सलंगित खबर पढ़िए और फिर मेरी पोस्ट पढ़िए:
कमाल कर दिया यार, मतलब जिस आदमी ने यह जमीनें थारे नाम की, उसके पाँव धो-धो पीने की बजाए उन्हीं बाबू-बेटा की रोहतक-सोनीपत एमपी सीटों पे गुद्दी टिका दी? रै इस वफाई के बदले कीमें आधे-पद्धे भी वोट दे देते तो थारी वफाई के बदले वफाई की बड़ाई गाई जाती| और टिकाई सो टिकाई वह भी किसको पावर देने के लिए टिकाई? ऐसे को जो चाहे थारी गोभी खोदे, हुड्डा साहब द्वारा तुम्हारे नाम की जमीनें तुमसे वापिस लेवे या तुम्हारी गर्दनें काटने दौड़े? या उस सेण्टर वाले को पावर देने को जो गर्दन काटने दौड़ने वालों पर एक्शन लेना तक थारे समाज के सम्मान में जरूरी नहीं समझता?
खैर, इस बात को जितना हो सके उतना जल्दी दबा लो, वरना लोग सवाल करने लगेंगे कि जब आजतक आप जाट-जमींदारों से दान में मिली जमीनों पर बसे चले आ रहे हो और वह जमीनें आजतक आपके नाम तक नहीं हैं तो यहाँ 5000 साल पहले कब-कौनसी रामायण-महाभारत के कौनसे ऋषि-मुनि तपस्या कर गए? दबवा दो इस आंदोलन को जो आपके 5000 साल पुराने ऐतिहासिक दावों की ऐसी दिन-धौळी पोल-पट्टी खोल रहा है| क्योंकि बामसेफ-दलित-ओबीसी वैसे ही "मूलनिवासी" बनाम "विदेशी" आंदोलन चलाएं हुए हैं| जाट-जमींदार तो फिर भी कुछ ना बोलेंगे, वह तो आपकी ऊपर बिंदु एक वाली हुड्डा साहब से की बेवफाई-सौदाई तक को दरकिनार कर दें शायद, परन्तु कहीं ऐसा ना हो कि आप इस आंदोलन को जितना ऊँचा उठाओ उधर बामसेफ इस खबर को उनकी बात का एक और सबूत बना ले आपके खिलाफ|
ऐसी खबरें पढ़ के मन खिन्नता से भर जाता है और लगने लगता है कि आपमें से 5-10% को छोड़ के, आपके जाटों से सौतेलेपन के व्यवहार में कुछ नहीं बदला| ना "मनसुखि" कानून बनाकर आपको अंग्रेजों से किसानी स्टेटस दिलवाने वाले सर छोटूराम के प्रति बदला और ना धौली की जमीनें थारे नाम करने वाले हुड्डा साहब के प्रति ही दिल पसीजा? बस "गधा, ज्यूँ कुरड़ियों पर रजे" उस कहावत की भाँति खटटर-मोदी ही रिझे फिर भी? रै टोहने तो चले थे, कीमें रू-सर का तो टोह लेते, बैठाया भी तो के यूँ घूँ, जो 4 बार हरयाणा फुँकवा चुका और थारी जमीनें तुमसे छीन चुका? के खट्टर के बाप-दादों ने दी थी थारे ताहिं ये जमीने?
