आपने अलख ना जगाया
होता तो दिल्ली में आज 22 की जगह 1984 की भाँति 2200 से भी ज्यादा लाशें
बिछी होती| दंगे भड़काने के उकसावे तो 1984 में भी बाहरी लोगों व् बाहरी सोच
के ही थे, परन्तु तब यौद्धेय जागरूकता अभियान समानांतर में नहीं था| अपना
यह क्रेडिट लेने से मत चूकियेगा क्योंकि स्थानीय अजगर, बाहरी मिश्राओं के
उकसावे पे भी नहीं उकसा तो इसके पीछे कहीं-ना-कहीं विगत 4-5 साल से चल रहे
आपके इस अथक अलख की मेहनत भी है|
इसी का असर हुआ जो कोई अजगर सामने नहीं आया, और मिश्रा का नाम लंदन के "दी-टेलीग्राफ", "गार्जियन" जैसे तमाम बड़े अखबारों समेत अमेरिका-यूरोप में हाइलाइट्स में आया और इसी भय से कि कहीं यह दूसरों के कंधों पर रख बंदूक चलाने वाले फंडियों की हकीकत इंटरनेशनल लॉबी में और ज्यादा ना खुलती जावे, इसलिए तुरंत आनन्-फानन में कोर्टों से ले एनएसए व् पीएमओ के दिशानिर्देश जारी हो गए|
अगर अजगर उकस जाता तो यही लोग सब अजगर के काँधे रख के, स्टुडिओज में बैठ के तमाशा देख रहे होते और खबरों पर डिसाइड कर रहे होते कि इस एरिया वाले दंगे को "मुस्लिम बनाम इस जाति दिखावें या उस जाति?"
आप यौद्धेयों ने बड़े दो टूक शब्दों में दो हरफी संदेश दिलवाया है समाज के फंडियों को कि, "फंडियो, फंड रचने जानते हो तो उनको अंजाम भी खुद देना सीखो"|
बाकी व्यक्तिगत तौर पर आहत हूँ इन दंगों से, यह होने ही नहीं चाहियें थे| और जो "अद्दू फ़ोददे", "फद्दू योद्धे" लिखते-बिगोते हैं, बोलो उनको कि यह कंट्रीब्यूशन है हमारे होने का समाज में कि हमारे जागरूकता अभियानों की वजह से आई जागरूकता के चलते फंडी जो अकेले पड़े तो फंडी को अपनी महाप्रलय मचाने की मंशा दो दिन में मन में मसोसनी पड़ी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इसी का असर हुआ जो कोई अजगर सामने नहीं आया, और मिश्रा का नाम लंदन के "दी-टेलीग्राफ", "गार्जियन" जैसे तमाम बड़े अखबारों समेत अमेरिका-यूरोप में हाइलाइट्स में आया और इसी भय से कि कहीं यह दूसरों के कंधों पर रख बंदूक चलाने वाले फंडियों की हकीकत इंटरनेशनल लॉबी में और ज्यादा ना खुलती जावे, इसलिए तुरंत आनन्-फानन में कोर्टों से ले एनएसए व् पीएमओ के दिशानिर्देश जारी हो गए|
अगर अजगर उकस जाता तो यही लोग सब अजगर के काँधे रख के, स्टुडिओज में बैठ के तमाशा देख रहे होते और खबरों पर डिसाइड कर रहे होते कि इस एरिया वाले दंगे को "मुस्लिम बनाम इस जाति दिखावें या उस जाति?"
आप यौद्धेयों ने बड़े दो टूक शब्दों में दो हरफी संदेश दिलवाया है समाज के फंडियों को कि, "फंडियो, फंड रचने जानते हो तो उनको अंजाम भी खुद देना सीखो"|
बाकी व्यक्तिगत तौर पर आहत हूँ इन दंगों से, यह होने ही नहीं चाहियें थे| और जो "अद्दू फ़ोददे", "फद्दू योद्धे" लिखते-बिगोते हैं, बोलो उनको कि यह कंट्रीब्यूशन है हमारे होने का समाज में कि हमारे जागरूकता अभियानों की वजह से आई जागरूकता के चलते फंडी जो अकेले पड़े तो फंडी को अपनी महाप्रलय मचाने की मंशा दो दिन में मन में मसोसनी पड़ी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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