Saturday, 7 March 2020

महिला दिवस 8 मार्च विशेष: मैं जिस कल्चर से आता हूँ उसमें महिला के ख़ास स्थान व् महत्वता बारे 21 अलौकिक बिंदु!

1) उसमें विधवा को पुनर्विवाह की स्वेच्छित आज्ञा तब से है जब से शायद यह सृष्टि जानी गई है|
2) उसमें "देहल-ध्याणी की औलाद" व् "खेड़े का गौत" के नियमानुसार पिता के गौत की बजाए माँ का गौत भी औलाद का गौत हो सकता है|
3) उसमें "दादा नगर खेड़ों" में शतप्रतिशत धोक-ज्योत का प्रतिनिधित्व व् आधिपत्य औरत के हाथ में है| उसका यह प्रतिनिधित्व सुनिश्चित रहे इसलिए पुरखों ने इन खेड़ों में "मर्द-पुजारी" रखने का कांसेप्ट ही नहीं रखा|
4) उसमें "साल का नौ मण अनाज, दो जोड़ी जूती व् दो तीळ" के नियम के अनुसार तलाकशुदा औरत को पति की तरफ से तब तक गुजारा-भत्ता मिलने का नियम रहा है जब तक वह औरत दूसरी जगह ब्याही नहीं जाती या तलाक का अंतिम फैसला नहीं हो जाता था|
5) उसमें गाम-गौत-गुहांड के नियम के तहत 36 बिरादरी व् सर्वधर्म की बहन-बेटी को अपनी बहन-बेटी मानने का बेटियों को सुरक्षा देने का नियम है| जहाँ खेड़ा बहुगोतीय होता है वहां यह नियम गौत के लिए लागू होता है| जो इस नियम को निभा देता है वह घर बैठा ही साधू है, उसको किसी अन्य सन्यास की जरूरत नहीं|
6) जिस गाम में बारात जाती है वहां जिस गाम से बारात गई है वहां की 36 बिरादरी व् सर्वधर्म की लड़कियों की मान करके आने का नियम है|
7) जेंडर सेंसिटिविटी बरकरार रखने हेतु गामों के नाम में "खेड़ा" होता है तो "खेड़ी" भी होती है, "गढ़" होता है तो "गढ़ी" भी होती है, "माजरा" होता है तो "माजरी" भी होती है, "कलां" व् "खुर्द" भी होती हैं|
8) कम्युनिटी गैदरिंग की इमारतों के नाम त्रीलिंग रखे गए, जैसे "परस", "चौपाल", "चुप्याड" आदि; जबकि इन्हीं के समक्ष अन्य कल्चरों में शब्द मिलेंगे, "कम्युनिटी हाल", "कम्युनिटी सेण्टर", "सामुदायिक केंद्र" आदि|
9) मेरे पिता तक वाली पीढ़ियों में लगभग हर किसी की औसतन 4-5-6 बुआएँ-बहनें मिलती हैं, लेखक की खुद की आठ बुआ हैं| जो दिखाता है कि इस कल्चर के पुराने वक्तों में लड़का-लड़की के जन्म को समान दृष्टि से देखा जाता रहा है| एक्स-रे टेक्नोलॉजी आने के बाद सर्वसमाज इससे प्रभावित हुआ है|
10) ब्याह-शादी में दहेज की समस्या को तीव्र गति से सुलझाना मेरे कल्चर की सामाजिक संस्थाओं की टॉप प्रायोरिटी रहा है|
11) सती-प्रथा मेरे कल्चर में कभी नहीं रही| यह नहीं होने की वजह से कुछ दम्भी समाजों ने मेरे कल्चर को कूषित-दूषित तक अपनी लेखनियों में कहा है|
12) विवाह में गौत छोड़ने के नियम में जहाँ मर्द की तरफ का सिर्फ एक गौत (पिता का) छोड़ा जाता है वहीँ औरत की तरफ से माँ-दादी-नानी के गौत छोड़े जाते रहे हैं; जो दिखाता है कि औरत का आधिपत्य ऐसे मामलों में मर्द से ज्यादा रहा है|
13) सम्पत्ति बंटवारे में नियम रहा है कि, "बेटी जब तक बाप के घर तो बाप के खाते, जब ब्याह दी जाए तो पति के खाते"| 2014 में सरकार ने इस पर आकर नियम बनाया है अन्यथा उससे पहले इन पहलुओं बारे मेरे कल्चर जैसे नियम विरले ही कल्चरों में देखने को मिलते हैं|
