मेरे सामने जब-जब यह बात आई, इस बात को उठाने वाले/वालों से मैंने दो
मुख्य पहलुओं पर जवाब मांगे; जिनका या तो किसी के पास हल नहीं मिला या मिला
तो यह कैसे होगा इसका विजन नहीं दिखा अभी तक| क्या हैं वह दो पहलू?
पहलू एक:
35 बनाम 1 की समस्या से स्थाई निजात पाने का पहला हल आता है कि सिखिज्म में चलते हैं| मैंने कहा एक बात हो जाए तो सिख धर्म में चलने से बेहतर कुछ है ही नहीं| क्या बात हो जाए? आज मैं जहाँ-जिस स्थिति में जैसे भी हूँ वहां मेरी ऐतिहासिक विरासत की एक अच्छी खासी बानगी है, जो
"दादा नगर खेड़ा" के सर्वधर्म-सर्वजातीय जेंडर न्यूट्रल मानवीय आध्यात्म,
"उदारवादी जमींदारी" के सीरी-साझी वर्किंग-कल्चर,
"सर्वखाप" की डिसेंट्रल सोशल इंजीनियरिंग व् मिल्ट्री कल्चर के इतिहास,
"हरयाणवी/पंजाबी भाषा व् भेष" के कस्टम और
"भाईचारे" की सर छोटूरामी राजनीति व् महाराजा हर्षवर्धन से ले महाराजा सुरजमली शाहनीति
के पाँच आधारों पर बुनी हुई है| और यह भी कि इन पाँचों आधारों का जहाँ हूँ, जैसे हूँ, वहाँ के धर्म में भी हेय का, तुच्छ समझने का स्थान है; जिससे मैं उदास व् आशाहीन नहीं भी हूँ तो खुश भी नहीं हूँ| तो अगर सिखिज्म से बात की जाए और इन पाँचों आधारों को सिखिज्म में, उनकी गुरुबाणियों में बराबरी का स्थान दिया जावे तो मैं सबसे पहले दौड़ कर सिखिज्म अपना लूँ| अन्यथा अगर बिना इनको साथ लिए सिखिज्म में जाता हूँ तो यह सब ठीक वैसे ही बेवारसी हो जाती हैं जैसे 1469 से पहले के इतिहास बारे आज सिख बना सजातीय भाई उससे, उसके 1469 से पहले के इतिहास व् पिछोके बारे पूछने पर वह 90% मूक हो जाता है| तो कल को 2020 से पहले के इतिहास पर क्या मैं भी ऐसे ही मूक नहीं हो जाऊंगा, अगर इन 5 आधारों की विरासत को साथ लिए व् जायज स्थान दिलवाये बिना सिखिज्म में जाता हूँ तो? इस जायज स्थान का ही तो सारा मसला है और यह वहाँ जाने पर भी कायम रहा तो?
यह सवाल मैंने बार-बार बड़े-छोटे बहुत से साथियों के आगे उठाया है परन्तु अभी तक हल नहीं आया किसी की तरफ से|
पहलू दो:
आर्य-समाज का आधार है 35 बनाम 1 वाली कम्युनिटी| आर्य-समाज के 95 से ले 98% गुरुकुल, धाम, मठ सब हमारे पुरखों की दान दी जमीनों पर हमारे पुरखों के दान किये धन से बनी हुई हैं| और 70-80% से ज्यादा का संचालन तो आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 1 वालों के ही पास है| और 2008-2012 के इर्दगिर्द आर्यसमाज की "एक हांडी में दो पेट" वाली दोगली नीतियों को क्रिटिसाइज करती मेरी पोस्टें आज भी सोशल मीडिया पर किसी न किसी रूप में उपस्थित हैं| उस वक्त एक-दो भाई ही होते थे जो ऐसी पोस्टें निकालते थे| यह इसलिए बोल रहा हूँ कि जिनको 2016-17-18-19 में इन पर लिखने की सूझी, उनमें से बहुतों की प्रेरणा हमारी एक-दो की लिखी 2008-2012 से चली पोस्टें रही हैं, जो कि बहुत से भाई मुझे खुद बताते भी हैं| तो यह दिखाता है कि मैं आर्यसमाज के मुद्दे पर ना तो इमोशनल हूँ, ना सॉफ्टकॉर्नर रखता हूँ और ना ही एक दम कटटर विरोध में जा खड़ा हुआ हूँ; मैं आर्यसमाज को लेकर कुछ हूँ तो "गंभीर चिंतन में लीन"| चिंतन में लीन कि कैसे फंडियों के कब्जे से आर्यसमाज को मुक्त करवाया जाए, कैसे इसमें से "एक हांडी में दो पेट" वाली बातें निकलवाई जाएँ व् कैसे इसमें ऊपर बताये 5 आधारों को सर्वोच्च स्थान दिलवाया जाए|
सिखिज्म या किसी अन्य धर्म या कहो कि अपना ही कोई नया धर्म स्थापित करने से पहले मैं पहलू दो की हरसम्भव हल की कोशिश करना चाहता हूँ और मैंने या कहिये कि हमने यह कोशिश की इसका हरसम्भव आर्यसमाजी को आभास हो| इस आभास होने तक पहुँचने के बाद भी चीजें नहीं बदलती हैं तो फिर मैं पहलु एक सिखिज्म के साथ ट्राई करना चाहूँगा| सिखिज्म पहलु एक को स्वीकारता है तो सिखिज्म में जाया जायेगा अन्यथा फिर इन 5 आधारों के साथ अपना खुद का धर्म स्थापित करना ही आखिरी रास्ता होगा|
इस विचार, इस स्ट्रेटेजी पर अपने विचार जरूर देवें, ताकि मुझे भी समझ आये कि मैं साथियों की सोच से कितना दूर हूँ और कितना करीब, यह सब जो लिखा यह कितना सम्भव है व् कितना असम्भव, कितना सही है व् कितना गलत| निसंदेह मैं हर दूर, हर असम्भव व् हर गलत को ठीक करने की जी-जान से कोशिश करूँगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
पहलू एक:
35 बनाम 1 की समस्या से स्थाई निजात पाने का पहला हल आता है कि सिखिज्म में चलते हैं| मैंने कहा एक बात हो जाए तो सिख धर्म में चलने से बेहतर कुछ है ही नहीं| क्या बात हो जाए? आज मैं जहाँ-जिस स्थिति में जैसे भी हूँ वहां मेरी ऐतिहासिक विरासत की एक अच्छी खासी बानगी है, जो
"दादा नगर खेड़ा" के सर्वधर्म-सर्वजातीय जेंडर न्यूट्रल मानवीय आध्यात्म,
"उदारवादी जमींदारी" के सीरी-साझी वर्किंग-कल्चर,
"सर्वखाप" की डिसेंट्रल सोशल इंजीनियरिंग व् मिल्ट्री कल्चर के इतिहास,
"हरयाणवी/पंजाबी भाषा व् भेष" के कस्टम और
"भाईचारे" की सर छोटूरामी राजनीति व् महाराजा हर्षवर्धन से ले महाराजा सुरजमली शाहनीति
के पाँच आधारों पर बुनी हुई है| और यह भी कि इन पाँचों आधारों का जहाँ हूँ, जैसे हूँ, वहाँ के धर्म में भी हेय का, तुच्छ समझने का स्थान है; जिससे मैं उदास व् आशाहीन नहीं भी हूँ तो खुश भी नहीं हूँ| तो अगर सिखिज्म से बात की जाए और इन पाँचों आधारों को सिखिज्म में, उनकी गुरुबाणियों में बराबरी का स्थान दिया जावे तो मैं सबसे पहले दौड़ कर सिखिज्म अपना लूँ| अन्यथा अगर बिना इनको साथ लिए सिखिज्म में जाता हूँ तो यह सब ठीक वैसे ही बेवारसी हो जाती हैं जैसे 1469 से पहले के इतिहास बारे आज सिख बना सजातीय भाई उससे, उसके 1469 से पहले के इतिहास व् पिछोके बारे पूछने पर वह 90% मूक हो जाता है| तो कल को 2020 से पहले के इतिहास पर क्या मैं भी ऐसे ही मूक नहीं हो जाऊंगा, अगर इन 5 आधारों की विरासत को साथ लिए व् जायज स्थान दिलवाये बिना सिखिज्म में जाता हूँ तो? इस जायज स्थान का ही तो सारा मसला है और यह वहाँ जाने पर भी कायम रहा तो?
