Friday, 21 February 2020

आजकल वाले इंडियन राष्ट्रवाद की परिभाषा बहुत ही सरल है!

तुमको, तुम्हारी जाति-बिरादरी को, तुम्हारे पेशे को, व् तुम्हारी सोच को राष्ट्रवाद से संबंधित तमाम शब्दों-विचारों-व्यवहारों से जोड़ दो; बस हो गया इंडिया का आजकल के राष्ट्रवाद का डेफिनिशन पूरा|

उदाहरण के तौर पर:
1) अगर तुम व्यापारी हो तो, सारा राष्ट्रवाद व्यापार के इर्दगिर्द घड़ लो| इसके हिसाब से जो बोले वह राष्ट्रवादी बाकी सब देशद्रोही; फिर बेशक बोलने वाला स्वधर्मी, सजातीय तक भी क्यों ना हो|
2) अगर तुम पुजारी हो तो, सारा राष्ट्रवाद पुजार के इर्दगिर्द घड लो| इसके हिसाब से जो बोले वह राष्ट्रवादी बाकी सब देशद्रोही; फिर बेशक बोलने वाला स्वधर्मी, सजातीय तक भी क्यों ना हो|

ऐसा है तभी तो कोई माल्या-मोदी-चौकसी हजारों-करोड़ लेकर देश को चूना लगाने पर भी राष्ट्रद्रोही नहीं कहलाता| तभी तो कोई चिमयानन्द, कोई आशाराम, कोई व्रजसला स्त्री को खाना पकाने पर अगले जन्म में कुत्ता बनेगी कहने वाला राष्ट्रद्रोही नहीं कहलाता| और इधर किसान को देखो 2-4 लाख कर्जा भी गबन कर दे तो क्या-क्या धारा नहीं लग जाती उस पर? कोई किसान सड़कों पर आकर हक मांग ले तो सीधा राष्ट्रद्रोह ठोंकते हैं|

अब तुमने अपनी ही गलतियों के चलते वह जमाने तो लाद दिए जब ऐसे फंडी-पाखंडियों के टकणों पर यह कहते हुए कि, "लातों के भूत, बातों से नहीं माना करते" लठ धरते हुए तुम्हारे पुरखे एक पल नहीं लगाया करते, लेशमात्र झिझक नहीं दिखाया करते| उनके जितनी औकात-बिसात तो जिस दिन वापिस पा लोगे तो बात ही कुछ और होगी परन्तु अभी भी किसान-फौजी-खिलाडी या मजदूर जब तक तुम इस तरह से अपने राष्ट्रवाद का जाल नहीं बुनते; तुम्हें सिर्फ एक काम रहेगा| भेड़ों की तरह इधर से उधर, उधर से इधर हाँकेँ जाओगे वह भी उन द्वारा जो राष्ट्रवाद की परिभाषा ऊपर बताई परिपाटी अनुसार घड़ के अपना हर हित साध अपने चौगरदे हर सुरक्षा बाँध चुके हैं|

क्योंकि तुम राष्ट्रवाद का समर्थन उसकी शहीद-ए-आजम भगत सिंह वाली देशभक्ति समझ व् फौजियों वाली परिभाषा समझकर करते रहोगे जबकि जो इसके झंडाबदार बने हुए हैं उन्होंने इसकी परिभाषा ऊपर कहे अनुसार मरोड़ी हुई है| इसलिए तुम समर्थन करके भी ठन-ठन गोपाल गोबर-गणेश बने रहोगे| और यह मरोड़ी हुई है इसका टेस्ट करना है तो कहो इनको जरा शहीद-ए-आजम वाली देशभक्ति से राष्ट्रवाद चलाने की; 99% के राष्ट्रवाद की साँप की भाँति केंचुली सामने पड़ी होगी और तुम्हारी अक्ल ठिकाने पे|

गोबर-गणेश नहीं बने रहना है तो फसलों के दाम नहीं मिलने पर चिल्लाओ-लिखो, किसान पर होते हर जुल्म पर चिल्लाओ-लिखो कि यह राष्ट्रद्रोह है और ऐसा करने वाले असली राष्ट्रद्रोही| जब तक तुमको राष्ट्रद्रोही ठहरा देने वाले को राष्ट्रद्रोही ठहरा देने के खुद के ओप्संस नहीं रखोगे और इन्हीं की भाषा वाला राष्ट्रवाद नहीं अपनाओगे तो "के तो नंगे नहाओगे और के निचोड़ोगे" वाली कहावत की तर्ज पर अपना खोसन ही उतरवाओगे| 

दिखने की कोशिश मत करो, जो हो वह बाई-डिफ़ॉल्ट दिखने दो| तभी वह देख पाओगे जो ऐसे लोग तुमसे छुपाते हैं| इसलिए:

3) अगर तुम किसान-जमींदार हो तो, सारा राष्ट्रवाद किसानी-जमींदारी के इर्दगिर्द घड लो| इसके हिसाब से जो बोले वह राष्ट्रवादी बाकी सब देशद्रोही; फिर बेशक बोलने वाला स्वधर्मी, सजातीय तक भी क्यों ना हो|
4) अगर तुम मजदूर-कर्मचारी हो तो, सारा राष्ट्रवाद मजदूरी-कर्मचारी के इर्दगिर्द घड लो| इसके हिसाब से जो बोले वह राष्ट्रवादी बाकी सब देशद्रोही; फिर बेशक बोलने वाला स्वधर्मी, सजातीय तक भी क्यों ना हो|

जब तक इंडिया में यह वाली राष्ट्रवाद की परिभाषा चलेगी, तब तक तुम भी यही परिभाषा अपना लो; जब यह थक जाएँ इससे तो तुम भी इसको छोड़कर शुद्ध सरदार भगत सिंह व् फौजियों वाली देशभक्ति की परिभाषा पर लौट आना| वरना तो नाकों चने चबाने को और तैयार कर लो खुद को|

उद्घोषणा विशेष: व्यापारी-पुजारी-किसानी-जमींदारी-कर्मचारी हर जाति-वर्ण-धर्म के लोग इन पेशों में हैं; कहीं अब जातिवाद के काटे हुए चूरणे चले आवें इस पोस्ट में जातिवाद ढूंढने|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: