Tuesday, 11 August 2020

अस्थल बोहर मठ, रोहतक के महा-मंडलेश्वर को तीन दिन एक टांग पर खड़ा रहने पर भी नहीं मिली थी निडाना गाम से एक रूपये की भी भिक्षा!

जानिए वह किस्सा कि कैसे बोहर वाले मठ के महामंडलेश्वर को निडाना गाम मोड्डे-बाबाओं के नाम का "छुट्टा हुआ सांड घोषित करना पड़ा था"|

विशेष: आगे पढ़ने से पहले जान लें कि आज जब इतना तथाकथित धार्मिक माहौल हुआ पड़ा है तो हो सकता है आपके अपने पुरखों की यह 3-4 पीढ़ी पुराणी बातें, उनके तर्क आपको अजीब लगें और आप पढ़कर यह व्यक्त करें कि क्या ऐसे भी थे हमारे पुरखे, तो कोई अतिश्योक्ति मत मानियेगा खुद से; परन्तु जो घटना लिखी है यह सत्य पर आधारित है; खुद के दादे-दादियों की बताई हुई है|

बात लगभग 125-130 साल पुरानी है| मेरे सगे दादा से ले गाम के अनेकों बूढ़े दादा-दादियों की बताई हुई है| हुआ यूँ कि निडाना के पुरखों के तार्किक ज्ञान व् मूर्ती-पूजा के ढोंग-पाखंड-आडंबर नहीं करने की ख्याति जा पहुँची अस्थल बोहर मठ, रोहतक के महा-मंडलेश्वर के पास| बात पहुंची कि महाराज यह रियासत जिंद (आज जिला जींद) वाला निडाना बाबाओं को खाने व् कपड़े-लत्ते के अलावा धेला दान नहीं देता| सुन कर महा-मंडलेश्वर को अहम् पर लगी यह बात| बोला कि ऐसे-कैसे नहीं देता, मैं लाऊंगा निडाने से धन का दान|

मोड्डा ले कमंडल और तामझाम निकल लिया अस्थल-बोहर मठ से (बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी, रोहतक जहाँ है आज वहां से) और आ गाड्या चिमटा और धूणा जिंद वाले निडाना के गोरे पै| दो दिन हो गए, रोटी और पानी के अलावा निडाना में कोई जात भी ना पूछे मोड्डे की| बाबा जी के उठया छोह और साथ लाये चेले-चपाटों से कहा कि गाम के मौजिज आदमियों से मुलाकात का प्रबंध करो|

चेले-चपाटे आये गाम के भीतर और बात बताई, एक-दो बैठकों में| निडाने के पुरख देवते यानि म्हारे दादे बोले हमनें इस मोड्डे के चाल-ढाल से ही अंदाजा लगा लिया था कि यह कुणसे रंगा रंगया आया सै| बोले कि चलो बतलवाओ के भटकन हो गई बाबा कै?

बाबा भटकन की बात सुनते ही भड़का और बरसा, "मैं सांसारिक मोह-माया त्यागा हुआ घोर तपस्वी हूँ, थमनें मुझे भटका हुआ कैसे कह दिया?"
म्हारे बुड्ढे पुरखे बोले, "तपस्या तो हमनें तेरे लोवै-धोरै भी ना लिकड़ी दिखती, नहीं तो तेरे में ईबी भी धन यानि माया के दान की लालसा रह जावै ए के?"

सुन पुरखों का जवाब, बाबा हक्का-बक्का|
बाबा, "नहीं-नहीं, मुझे धन की कोई लालसा नहीं; मैं तो तुम्हारा घमंड तोड़ने आया था?"

पुरखे बोले, "कौनसा घमंड?"

बोहर का महामंडलेश्वर, "कि निडाना इतना एंडी पाक रह्या सै अक किसे बाबा को एक रूपये का भी दान ना देता?

पुरखे बोले, "रूपये किसी से लूट के लाये हैं हम, या किसी से कर्जे ले रखे हैं, आप बोल कैसे रहे हो?"

बाबा सकपकाया और बोला,"नहीं-नहीं मैंने ऐसा तो नहीं कहा?"

पुरखे बोले,"तो फिर?"

बाबा पकड़ समझ गया कि ऐन उस कहावत वाले जाटों के हाथों चढ़ा सै जिनके बारे कह्या जाया करै कि, "अनपढ़ जाट पढ़े बरगा और पढ़ा जाट खुदा बरगा"| ये तो वो जाट हैं जिन बारे कही जाया करै कि, "वो जाट ही क्या हुआ, जिसके आगे फ़ंडी ज्ञान झाड़ जा"|

बाबा, अपने रूख में नरमाई लाता हुआ बोला, "चौधरियो, असल में थारे गाम में आ कें पता लगा कि असली तपस्वी तो थम सो, जो दौलत कमा के भी उसका घमंड ना करते"| देखो ऐसा है कि मैं जोश-जोश में बाबा बिरादरी में बोल आया कि मैं लाऊंगा निडाना से धन का दान, थम मैंने एक रूपये का दान दे के विदा कर दो; मेरी इज्जत रह जाएगी और थारी बात|

म्हारे पुरखे बोले कि, "बाबा, भगमे बाणे वाले की दो जून की रोटी और साल के दो भगमे बाणे होते हैं| जितने दिन रहना हो रह, यह रशद गाम तेरी टूटने देगा नहीं और इस्ते फ़ालतू हम मुंह लगावेंगे नहीं|"

बाबा का कभी पारा चढ़े, कभी उतरे कि अच्छा फंसा चढ़ा-चढ़ा; असली जाटों के हाथों आन चढ़ा| बाबा कुछ और पार ना पड़ती देख क्रोध में बोला कि, "मैं श्राप दे दूंगा थारे गाम को"|

म्हारे चौधरी पुरखे बोले कि, "बाबा, आप संसार की जिम्मेदारियों से भागे भगोड़े तथाकथित तपस्वी, जो खुद को तो आजतक मोह-माया से मुक्त ना कर सके और आप हम सांसारिक तपस्वियों को श्राप दोगे? उनको जिनकी वजह से थारे पेट में अन्न और तन पे वस्त्र आता है? जा कर लो यह बहम भी पूरा|"

इस पर बाबा ने अपना आखिरी हथियार प्रयोग करते हुए, एक टांग पर खड़ा हो कर तपस्या शुरू कर दी; दिन में एक टांग पे खड़ा रहता और रात को सोता रहता| जब तीन दिन हो गए और म्हारे पुरखे दादे टस-से-मस ना हुए तो महा-मंडलेश्वर थक-हार के यह बोलते हुए धूणा उठा गए कि, "आज के बाद मैं इस गाम को बाबाओं के नाम छुट्टा हुआ सांड छोड़ता हूँ| आज के बाद जो भी बाबा इस गाम में रैन-बसेरे डटेगा और धूणा लगाएगा, वह लठ खा के जायेगा|"

हे मेरे पुरखो, थारे तेज की रौशनी बनी रहे निडाना की हर युवा पीढ़ी पे| और इस रौशनी की बुलंदी यानि हाइट में बसता रहे म्हारा निडाना और इसकी निडाना हाइट्स|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: