Tuesday, 11 August 2020

निडाना की झोटा फ़्लाइंग; जो रखती थी गाम में फंड-पाखंड फ़ैलाने वालों की नकेल कस के!

जानिये फंडी क्यों बोलते थे कि "निडाना के जाट तो कसाई सें"|

हम छोटे होते थे, हुआ यूँ कि एक बार मेरी जन्मभूमि निडाना, जिला जींद में कुछ फ़ंडी जमात वालों ने सतसंग बुला लिया उनके घर में| कुछ जमींदारों की लुगाईयां भी बुला ली चोरी छुपे (हमारे यहां चोरी छुपे ही बुलाते हैं आज भी, क्योंकि अन्यथा मर्द लोग विरोध कर देते हैं)| और फ़ंडी फंड फ़ैलाने के लिए इसीलिए घरों में बैक-दूर एंट्री मारते हैं, घर की औरतों के जरिये| क्योंकि आर्य-समाजी गाम रहा है और आर्य-समाज आने से पहले आर्य-समाज की जड़ यानि "दादा नगर खेड़ों" को धोकने-ज्योतने वाला|

रात के 9-10 बजे के करीब लगी खड़ताल बजने और तथाकथित भक्ति के गीतों का शोर गली-चौराहों तक पहुँचने| पता नहीं यह निडाना के डीएनए में ही है शायद, कि सतसंग की खड़ताल हमें भड़क देने लगती है| यही भड़क पे पड़ोस के एक काका भड़क गए और जा खुड़काये किवाड़ सतसंग वालों के| और मारा रुक्का कि, "थमनें बेरा कोनी के कि गाम में झोटा-फ़्लाइंग ने सतसंग-फंड-पाखंड पर बैन लगा राख्या सै?" घर-वाला बोला, "हैड म्हाडा घड, हम जो चाहवें कड़ें"| वह काका अंदर गया तो देखा कि उसकी लुगाई और 12 साल की बेटी भी वहीँ बैठी है| बस फिर क्या था काका का तो पारा सातवें आसमान पर|

बेटी समझ गई और पापा को सामने देखते ही बोली कि, "पापा मैं तो मना कर दी थी, पर आपको सोया जान के माँ मुझे साथ ले आई"| बस फिर क्या था वहीँ पे हंगामा| और काका बोला कि, "यूँ चोरी छुपे आने की क्या जरूरत थी? चल ऐसा कर इस फ़ंडी के परिवार की औरतों को अपने घर ले आ| वहां मटकवायेंगे तेरे और इसकी औरतों के ढूँगे अपने घर में"?

इस पर फंडी बोला, "हड ऊत के ऊत, हड थाड़े बड़गे जाट-जमींदारा के, हड़ म्हाड़ी बीड़बांनी ना जाया कड़ती| ले जा आपणी नैं गेल"| थाड़े ढूँगे, मटकावेंगी म्हाड़ी जूती| हड कसाई किते के, आपणी लुगाईयां नैं नाचण देते ना गान देते"|

काका बोला, "आ गया जिगरा स्याह्मी? म्हारी लुगाई थारै नाचें तो हम माणस, थारी म्हारै नचाण बुला ली तो हम कसाई"| ला ईब बुलाई, झोटा फ़्लाइंग|

फ़ंडी, "हड तू के बलावैगा, मैंने हे मिलाया इब जुलाना थाणे में फ़ोन (उस टाइम लैंडलाइन शुरू ही हुए थे, इक्का-दुक्का घर लगे थे)|

काका, जा पहुंचा गाम की झोटा फ़्लाइंग के दरबार यानि दादा चौधरी दरियाव सिंह मलिक की बैठक में और दादा चौधरी जगबीर सिंह मलिक (दोनों आज दुनिया में नहीं है) को भी वहीँ बुला लिया| सारा मैटर बता दिया कि म्हारी लुगाइयाँ गेल धक्का कर रह्या सै| इसकी लुगाई म्हारे आ के नाच के जावै तो हम कसाई, म्हारी लुगाई इनके ढूँगे मटका आवैं तो हम इन खातर इंसान| इतने में फंडी के फ़ोन करे से निडाना में जुलाना थाने से पुलिस आ ली| पुलिस आई तो फंडी पुलिस को बोला कि लो थानेदार साहब एक गाखड़ा होया जाट जो म्हारी घर की लुगाइयाँ नैं डडावे अर म्हाड़ी बीड़बांनीयाँ नैं भुण्डा बोलै| बेडा ना कद बोलणा सीखेंगे| कड़ो उसने गिड़फ्ताड|

इधर दादा दरियाव सिंह को पता लगा कि इतनी जल्दी पुलिस भी बुला ली| तो शामलो के दादा चौधरी जिले सिंह मलिक (पूर्व एमएलए जुलाना) व् जुलाना में पड़ने वाले सारे मलिक गांमौ की झोटा फलाइंग के हेड को मारा फ़ोन| अक जल्ले न्यू-न्यू एक फ़ंडी नैं गाम तैं पूछे बिना गाम में पुलिस बुला ली, इसका मतलब ऑथर रह्या सै, पाधरा करना सै|

दादा जल्ले नैं मारया फ़ोन जुलाने, और बोला कि पुलिस जुणसे पायाँ निडाना गई से उन्हें पायां उल्टी आनी चाहिए| और आती-आती शामलो से मेरे पास से जुलाना के मलिक गामों की झोटा फ़्लाइंग का फंड-पाखंड-सतसंग के खिलाफ पास किये रेसोलुशन की कॉपी ले जावें, जिसका कि यह फ़ंडी उलंघन किये हुए है| बस फिर क्या था वायरलेस पर थाने ने पुलिस खाली हाथ वापिस बुला ली|

आगै फ़ंडी की क्या रेल बनाई झोटा फ़्लाइंग ने समझ जाओ| और समझ जाओ लुगाई खासकर, जब इनकी लुगाइयों पे तो ये इतनी नकेल रखें कि इनके घर से बाहर, किसी जाट-जमींदार के जा के नहीं नाच सकती तो थारे पायें तले कीमें न्यारी इ माटी कटे से जो थम जा खड़तल और ढूँगे मटकाओ इनके घरों में और गैर-मर्दों के स्याह्मी?

म्हारे दादे समझाया करते कि बेटो-पोतो, "ऐसी व्यवस्था कायम रखन ताहिं फ़ंडी चाहे थमनें कसाई बुलाओ या फूहड़; जमे रहो अन्यथा थारे घरों का धोना सा धुवा के धर देंगे ये| थारी ही लुगाइयों की नजरों में "ओपन-माइंडेड" बनेंगे और अपनी लुगाइयों पे अपनी जकड़न ढीली होने दें ना| इसलिए इससे पहले कोई और थारी लुगाइयों को "ओपन-माइंडेडनैस" के लेक्चर देवे, इनकी असलियत बता के रखो अपनी लुगाइयों को|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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