरनेशनल स्तर पर सबसे शक्तिशाली कहलाये महाराजा का उपहास-मजाक उड़ाया जाता हो? पूछो हर अंधभक्त से व् जाट अंधभक्त से तो खासतौर से पूछो|
पानीपत फिल्म का डायरेक्टर आशुतोष गवारिकर वही है जो "जाटों के किरदार" निभा-निभा फ़िल्मी कैरियर की सीढ़ी चढ़ा है| 1980 के दशक में आई हरयाणवी फिल्म "जाट" का हीरो यही है जिसमें "कोठे चढ़ ललकारूं" वाला फेमस सांग है| आज इसको जाटों से क्या चिढ हो गई या नागपुरी-पेशवों का पानी लग गया? खैर साबित बजरबट्टू ही हुआ, "महाराजा जी के मजाक से ज्यादा, पेशवाओं के ही छद्म राष्टवाद व् हिंदुत्व की पोल खोल गया" उस वाले सीन में जिसमें सदाशिव राव बोलता है कि, "दिल्ली पर तो हम शाहजहाँ-3 की ताजपोशी करेंगे"| भाई लगते-लारे यह और बता देता कि शाहजहाँ-3 पेशवों का फूफा लगता था या जीज्जा? समझ जाओ इसी से कि यह जिन मुस्लिम का भय दिखा के तुम पर इनके छद्म हिंदुत्व व् राष्ट्रवाद का प्रभाव जमाते हैं, हकीकत में उन्हीं की दिल्ली में ताजपोशी करते रहे हैं| इसलिए इनके उकसावे पर किसी मुस्लिम भाई से नफरत मत करना कभी| मुस्लिम कहीं अधिक तुम्हारा है इनसे तो खासकर| और यह मैं नहीं बल्कि इन्हीं की पानीपत की हिस्ट्री व् आज पानीपत पर बनाई फिल्म तुम्हें-हमें चिल्ला-चिल्ला बता रही है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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