इस केटेगरी में भी सिर्फ उन लेखकों का जिक्र होगा जो archeological प्रूफ्स के साथ अपनी लेखनी लिखे हैं|
सबसे पहला चेहरा: "हरयाणा के वीर यौद्धेय" सीरीज लिखने वाले आचार्य भगवान देव जी| हो सकता है इनसे भी पहले कोई और हो जिसने माइथोलॉजी से हट के जाट इतिहास को लिखा हो, ऐसी शोध कभी बंद नहीं होती; ऐसा कोई नाम सामने आया या मिला तो जरूर लिखूंगा|
दूसरा चेहरा: G व् J की कोडिंग को डिकोड करके पहली बार इंडिया की सीमा से बाहर जाट जड़ों का पटाक्षेप करने वाले पूर्व IRS डॉक्टर भीम सिंह दहिया जी (मेरी सगी चचेरी भाभी के सगे ताऊ जी)|
तीसरा चेहरा: वेटरन आर्कियोलॉजिस्ट सर रणबीर सिंह फोगाट| 2012 में जब हरयाणवी व् उदारवादी जमींदारी इतिहास को इसके शुद्धतम वास्तविक रूप में निडाना हाइट्स (www.nidanaheights.com) की वेबसाइट के जरिये ऑनलाइन लाने की ठानी तो सर से दिल खोल कर सहायता मिली; सर के शोधित व् लिखित 50 के करीब शोधपत्र व् आर्टिकल्स निडाना हाइट्स की वेबसाइट के विभिन्न सेक्शंस में पड़े हैं| सर के साथ "उदारवादी जमींदारी" पर मेरी पहली किताब भी आने की तैयारी हो चुकी थी, जो कि 150 पन्नों की तो लिखित पीडीएफ में आज भी पड़ी है, परन्तु अन्य व्यस्तताओं के चलते अभी तक पब्लिश नहीं हो पाई है, क्योंकि इसमें 100 पन्ने का कंटेंट और जोड़ना था|
चौथा चेहरा: हरयाणवी आर्ट-कल्चर-मोनुमेंट्स की फोटोग्राफी के लीडिंग चेहरे सर राजकिशन नैन जी (मेरे दादके अजायब से हैं, मेरी दादी के कुनबे से व् रिश्ते में मेरे ताऊ जी लगते हैं)| 2017 व् 2018 में इंडिया आया था तो आधा-आधा दिन ताऊ जी के पास बिताया| निडाना हाइट्स पर "मोखरा" का इतिहास वाला 20 से ज्यादा पेज का शोधपत्र ताऊ जी का ही है|
पांचवा चेहरा: सर धर्मपाल सिंह डूडी, लंदन में रहते हैं, "फ्रांस टू कारगिल" जैसी शुद्ध Jat War HIstory with archeological proofs लिखने वाले अद्भुत लेखक| जब अगस्त 2016 में लंदन में सर छोटूराम पर दूसरी इंटरनेशनल कांफ्रेंस की थी तो सर से वहीँ मुलाकात हुई थी| मेरी प्रेजेंटेशन को सर की तरफ से स्टैंडिंग ओवेशन मिली थी|
छटा चेहरा: सर कृष्ण चंद्र दहिया, इनकी शोध सीरीज की पहली बुक मार्किट में आ चुकी है, दूसरी आने को है| कई सालों से ईमेलों पर अपने शोध मुझे भेजते रहे हैं व् ईमेल और चैट्स के जरिये अच्छी खासी चर्चाएं हुई हैं| मैं इनके लेखन के प्रति सदा उत्साहित रहता हूँ व् इनकी किताबों के प्रति मेरी क्यूरोसिटी निरंतर बनी रहती है|
सातवां चेहरा: प्रोफेसर विवेक दांगी| अभी परसों ही जब पहली बार फ़ोन पर बातें हुई तो चर्चा इतनी रूचिकर हुई कि 1.5 घंटे तक चली| प्रोफेसर साहब के अंदर ना सिर्फ गॉड-गिफ्टेड टैलेंट है आर्कियोलॉजी के प्रति वरन एक ऐसी आग है अपने वास्तविक इतिहास को उभारने की जो मुझे मेरे अंदर समानांतर उबलती दिखती है| मेरे लिए खास बात यह है कि मेरे हमउम्र हैं और कौम-कल्चर-इतिहास-अस्तित्व के कई मर्म-दर्द पर मेरे से साझे मिलते हैं|
हालाँकि सहलेखक के तौर पर हरयाणवी लिंग्विस्टिक्स पर 2 बुक्स मेरी भी आ चुकी हैं परन्तु स्वछंद तौर पर पहली आनी अभी बाकी है, परन्तु आर्टिकल अनंत आ चुके हैं; उदारवादी जमींदारों के गैर-मैथोलॉजिकल इतिहास पर| अधिकतर निडाना हाइट्स पर पड़े हैं व् उदारवादी जमींदारी परिवेश के दीवानों में सोशल मीडिया पर जूनून के तौर पर एक दशक से ज्यादा से यदाकदा सर्कुलेट होते देखे जाते हैं|
बहुत खलती थी यह बातें जब बड़े-बड़े इतिहासकारों को जाट इतिहास को ले-दे-के घुमा-फिरा के माइथोलॉजी में घुसा दिया हुआ पाता था| "जट झट संघते" या "जटाओं से निकले जाट" या ऐसे ही किस्से को "जाट इतिहास" के नाम पर पढ़ता था; धन्य हो इन लेखकों व् शोधार्थियों का जो इस जूनून को वास्तविक रूप दे पाए| आगे भी कई युवा शोधार्थी आ रहे हैं, वास्तविक इतिहास को लेकर; जो अत्यंत सुखद अनुभूति है|
विशेष: हो सकता है कि कोई और चेहरा भी छूट गया हो, तो कृपया ऐसा सिर्फ जानकारी के अभाववश ही मानियेगा| और कृपया ऐसा हर नाम इस सूची में जुड़वाईयेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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