Saturday, 7 December 2019

पानीपत फिल्म पर मेरी पहली प्रतिक्रिया!

अपना अलग धर्म बना लो या सिखिज्म में चलो| ना हमें इनसे बहस करनी ना अपील ना मान-मनुवार| जाट हैं हम, राजपूत नहीं कि यह पंडे-पाखंडी जो बकवास काटेंगे हम सर झुकाकर सुनेंगे इनकी| अपने यह बहम दूर कर लें यह लोग| 1875 में "आर्य-समाज" स्थापित करके, उसकी गीता की भांति अपनी अलग पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" बनाकर, उसके ग्यारहवें सम्मुल्लास में जब बार-बार जाट की "जाट जी" व् "जाट देवता" बोलकर स्तुति करी थी तो जाट इस धर्म में रुके थे, वरना कैथल-थानेसर-करनाल-सफीदों तक सिखिज्म में जा चुका था जाट| अगर यह लोग यह इतिहास भूल रहे हैं तो इनको फिर से यह समझाने और याद दिलाने का वक्त आ गया है| यूँ महाराजा सूरजमल का अपमान करेंगे फिल्मों में, जाट इतिहास की आन-शान को छेड़ेंगे-मरोड़ेंगे और हम फिर भी चुपचाप इनके साथ पड़े रहेंगे; नहीं कदापि नहीं| वही ऊपर वाली बात, जाट हैं हम राजपूत नहीं कि तुम पहले 562 रियासतें छीनी तो राजपूत चुप, लगातार दशकों तक  ठाकुर किरदार को फिल्मों में विलेन दिखाया तो राजपूत चुप; वह रहते होंगे, जाट नहीं रहेंगे| "जाट जी" व् "जाट देवता" कहकर, सम्मान देकर चाहे सदियों साथ रह लो; परन्तु हमारी अनख पर बैठ कर तो वही मेरी दादी वाली बात, "तभी ना मठ्ठे मिलेंगे तुम्हें"| यह संदेश इस फिल्म को बनाने वालों, फिल्म को फाइनेंस करने वालों और इसको दिखाना अलाउ करने वालों को सख्त लहजे में कन्वे कर दिया जाए सोशल मीडिया व् तमाम प्लेटफॉर्मों से| तभी इनकी अक्ल ठिकाने आएगी वरना यह झूठे-गपोड़ी अपनी बकवासों से बाज नहीं आएंगे|

बाकी पूरी फिल्म का एनालिसिस फुरसत में करूंगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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