Tuesday, 15 September 2020

3 कृषि अध्यादेशों पर दो हरफी बात सै!

जैसे विभिन्न "व्यापार मंडलों/संगठनों" के जरिये पूरा "व्यापार/मैन्युफैक्चरिंग जगत" अपनी सर्विस या उत्पाद का "सेल्लिंग/सर्विस प्राइस" व् "प्रॉफिट मार्जिन" खुद निर्धारित करता है, यह कार्य अपने अधिकार क्षेत्र में रखता है; कोई किसान-पुजारी-मजदूर "एकल या संगठन" में भी इनके बीच दखल नहीं दे सकता|   

जैसे विभिन्न "पुजारी मंडलों/संगठनों" के जरिये पूरा "मठ-मंदिर-डेरा जगत" (मैं इस धर्म से संबंधित हूँ तो इनकी कहूंगा, आप किसी और से संबंधित हैं तो यहाँ आप वाले को समझें) अपनी सर्विस या उत्पाद यानि यज्ञ-हवन-कर्मकांड-पूजा-पाठ-आरती-दर्शन (सामान्य दर्शन, वीआईपी दर्शन, वीवीआईपी दर्शन) आदि का "सर्विस प्राइस" व् "प्रॉफिट मार्जिन" खुद निर्धारित करता है, यह कार्य अपने अधिकार क्षेत्र में रखता है; कोई किसान-व्यापारी-मजदूर "एकल या संगठन" में भी इनके बीच दखल नहीं दे सकता|   

जैसे विभिन्न "मजदूर/कर्मचारी मंडलों/संगठनों" के जरिये पूरा "मजदूर/कर्मचारी जगत" अपनी सर्विस का "सर्विस चार्ज" व् "प्रॉफिट मार्जिन" खुद निर्धारित करता है, यह कार्य अपने अधिकार क्षेत्र में रखता है; कोई किसान-पुजारी-व्यापारी "एकल या संगठन" में भी इनके बीच दखल नहीं दे सकता|   

ठीक ऐसे ही विभिन्न "किसान/जमींदार यूनियनों/मंडलों/संगठनों" को भी चाहिए कि वह भी अपनी पैदा की फसल व् सर्विस के "सेल्लिंग/सर्विस प्राइस" व् "प्रॉफिट मार्जिन" खुद निर्धारित करें, यह कार्य अपने अधिकार क्षेत्र में रखें; किसी भी व्यापारी-पुजारी-मजदूर "एकल या संगठन" को इसमें दखल देने तक की इजाजत नहीं होनी चाहिए| 

जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन क्लेश काटेंगे किसान/जमींदारों के; अन्यथा यह अन्य तीन यूँ-ही चूंट-चूंट खाएंगे किसान-जमींदार को| इन 3 कृषि अध्यादेशों के बाद देश की तमाम "किसान/जमींदार यूनियनों/मंडलों/संगठनों" को मिलकर एक देशव्यापी मंत्रणा दौर चलाना चाहिए और यह समझना चाहिए कि धर्म अपनी जगह है और धंधा अपनी जगह| जब एक ही धर्म के होते हुए "व्यापारी-पुजारी-मजदूर" आपके हकों के लिए खड़े नहीं होते तो समझिये कि यह धंधे की बात है; यह आपको सह-धर्म वालों से झगड़ा-लड़ना करके भी लड़नी पड़ सकती है| और इसीलिए जरूरी है कि कोई सरकार अगर आपको आपकी आवाज उठाने हेतु धर्म के अस्तित्व का हवाला देवे या भावनात्मक रूप से धर्म की आड़ में आपके धंधे को लूटे तो हवाला दीजिये कि क्या "व्यापारी-पुजारी-मजदूर" यह खड़े हैं मेरे साथ? नहीं खड़े ना? तो स्पष्ट है धर्म और धंधा दोनों अलग हैं| ऊपर उदाहरण भी तो दिया, धर्म वाला अपनी सर्विस चार्ज करते वक्त आप पर रियायत करता है क्या, तो धंधे के वक्त किसान-जमींदार से रियायत की कैसी और क्यों उम्मीद? 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक    

No comments: