आप हिंदुस्तान की सबसे बड़ी खाप मलिक (गठवाला) खाप के आजीवन निर्विवादित चौधरी रहे| आपकी न्यायप्रियता इतनी मशहूर हुई कि आपके सालों का एक ब्राह्मण से जमीनी-विवाद हुआ| फैसले के लिए आपके नाम की चिट्ठी पाड़ी गई| सालों ने सोचा कि गाम के गोरे पहुँचते ही जीजा की घोड़ी की लगाम पकड़ कर घर तक लाएंगे, दूध-नाश्ता करवा के परस में जाने देंगे तो जीजा और राजी होगा व् फैसला तुम्हारे हक में देगा| दादा चौधरी जैसे ही उनकी सुसराड़ पहुंचे तो साले-सपटों ने योजना मुताबिक करने की सोची| परन्तु दादा ने सालों के हाथ से घोड़ी की लगाम झटक दी और उनको उससे दूर रहने की कहते हुए कहा कि, "मैं इस वक्त सर्वखाप पंचायती बनके आया हूँ कोई मंगता-फंडी या थारा रिश्तेदार नहीं| गाम की परस में चालो| पहले फैसला होगा, उसके बाद अगर थम निर्दोष साबित हुए तो मैं और मेरी घोड़ी थारी देहल चढ़ेंगे|" दादा ने उनके सालों व् ब्राह्मण दोनों पक्ष सुने| सारी सुणके फैसला ब्राह्मण के पक्ष में हुआ|
यह साले सगे थे या चचेरे यह मुझे कन्फर्म नहीं, परन्तु बताते हैं कि उसके बाद दादा चौधरी की न्यायप्रियता की ख्याति बुलंदियों को छूने लगी थी| सलंगित पोस्टर में दादा चौधरी व् गठवाला खाप के स्वर्णिम इतिहास की कुछ बातें लिखी हुई हैं|
विशेष: 19 से 22 फरवरी 2016 की चार काली-स्याह तारीखें जिंदगी-जेहन में इस तरह छप चुकी हैं कि विगत चार साल से दादा घासी जी के प्रकाशोतस्व की बधाईयाँ भी आदान-प्रदान नहीं की थी| वजह थी उनका प्रकाशोतस्व इन्हीं तारीखों में से आज यानि 19 फरवरी को पड़ना| परन्तु वक्त के साथ सब साध के चलना होता है, इसलिए जहाँ एक तरफ यह चार तारीखें 35 बनाम 1 के ताँडव का कलंक याद दिलाएंगी, वहीँ इन्हीं तारीखों में पड़ने वाला दादा घासी जी प्रकाशपर्व यह राह देगा कि अगर भविष्य में दोबारा 35 बनाम 1 जैसी सॉफ्ट-टार्गेटिंग से बचे रहना है तो पुरखों की "किनशिप" को अगली पीढ़ियों को पास करते चलिए|
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