कई मित्र बहुत ही प्यारे हैं आपमें से, आपके समाज से मेरी ही फ्रेंड लिस्ट में भी हैं परन्तु म्हारे बरगे, जो आपको, आपके समाज को अपना कहने को आगे बढ़ते हैं, उनके हौंसले तोड़ती हैं ऐसी खबरें-बातें कि कोई आपसे दोस्ती-भाईचारा निभाए भी तो किस विश्वास पर; कल को हुड्डा साहब की भाँति अपनी ही पीठ में छुर्रा घुपवाने हेतु? छोड़ दो इन नागपुरी फंडियों के प्रभाव में आना, ना कल्चर मिलता इनसे, ना स्वभाव-हाव-भाव|
अनुरोध: आशा है कि यह सलाहें देने पर मेरे साथ बैये वाली नहीं करोगे कि बैये ने सलाह दी और उसी का घोंषला तोड़ बगाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
कमाल कर दिया यार, मतलब जिस आदमी ने यह जमीनें थारे नाम की, उसके पाँव धो-धो पीने की बजाए उन्हीं बाबू-बेटा की रोहतक-सोनीपत एमपी सीटों पे गुद्दी टिका दी? रै इस वफाई के बदले कीमें आधे-पद्धे भी वोट दे देते तो थारी वफाई के बदले वफाई की बड़ाई गाई जाती| और टिकाई सो टिकाई वह भी किसको पावर देने के लिए टिकाई? ऐसे को जो चाहे थारी गोभी खोदे, हुड्डा साहब द्वारा तुम्हारे नाम की जमीनें तुमसे वापिस लेवे या तुम्हारी गर्दनें काटने दौड़े? या उस सेण्टर वाले को पावर देने को जो गर्दन काटने दौड़ने वालों पर एक्शन लेना तक थारे समाज के सम्मान में जरूरी नहीं समझता?
खैर, इस बात को जितना हो सके उतना जल्दी दबा लो, वरना लोग सवाल करने लगेंगे कि जब आजतक आप जाट-जमींदारों से दान में मिली जमीनों पर बसे चले आ रहे हो और वह जमीनें आजतक आपके नाम तक नहीं हैं तो यहाँ 5000 साल पहले कब-कौनसी रामायण-महाभारत के कौनसे ऋषि-मुनि तपस्या कर गए? दबवा दो इस आंदोलन को जो आपके 5000 साल पुराने ऐतिहासिक दावों की ऐसी दिन-धौळी पोल-पट्टी खोल रहा है| क्योंकि बामसेफ-दलित-ओबीसी वैसे ही "मूलनिवासी" बनाम "विदेशी" आंदोलन चलाएं हुए हैं| जाट-जमींदार तो फिर भी कुछ ना बोलेंगे, वह तो आपकी ऊपर बिंदु एक वाली हुड्डा साहब से की बेवफाई-सौदाई तक को दरकिनार कर दें शायद, परन्तु कहीं ऐसा ना हो कि आप इस आंदोलन को जितना ऊँचा उठाओ उधर बामसेफ इस खबर को उनकी बात का एक और सबूत बना ले आपके खिलाफ|
ऐसी खबरें पढ़ के मन खिन्नता से भर जाता है और लगने लगता है कि आपमें से 5-10% को छोड़ के, आपके जाटों से सौतेलेपन के व्यवहार में कुछ नहीं बदला| ना "मनसुखि" कानून बनाकर आपको अंग्रेजों से किसानी स्टेटस दिलवाने वाले सर छोटूराम के प्रति बदला और ना धौली की जमीनें थारे नाम करने वाले हुड्डा साहब के प्रति ही दिल पसीजा? बस "गधा, ज्यूँ कुरड़ियों पर रजे" उस कहावत की भाँति खटटर-मोदी ही रिझे फिर भी? रै टोहने तो चले थे, कीमें रू-सर का तो टोह लेते, बैठाया भी तो के यूँ घूँ, जो 4 बार हरयाणा फुँकवा चुका और थारी जमीनें तुमसे छीन चुका? के खट्टर के बाप-दादों ने दी थी थारे ताहिं ये जमीने?
कई मित्र बहुत ही प्यारे हैं आपमें से, आपके समाज से मेरी ही फ्रेंड लिस्ट में भी हैं परन्तु म्हारे बरगे, जो आपको, आपके समाज को अपना कहने को आगे बढ़ते हैं, उनके हौंसले तोड़ती हैं ऐसी खबरें-बातें कि कोई आपसे दोस्ती-भाईचारा निभाए भी तो किस विश्वास पर; कल को हुड्डा साहब की भाँति अपनी ही पीठ में छुर्रा घुपवाने हेतु? छोड़ दो इन नागपुरी फंडियों के प्रभाव में आना, ना कल्चर मिलता इनसे, ना स्वभाव-हाव-भाव|
अनुरोध: आशा है कि यह सलाहें देने पर मेरे साथ बैये वाली नहीं करोगे कि बैये ने सलाह दी और उसी का घोंषला तोड़ बगाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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