Monday, 4 May 2020

कैसे आर्य प्रतिनिधि सभा, अपने मूल उद्देश्य व् समाज से खुद को छिंटक चुकी है?

मेरे निडाणे में दूसरे पान्ने से मेरा एक भतीजा एक दिन व्हाट्स-एप्प परमुझे मैसेज भेजता है कि काका, मुझे अपने "दादा नगर खेड़े बड़े बीर" बारे कुछ सवालों के जवाब चाहियें| मैंने कहा हाँ, पूछो क्या बात हुई? वार्तालाप कुछ यूँ चली:

भतीजा: काका, हमारे स्कूल में आर्य प्रतिनिधि सभा वाले आये थे और कह रहे थे कि तुमको दादा नगर खेड़े की सच्चाई बता दी तो तुम इसको उखाड़ के फेंक दोगे?

सुन के मैं अचिंभित कि जिस आर्य समाज की मूर्ती पूजा नहीं करने के कांसेप्ट का आधार ही ये "दादा नगर खेड़े" रहे हों, उसी की आर्य प्रतिनिधि सभा ऐसे क्यों बोलेगी? आखिर किसके इशारों पे चलने लगे हैं ये आर्य प्रतिनिधि सभा वाले आजकल? मैंने मेरे बचपन से ले और कॉलेज टाइम लग दर्जनों कार्यक्रम करवाए इनके गाम में, पहले तो इनका कभी यह रूप नहीं देखा था, अब कौन फंडी घुस आया है इनमें जो यह लगे यूँ खुद को ही भुलाने की राह चलने? मैंने भतीजे से पूछा ऐसा क्यों, कहा उन्होंने?

भतीजा: काका, यह तो पता नहीं परन्तु उन्होंने "खेड़ों" बाबत बहुत अशोभनीय बोला?
मैं: हम्म, क्या कह रहे थे?
भतीजा: कह रहे थे कि "खेड़े" तो मुस्लिमों की निशानी हैं| देखो मुस्लिम भी मूर्ती नहीं पूजते, खेड़ों में भी मूर्ती नहीं होती| देखो, निडाना के खेड़े का मुंह पश्चिम की तरफ है, और पश्चिम में ही मक्का-मदीना है| यह तो मुस्लिमों के "कोला-पूजन" की निशानी हैं, इनको तो तोड़ देना चाहिए|

सुन के पहले तो बहुत परेशान हुआ, फिर मन में टीस उठी कि इन आर्य समाजियों को क्या हुआ जो यह इतनी उल्टी राह चलने लगे? ऐसा, सोच ही रहा था कि

भतीजा बोला: काका जवाब नहीं हैं क्या? क्या वह वाकई में सच कह रहे हैं? मैंने कई जगह पूछा परन्तु संतुष्टिजनक जवाब नहीं मिले| फिर कई दादा-ताऊओं ने आपका नाम लिया कि तेरे फ्रांस वाले काका फूल से पूछ, उसने गाम के बड़े बूढ़ों से बहुत शिक्षा और नॉलेज ली है इन चीजों पे|

मैं, भतीजे को उसके सवालों के जवाब देने से पहले सोचता रहा कि एक तो मुझे समझ यह नहीं आती कि अगर मुझे, मेरे कल्चर की बैटन को संभालने वाले लोग ग्राउंड पर ही नहीं दिख रहे हैं और बच्चों को मुझ तक पहुंचना पड़ता है इन जानकारियों के लिए तो यह गाम वाले क्या सिर्फ ताश खेलने, हुक्के पाड़ने औरआपस में बैर-बिसाहणे को गाम की गलियों में भटकने हेतु जन्म ले के आते हैं? आखिर क्यों नहीं है ऐसा सिस्टम जो इन बच्चों को वहीँ की वहीँ, सटीक बचपन में इन चीजों की सही-सही जानकारियां पास कर सकें? और फंडी दुश्मनों से आगाह रहना सीखा सकें? मैं खेतों में या अन्य प्रोफेशनल काम में व्यतीत होने वाले वक्त की नहीं कहता, परन्तु ताश खेलने या हुक्के पाड़ने के वक्त में से कम-से-कम 1-2 घंटा तो अपनी कल्चरल-कस्टमरी विरासत अपनी पीढ़ियों को पास करने में लगा ही सकते हैं? खैर, मन मायूस सा मसोस के भतीजे के सवालों के जवाब देने शुरू किये|