यह सवाल मैंने बार-बार बड़े-छोटे बहुत से साथियों के आगे उठाया है परन्तु अभी तक हल नहीं आया किसी की तरफ से|
पहलू दो:
आर्य-समाज का आधार है 35 बनाम 1 वाली कम्युनिटी| आर्य-समाज के 95 से ले 98% गुरुकुल, धाम, मठ सब हमारे पुरखों की दान दी जमीनों पर हमारे पुरखों के दान किये धन से बनी हुई हैं| और 70-80% से ज्यादा का संचालन तो आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 1 वालों के ही पास है| और 2008-2012 के इर्दगिर्द आर्यसमाज की "एक हांडी में दो पेट" वाली दोगली नीतियों को क्रिटिसाइज करती मेरी पोस्टें आज भी सोशल मीडिया पर किसी न किसी रूप में उपस्थित हैं| उस वक्त एक-दो भाई ही होते थे जो ऐसी पोस्टें निकालते थे| यह इसलिए बोल रहा हूँ कि जिनको 2016-17-18-19 में इन पर लिखने की सूझी, उनमें से बहुतों की प्रेरणा हमारी एक-दो की लिखी 2008-2012 से चली पोस्टें रही हैं, जो कि बहुत से भाई मुझे खुद बताते भी हैं| तो यह दिखाता है कि मैं आर्यसमाज के मुद्दे पर ना तो इमोशनल हूँ, ना सॉफ्टकॉर्नर रखता हूँ और ना ही एक दम कटटर विरोध में जा खड़ा हुआ हूँ; मैं आर्यसमाज को लेकर कुछ हूँ तो "गंभीर चिंतन में लीन"| चिंतन में लीन कि कैसे फंडियों के कब्जे से आर्यसमाज को मुक्त करवाया जाए, कैसे इसमें से "एक हांडी में दो पेट" वाली बातें निकलवाई जाएँ व् कैसे इसमें ऊपर बताये 5 आधारों को सर्वोच्च स्थान दिलवाया जाए|
सिखिज्म या किसी अन्य धर्म या कहो कि अपना ही कोई नया धर्म स्थापित करने से पहले मैं पहलू दो की हरसम्भव हल की कोशिश करना चाहता हूँ और मैंने या कहिये कि हमने यह कोशिश की इसका हरसम्भव आर्यसमाजी को आभास हो| इस आभास होने तक पहुँचने के बाद भी चीजें नहीं बदलती हैं तो फिर मैं पहलु एक सिखिज्म के साथ ट्राई करना चाहूँगा| सिखिज्म पहलु एक को स्वीकारता है तो सिखिज्म में जाया जायेगा अन्यथा फिर इन 5 आधारों के साथ अपना खुद का धर्म स्थापित करना ही आखिरी रास्ता होगा|
इस विचार, इस स्ट्रेटेजी पर अपने विचार जरूर देवें, ताकि मुझे भी समझ आये कि मैं साथियों की सोच से कितना दूर हूँ और कितना करीब, यह सब जो लिखा यह कितना सम्भव है व् कितना असम्भव, कितना सही है व् कितना गलत| निसंदेह मैं हर दूर, हर असम्भव व् हर गलत को ठीक करने की जी-जान से कोशिश करूँगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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