14) हरिद्वार से हुगली के गंगा-घाटों व् वृन्दावन के विधवा-आश्रमों में मेरे कल्चर की औरत नहीं जाती (कोई अपवाद आजकल में होने लगा हो तो कह नहीं सकता), बल्कि वह "बेटी जब तक बाप के घर तो बाप के खाते, जब ब्याह दी जाए तो पति के खाते" नियम के तहत शान से दिवंगत पति की प्रॉपर्टी की आजीवन इकलौती मालकिन वास्तव में रहती आई है| जबकि विधवा-आश्रम कल्चर में उसको विधवा होते ही पति की प्रॉपर्टी से बेदखल कर विधवा-आश्रमों में फेंक दिया जाता रहा है|
15) क्योंकि मेरे कल्चर ने मर्द-पुजारी के कांसेप्ट को खेड़ों में मान्यता ही नहीं दी, इसलिए हमारे यहाँ "देवदासी" कल्चर नहीं मिलता|
16) हमारे यहाँ "प्रथमव्या व्रजसला लड़की का पुजारियों द्वारा भोग" लगाने की परम्परा नहीं होती, जो कि पूर्वोत्तर राज्यों में पाई जाती है, जिसके तहत पहली बार पीरियड आई लड़की का मंदिर के पुजारी सामूहिक तौर पर मंदिर के गर्भगृह में सीलभंग कर रहे होते हैं और उसी समय समानांतर में लड़की का परिवार बाहर मंदिर परिसर में जनता को भोज छका रहा होता है|
17) मेरे कल्चर के किसी भी ब्याह की पूरी प्रक्रिया दूल्हे-दुल्हन की माँ द्वारा "भात नयोंदने" से शुरू हो "भात मोड़ने" पर खत्म मानी जाती है, अन्यथा वह ब्याह ही नहीं माना जाता या समाज उसको सम्मान नहीं देता| माँ पक्ष जब तक भात नहीं भरता व् माँ भात नहीं ले लेती, तब तक ब्याह की कोई प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती|
18) मेरे यहाँ डांस में औरत को सम्पूर्ण प्राइवेसी दी गई है; जैसे "खोड़िया डांस"|
19) औरत को इतना स्वछंद माहौल मेरे कल्चर में मिलता रहा है कि रातों के 2-4 बजे भी बेटियां "कातक न्हाण" जाया करती थी तो किसी मर्द की जुर्रत नहीं होती थी कि वह उन राहों-रस्तों पर फटक भी जाए; इतना शर्म-ह्या का कल्चर रखा गया पुरखों द्वारा| हालाँकि आज यह व्यवस्था इतनी प्रभावित हुई है कि जैसे शहरों में सड़कों पर बेटी को गैर-वक्त निकालते वक्त डर लगता है ऐसे ही गामों में लगने लगा है| लेखक व् उनकी टीम द्वारा उनके पैतृक गाम में "लेडीज-चिल्ड्रन जॉगिंग पार्क" बनाने की मुहीम इसी कल्चर को वापिस बहाल करने हेतु की जा रही है|
20) युद्धों-धाड़ों-हमलों में बीर-मर्द कंधे-से-कंधा मिलाकर कर लड़ते आये हैं, जिसको इस कल्चर की भाषा में "यौद्धेय-यौद्धेया" कहा गया है|
21) इस कल्चर में औरत "जौहर" नहीं करती बल्कि पति युद्ध में मारा जाये तो महारानी किशोरी की भाँति अपने पुत्रों को युद्ध के लिए सिंगार उनका मनोबल बन दिल्ली तक जीत लिया करती हैं|

और यह सब जिस मेरे कल्चर में पाया जाता है उसका नाम है खापोलॉजी सोशल थ्योरी का "उदारवादी जमींदारी कल्चर"|

विशेष: हो सकता है कि किसी पाठक को इन बिंदुओं में कुछ अटपटा या आउटडेटिड भी लगे| लेखक का उद्देश्य जैसे नियम रहे हैं वैसे बताना था, पाठक अपने विवेक से पढ़ें| अगर मुझसे कोई बिंदु छूट गया हो तो उसको जोड़ने हेतु पाठकों का धन्यवाद|

इसी के साथ आप सभी को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाऐं!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: