वार्ता कुछ यूँ चली:
मैं: तो मखा फिर पंचकूला में क्यों बैठा है, जा पहुँच अपने गाम में तेरे दोनों लड़कों और भाइयों को लेकर और फूंक दे इनके मकान?
कजन: खामोश!
मैं: मखा तू तो धनी जाट है, साधन-सम्पन्न है, तेरे को खुद फील्ड में उतरने की कही तो खींच गया ख़ामोशी? मखा इसका मतलब पूरा फ़ंडी हो लिया तू भी? जो गरीब जाट को ही दंगों में फंसवाना चाह रहा? जा ना हिम्मत है तो खुद लठ के?
कजन: थोड़ा शांत होते हुए, अरे फूल तुझे पता नहीं है, यह गाड़े 10-15% होते ही सबके सर पे बैठ जाते हैं|
मैं: मखा फरवरी 2016 में कौनसे गाड़े थे?
कजन: फिर से खामोश!
मैं: तू इनको रो रहा, मखा जो ये तेरे खुद के यहाँ 3% फंडी हैं, ये 3% होते हुए भी सारे देश का भूत बनाये हुए हैं यह ना दीखते तुझे? कहीं इस बनाम उस, कहीं 35 बनाम 1, कहीं बैंकों के बैंक लूट के भाग रहे हैं, कहीं भाईभतीजावाद से सब सिस्टम जाम कर रखे हैं, कहीं किसानों की जमीनों से ले फसलों पर गैर-वाजिब नजर रहती है इनकी|
कजन: पर जो भी कह, तेरा यूँ तब्लीग़ियों को सपोर्ट करना, मैं जायज नहीं मानता|
मैं: मैंने कब कोई ऐसा तब्लीगी सपोर्ट कर दिया जो वाकई में ग्राउंड पे कोरोना केस के तहत पाया गया हो? पढ़ मेरी एक-एक पोस्ट दोबारा से| हर पोस्ट में अंत में यह जरूर लिख रहा हूँ कि अगर ऐसा कोई केस मिल रहा है तो उसको अपने हाथ में मत लो अपितु पुलिस-प्रसाशन को पकड़ा दो| मैंने कब यह कह दिया कि उसको घर-गाम में वेलकम करो?
कजन: भाई एक तो बंद कमरों में बैठे, ऊपर से यह मीडिया दिन-रात यही भड़क|
मैं: तू ऐसे चैनल्स देखता ही क्यों है?
कजन: अच्छा भाई, इब तू पैंडा छोड़ दे, आ गई तेरी बात समझ|
सोच में हूँ कि जिस जाट कौम के पुरखे क्या ब्राह्मण, क्या बनिया, क्या ओबीसी, क्या दलित, क्या मुस्लिम, क्या हिन्दू, जिस किसी के भी मुकदमे इनकी पंचायतों में आये, इन्होनें बेखटके निर्भीकता-पारदर्शिता-निष्पक्षता से निबटाये; मखा उनके वंश शहरों में जा के इतने विचलित हो चुके हैं? यह बिरसा भूल गए तभी तो कोठियों-सेक्टरों में बैठने के बावजूद भी 35 बनाम 1 झेलते हो|
खैर, कजन शांत हुआ, कम से कम थोड़ी देर हेतु ही सही अपने एक को तो वास्तविकता से रूबरू करवाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
मैं: तो मखा फिर पंचकूला में क्यों बैठा है, जा पहुँच अपने गाम में तेरे दोनों लड़कों और भाइयों को लेकर और फूंक दे इनके मकान?
कजन: खामोश!
मैं: मखा तू तो धनी जाट है, साधन-सम्पन्न है, तेरे को खुद फील्ड में उतरने की कही तो खींच गया ख़ामोशी? मखा इसका मतलब पूरा फ़ंडी हो लिया तू भी? जो गरीब जाट को ही दंगों में फंसवाना चाह रहा? जा ना हिम्मत है तो खुद लठ के?
कजन: थोड़ा शांत होते हुए, अरे फूल तुझे पता नहीं है, यह गाड़े 10-15% होते ही सबके सर पे बैठ जाते हैं|
मैं: मखा फरवरी 2016 में कौनसे गाड़े थे?
कजन: फिर से खामोश!
मैं: तू इनको रो रहा, मखा जो ये तेरे खुद के यहाँ 3% फंडी हैं, ये 3% होते हुए भी सारे देश का भूत बनाये हुए हैं यह ना दीखते तुझे? कहीं इस बनाम उस, कहीं 35 बनाम 1, कहीं बैंकों के बैंक लूट के भाग रहे हैं, कहीं भाईभतीजावाद से सब सिस्टम जाम कर रखे हैं, कहीं किसानों की जमीनों से ले फसलों पर गैर-वाजिब नजर रहती है इनकी|
कजन: पर जो भी कह, तेरा यूँ तब्लीग़ियों को सपोर्ट करना, मैं जायज नहीं मानता|
मैं: मैंने कब कोई ऐसा तब्लीगी सपोर्ट कर दिया जो वाकई में ग्राउंड पे कोरोना केस के तहत पाया गया हो? पढ़ मेरी एक-एक पोस्ट दोबारा से| हर पोस्ट में अंत में यह जरूर लिख रहा हूँ कि अगर ऐसा कोई केस मिल रहा है तो उसको अपने हाथ में मत लो अपितु पुलिस-प्रसाशन को पकड़ा दो| मैंने कब यह कह दिया कि उसको घर-गाम में वेलकम करो?
कजन: भाई एक तो बंद कमरों में बैठे, ऊपर से यह मीडिया दिन-रात यही भड़क|
मैं: तू ऐसे चैनल्स देखता ही क्यों है?
कजन: अच्छा भाई, इब तू पैंडा छोड़ दे, आ गई तेरी बात समझ|
सोच में हूँ कि जिस जाट कौम के पुरखे क्या ब्राह्मण, क्या बनिया, क्या ओबीसी, क्या दलित, क्या मुस्लिम, क्या हिन्दू, जिस किसी के भी मुकदमे इनकी पंचायतों में आये, इन्होनें बेखटके निर्भीकता-पारदर्शिता-निष्पक्षता से निबटाये; मखा उनके वंश शहरों में जा के इतने विचलित हो चुके हैं? यह बिरसा भूल गए तभी तो कोठियों-सेक्टरों में बैठने के बावजूद भी 35 बनाम 1 झेलते हो|
खैर, कजन शांत हुआ, कम से कम थोड़ी देर हेतु ही सही अपने एक को तो वास्तविकता से रूबरू करवाया|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment