Wednesday, 29 April 2020

दादा नगर खेड़ों पर कोई मूर्ती कोई क्यों नहीं होती, यह मर्द पुजारी रहित क्यों होते हैं और इनमें धोक-ज्योत में औरत को 100% लीडरशिप क्यों दी गई है?

यह तीन सवाल अक्सर मुझसे कई युवा साथी उत्सुकता में पूछते हैं| जवाब इस प्रकार हैं:

1 ) दादा नगर खेड़ों में मूर्ती क्यों नहीं रखी जाती: यह एक निराकार प्रकृति स्वरूप पुरख धाम हैं, जिनके भगवान धरती पर वास्तव में हो कर गए, पुरखे होते हैं| इसलिए हमारे यहाँ 13 दिन बैठ कर मरने वाले की अच्छी-बुराई सब जिक्र कर, उसके प्रति सबका मन साफ़ किया जाता है, व् उसको भी पुरखों शामिल करवाया जाता है| मूर्ती इसलिए नहीं होती कि हमें पुरखों का धंधा करने/बनाने की मनाही है| मूर्ती नहीं होने की अगली वजह यह है कि फंडी रोज-रोज नए-नए भगवान घड़ के धर्म मार्किट में उतारते रहते हैं| और कमाई कायम रहे इसलिए ये कोशिश करते हैं कि इनको किसी के वंश से जोड़ के उसके वंश का पुरखा घोषित कर दें| तो ऐसे में पुरखों का चिंतन-मनन रहा कि इनका तो रोज का काम है, नए-नए भगवान घड के ले आना तो क्या हमें यही काम और हमारी कमाई इसीलिए के लिए रह गई कि यह रोज-रोज नया भगवान लावें और हम इनके नए-नए घर बना के देते जावें? तो अंत मंथन यह दिया पुरखों ने कि इनसे कौन बहस में पड़े, तुम हमारी औलादो ऐसा करना कि यह अगर कोई नया भगवान घड़े के लावें और तुम्हारे वंशों से जोड़ पुरखा बताने भी लगें तो कह देना कि अगर यह भगवान हमारा पुरखा था भी तो यह हमारे दादा नगर खेड़ों में स्वत: निहीत हो जाता है क्योंकि दादा नगर खेड़े पुरखों का ही तो धाम हैं और बात खत्म| वरना यह तब तक तुमको इन फंडों के नाम पर निचोड़ते रहेंगे जब तक तुमको खाने के लाले तक ना पड़ जाएं| इनसे "पैंडा छूटा रहे", इसीलिए पुरखों ने दादा नगर खेड़े मूर्ती रहित ही रखे| अगली मुख्य वजह इसकी यह है कि मूर्ती-पूजा से इंसान की सोच में जड़त्व पैदा होता है| वह अगर मूर्तिपूजा का व्यापार नहीं करना जानता है तो वह मूढ़मति बनता जाता है| इंसान में चढ़ावे के जरिये रिश्वतखोरी की प्रवृति पड़ने के चांसेज बढ़ते हैं व् वह करप्शन को भी सही मानने की प्रवृति की ओर बढ़ने लगता है| इसलिए इन वजहों से दादा नगर खेड़ों में मूर्ती नहीं रखी जाती|