मैं: अपने जिंद के भूतेश्वर मंदिर का मुंह मक्का-मदीना की ही तरफ है तो क्या इससे वो मंदिर मुसलमान हो गया? दिल्ली की जामा मस्जिद का मुंह दक्षिण में है, वह क्या हुई फिर इन फंडियों के लॉजिक से? और तो और जिंद के एसडी स्कूल के बगल वाले खुद आर्य समाज मंदिर का मुंह पश्चिम में हैं, तो क्या यह खुद भी मुस्लिम हो गए? इनके अनुसार मंदिर का मुंह पूर्व में होना चाहिए या पश्चिम में? पहले तो इनको बोलो कि अपने सारे मंदिरों का मुंह इनकी एक निर्धारित दिशा में करें और फिर यह वाहियात काटें| तो "दादा नगर खेड़े" का मुंह पश्चिम दिशा में क्यों है का जवाब क्लियर हुआ?
भतीजा: हाँ, काका बिल्कुल हुआ| मुझे मिलने दो उस प्रतिनिधि सभा वाले को अगली बार, उसकी तो|
मैं: "खेड़ों में मूर्ती नहीं होती और मुस्लिम भी मूर्ती पूजा नहीं करता, इसलिए खेड़े मुस्लिमों की निशानी हैं", उसने ऐसा बोला ना?
भतीजा: हाँ!
मैं: उसको बोल कि अबे गधे जिस आर्य समाज का तू प्रतिनिधि है, उसका तो पूरा कांसेप्ट ही मूर्ती पूजा नहीं करने पे टिका हुआ है, तो फिर तेरे ही इस वाहियात लॉजिक से तू कितना बड़ा मुसलमान होना चाहिए?
भतीजा, जवाब सुन के हँसता ही जा रहा| और बोला: यार काका, मुझे यह जवाब उस वक्त क्यों नहीं सूझा?
मैं: एक तू स्कूल में था, ऊपर से उसने यह चीजें बताने से पहले, निष्ठा-आस्था-श्रद्धा के कैप्सूल गिटका के फिर तुझे अपनी वाहियात सुनाई होंगी| बस इसीलिए|
मैं: तेरा अगला सवाल, खेड़े 'कोला पूजन' की निशानी हैं| सन 1620 में दादीराणी समां कौर गठवाळी की प्रेरणा पर मलिक गठवाला खाप ने सर्वखाप का आह्वान कर कलानौर रियासत का कौला तोड़ दिया था, तो बताओ जब सर्वखाप ने पूरी रियासत ही नहीं छोड़ी, तो यह खेड़े, जो अगर कोले होते तो इनको छोड़ते वो?
भतीजा: बिल्कुल नहीं छोड़ते|
मैं: तो मिल गए उत्तर, तेरे सवालों के?
भतीजा: काका मिल भी गए और ऐसे मिल गए कि मुझे वो प्रतिनिधि सभा वाला कहीं मिल गया अगली बार तो खरी-खरी सुनाऊंगा|
मैं: खरी-खरी ही सुनाना, उसका खोपर मत खोल देना| और उसको कहना, कहना क्या बल्कि पूछना कि कौन फंडी तेरे पीछे लगे हुए हैं, जिनके दबाव या भय में तू आर्य समाज को उसके पथ से ही भटका ले चला है? हमें बता उन शक्तियों बारे, मिलके उनसे तेरी भी रक्षा करेंगे और आर्य समाज में आई कमियों को भी दूर करेंगे|

विवेचना: कमियां तो आई हैं आर्य समाज में तभी तो फरवरी 2016 हो गया हरयाणा में| इनमें कमियां ना आई होती, फंडी घुसपैठियों ने इनकी विचारधारा (जैसे भतीजे वाला ऊपर बताया एपिसोड) से ले इनके संस्थानों-मठों तक में सेंधमारी ना की होती तो फरवरी 2016 बिल्कुल ना होता| जिनको फरवरी 2016 नहीं चाहिए, उनको हर एक को आर्य समाज को सुधारना होगा| मूर्ती पूजा नहीं करने की जड़ें अब, इस कांसेप्ट के आध्यात्म के सुप्रीम सेंटर्स दादा नगर खेड़ों से जोड़नी होंगी और दोनों को आपस में एक दूसरे को प्रोटेक्ट करना होगा व् इनमें घुस आये फंडियों व् मूर्ती पूजा के फंडों को वापिस बाहर खदेड़ना ही खदेड़ा ही खदेड़ना होगा अन्यथा गुजारा नहीं है| और सारे आर्य समाजी लिटरेचर को संस्कृत के साथ-साथ हरयाणवी में ट्रांसलेट करके के इसका हरयाणवी वर्जन समानांतर रूप से आर्य समाज को चलाना होगा| सारे आयुर्वेद का पूरा क्रेडिट जहाँ से इसके कॉन्सेप्ट्स उठा-उठा यह लिखा गया, यानी खेत-जमींदार को देना होगा कि हमने यह ज्ञान किसान-जमींदार-मजदूरों के खेतों-क्रियाओं से कॉपी किये और आयुर्वेद की किताब बना डाली, उनको रिफरेन्स दिए बिना, क्रेडिट दिए बिना| या तो यह काम आर्य प्रतिनिधि सभा, दादा नगर खेड़ों के साथ मिलके करे अन्यथा उदारवादी जमींदार तो अब आ ही रहे हैं इस मिशन के साथ अपनी पीढ़ियों के बीच| सब कुछ छीनेंगे फंडियों से इन्होनें हमारे खेत-खलीहानों से कॉपी-पेस्ट मार के बिना प्रॉपर क्रेडिट दिए लिख के अपना क्लेम किया हुआ है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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