स्टेप 1 - जिस कल्चर में यह उतारनी हो पहले उसकी सबसे स्ट्रांग मान-मान्यताओं-एथिकल वैल्यूज-सोशल इंजीनियरिंग मॉडल पर प्रहार करो|
स्टेप 2 - नंगा साहित्य पढ़ने की आदत डालो, नंगा-फूहड़ नाच देखने की आदत तब तक डालो जब तक कि व्यभिचारी-मिथ्याचारी नहीं बन जाते|
स्टेप 3 - औरत में माँ-बेटी-बहन देखने की बजाये सिर्फ एक भोग्यवस्तु दिखे, इस स्तर तक टार्गेटेड समाज को तहस-नहस कर दो|
स्टेप 4 - लोगों को लॉजिक्स की बजाये कथाओं पर ज्यादा यकीन करना सिखाओ| दिमाग की बजाये आस्था पर चलना सिखाओ|
स्टेप 5 - धर्म-जाति-वर्ण के नाम पर बलात्कारियों का समर्थन करवाओ, उनके समर्थन में ज्ञापन दो, मार्चपास्ट करो| इतना कर दो कि कोई गैंगरेप में मरे या आग-तेजाब में फूंक दी जाए; बस सोसाइटी चूं ना करे; करे तो उसी को जेल में डाल दो जो चूं करे चाहे खुद आरोपी ही क्यों ना हो|
स्टेप 6 - फिर समाज के चुनिंदा टारगेट वर्गों जैसे कि ओबीसी-एससी/एसटी व् जहाँ कमजोर हो वहां किसान वर्ग तक की (जैसे साउथ इंडिया के मंदिरों में होती हैं) यौवन में कदम रख रही बेटियों को मंदिरों में देवदासी के नाम पर दान करने को दाम-दंड-भय के जरिये फाॅर्स करो|
स्टेप 7 - "सिंह ना सांड, गादड गए हांड" की तर्ज पर इन देवदासियों का भोग लगाओ और इनसे जो नाजायज औलादें पैदा होवें उनको "हरिजन" के नाम से बदनाम करो|
वह टार्गेटेड समाज हरयाणवी समाज है और पांच स्टेप तक यह स्ट्रेट्जी पहुँच चुकी है| छटा व् साँतवा स्टेप नहीं चाहते हो तो तुंगभद्रा से जाग लो| और अपनी वह खाप वाली सोशल इंजीनियरिंग व्यवस्था (जो राजनीति व् धर्मनीति से बिलकुल रिक्त होती थी) उसको दोबारा खड़ी कर लो|
वरना तो इसके आगे रोना-ही-रोना, यह इस स्ट्रेट्जी वाले तुम्हारे इनके ही द्वारा निर्धारित कर्मों में कटिबद्ध तौर से लिख चुके हैं| फिर फिरते रहना दूनो में सर मारते| तुम्हारे घरों से मर्जी-बेमर्जी "देवदासी" बनाने हेतु लड़किया उठाई जा रही होंगी, तुम्हारे ही किसी बगल वाले मंदिर के गर्भगृह में उसका भोग लगाया जा रहा होगा और तुम दिमाग व् दिल से नपुंसक उन अबलाओ की सिर्फ चीखें सुन पाओगे|
यह मत समझना कि इसमें सिर्फ तुम दोषी होवोगे, तुमसे ज्यादा वह आस्था में पागल हुई इनको पोषित करने वाली औरतें होंगी; जो फिर इसी को किस्मत व् कर्म मान के ढाँढस बंधवा कर शांत बैठा दी जाएँगी या बैठ जाएँगी|
और जिसको बहम हो इस स्ट्रेटजी की सच-झूठ बारे एक बार महाराष्ट्र-कर्नाटका व् आंध्र-तेलंगाना-उड़ीसा के उन मंदिरों में हो आना जिनके इर्दगिर्द येलम्माएं यानि देवदासियां पाई जाती हैं| इस स्ट्रेटजी की सच्चाई सांप की केंचुली की भांति खुद-ब-खुद उतर कर सामने आ जाएगी तुम्हारे|
नोट करके रख लेना: कभी किसी भी मठ-मंदिर-डेरे-अखाड़े से कोई बयान-निर्देश-सजा-आदेश नहीं आएगा बलात्कार व् फूहड़ता फैलाने वालों के खिलाफ; क्यों रहते हैं यह इन पर चुप आखिर? क्यों नहीं कभी कोई शंकराचार्य-महंत-कथावाचक-पुजारी-संत आगे बढ़कर यह बोलता, प्रवचन देता कि बलात्कारियों को सूली पे टांग दो या फांसी दे दो? धर्मनीति बनाने वाले होने का दम्भ भरते हैं यह समाज में| क्या इनकी धर्मनीति में बलात्कारियों व् फूहड़ता फ़ैलाने वालों के खिलाफ कुछ नहीं? आखिर क्यों मूक रहते हैं यह लोग? क्योंकि 90% यह खुद बलात्कारी कल्चर या देवदासी कल्चर के परोक्ष-प्रत्यक्ष पालक/समर्थक-पोषक हैं का आरोप तो क्या लगाऊं इन पर; परन्तु क्या इनकी ख़ामोशी चुभती नहीं आपको ऐसे मौको पर?
धर्म द्वारा समाज को संचालित करना मतलब बेलगाम घोड़े-झोटे द्वारा रथ-बुग्गी ले के चलना| समाज द्वारा समाज को संचालित करना यानि घोड़े-झोटे को लगाम में रख के उससे बुग्गी-रथ चलवाना| इसीलिए बलात्कार-गैंगरेप-एसिड अटैक जैसी घटनाओं पर धर्म वाले ना कोई मत रखते ना बयान ना निर्देश ना पब्लिक में आ के कहने को बलात्कारी आदि के लिए कोई सजा| इनको पता है ऐसा निर्देश दिया तो सबसे पहले सबसे ज्यादा तुम ही घलोगे इसमें| तो यह काम कौन करती थी "खाप" जैसी संस्थाएं, जिनको इन्हीं तथाकथित धर्म-ढकोसले वालों की कहबत में आप-हम बिसराये चल रहे हैं| दूसरा खाप की ऐसी हालत के लिए खाप वालों की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं भी जिम्मेदार हैं| हैदराबाद प्रियंका रेप-हत्या कांड, निर्भया काण्ड, उन्नाव काण्ड, कठुआ काण्ड ऐसे काण्ड हो चुके जो बिना सामाजिक संथाओं के थमेंगे ही नहीं, चाहे जितने धार्मिक बन लो| बल्कि धर्म की आड़ में तो हिन्दू-मुस्लिम करके, तुम-हम अपराध-अपराधी तय करने लगते हैं| हिन्दू है तो अपराधी नहीं, मुस्लिम है तो अपराधी या इसका वाइस-वरसा| अगर इस बीमार मानसिकता से छुटकारा चाहिए तो खाप वालों को चाहिए कि खापों को दोबारा खड़ा करें परन्तु अबकी बार धर्म व् राजनीति से आज़ाद व् दूर रहते-रखते हुए; जैसे हमारे पुरखे रखते थे| वरना वही बात है, पांच स्टेप्स आ लिए, 2 और बाद तुम्हारे-हमारे घरों से बेटियाँ उठाई भी जाएँगी और दूषित भी की जाएँगी और कुछ नहीं कर पाओगे| कुछ नहीं कर पाओगे चाहे तो जितने धार्मिक बन लेना और जितने घंटे-खड़ताल बजा लेना|
सोच लो हरयाणवी बीर-मर्दो किस काली स्याह वाली काली कोठरी की तरफ धके जा रहे हो| ऐसी-ऐसी भीतरले में लगने वाली कड़वी बातें मैं कभी-कभी ही लिखता हूँ, परन्तु जब लिखता हूँ कलम तोड़ देने की हद तक लिखता हूँ| मेरी तो कलम टूट चुकी आज, तुम्हारी तुंगभद्रा टूटी कि नहीं, देखते हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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