2) दादा नगर खेड़े मर्द-पुजारी रहित क्यों होते हैं?: पुरखों ने इसकी दो मुख्य वजहें बताई| नंबर एक: धर्म के स्थल पर बैठे 99% मर्द साधु-बाबा-पुजारी चिलमधारी-नशेड़ी-अफीमची पाए जाते हैं| और इनके सानिध्य में नौजवान बालक का जाना बेहद खतरनाक होता है| यह लोग नौजवानों को नशे-पते की बुरी लत्त लगा देते हैं जो आज के दिन चिट्टे तक पहुँच गई है| इसलिए पुरखों ने मर्द पुजारी सिस्टम नहीं रखा| नंबर दो: 99% साधू-पुजारी-बाबा चरित्रहीन होते हैं, वासनायुक्त पाए जाते हैं; जिनको ऐसे स्थलों की चाबी सौंपना जहाँ औरतें धोक-ज्योत करती हों, समाज के चाल-चलन का सत्यानाश करना है| यह गाम की बहु-बेटियों पर गंदी नजरें रखते हैं और बच्चों को भी उसी राह पर डालते पाए जाते हैं| जहाँ मर्द-पुजारी सिस्टम के तहत इनको ज्यादा छूट व् एकाधिकार मिल जाता है वहां तो यह इतने निर्भय हो जाते हैं कि अपनी वासनापूर्ति के लिए मंदिरों में दलित-ओबीसी की लड़कियों को खुल्लेआम देवदासियां रखने लगते हैं| साउथ इंडिया में बहुत टेम्पल्स इसके साक्षी हैं| यह यहीं तक नहीं रुकते अपितु औरत पर मंदिर में चढ़ने बारे भी व्रजसला होने या नहीं होने की तालिबानी शर्तें तक थोंपने लगते हैं| इसलिए पुरखों ने इन दो वजहों से दादा नगर खेड़ों में मर्द पुजारी का कांसेप्ट ही नहीं रखा| औरत व्रजसला हो या ना हो, सधवा हो या विधवा हो, अच्छे से नहा-धो के जाओ और अपने हाथों से अपने तरीके से धोक-ज्योत करो, अपनी मर्जी से प्रसाद बाँट के आ जाओ|

3) दादा नगर खेड़ों में औरत को धोक-ज्योत में 100% लीडरशिप क्यों है?: कई बार जब एंटी-हरयाणा, एंटी-खाप मीडिया ने इनको मर्दवाद का निशाना बनाया तो यह लोग खुद को डिफेंड करने में फ़ैल रहे क्योंकि इन लोगों ने पुरखों की तरह एक तो मंथन-चिंतन करने छोड़ दिए और दूसरा अपने कल्चर-कस्टम-आध्यात्म के अतिरिक्त सबके देई-दयोते जैसे माथे गधी बैठा ली हो ऐसे बैठा लिए| अब जिसने धक्के माथे गधी धार रखी हो, उसको खुद के कल्चर का इतना उम्दा जेंडर सेन्सिटिवटी का ऐसा पहलु दिख भी भला कहाँ से जायेगा जो हमारे खेड़ों के अतिरिक्त कहीं और किसी भी धर्म-पंथ में पाया ही नहीं जाता| और वह है कि हमारा आध्यात्म औरत को धर्म-धोक-ज्योत में ही 100% लीडरशिप दिए हुए है| हमारे समाज के मर्द सिर्फ इन खेड़ों की मेंटेनेंस और दिशा-दशा सही रखते हैं, अन्यथा ब्याहँदड़ तक की उम्र पहुँचने तक मर्द को धोक भी खुद औरत मरवाती है इन खेड़ों पर| सनातनी-मुस्लिम-ईसाई किसी में आपको औरत को इतनी स्वायत्ता देखने को नहीं मिलेगी जितनी हमारे खेड़ों पर है| और इसकी वजह पुरखों ने दी कि औरत अपने परिवार-कौम के प्रति सबसे सेंसिटिव होती है| मुसीबत की घड़ियों में वो सबसे पहले अपने पुरखों का स्मरण करती है| बस औरत का यही स्मरण व् सम्पर्ण इसकी सबसे बड़ी वजह है कि क्यों औरत को 100% लीडरशिप है दादा नगर खेड़ों में|

विशेष: दादा नगर खेड़ा का कांसेप्ट उदारवादी जमींदारी के प्राकृतिक आध्यात्म का आधार बिंदु है| यह पंजाब, हरयाणा, दिल्ली, वैस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान व् तमाम उदारवादी जमींदारी जहाँ तक फैली है वहां-वहां तक पाए जाते हैं| इस धरा पर क्षेत्र के हिसाब से दादा नगर खेड़े के पर्यायवाची हैं जैसे बाबा भूमिया, दादा भैया, गाम खेड़ा, नगर खेड़ा, पट्टी खेड़ा, भूमिया खेड़ा, जठेरा, बड़ा बीर व् एक-दो नाम और हैं जो अभी कन्फर्म करने बाकी हैं|

बोल नगर खेड़े की जय!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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