Tuesday, 15 September 2020

आप यह बात मत लिखा करो कि, "जिस दिन किसान ने खेती करनी छोड़ दी, उस दिन क्या करोगे, क्या खाओगे"?

ये जो उदारवादी जमींदारी परिवेश के किसान-जमींदारों के बालक हो ना, आप यह बात मत लिखा करो कि, "जिस दिन किसान ने खेती करनी छोड़ दी, उस दिन क्या करोगे, क्या खाओगे"? 

ऐसा है लाड़लो, यह वर्णवादी व्यवस्था की उस सामंतवादी जमींदारी के पैरोकार लोग हैं जो ओबीसी-एससी-एसटी से बिहार-बंगाल की तरह दलित से भी नीचे महादलित बना के बेगारी करवा के भी अपने लिए अन्न उगवा लेंगे| हाँ, बस फर्क यह होगा कि आप उदारवादी जमींदारी वाले सीन में नहीं होंगे| आपकी अनख वाली उदारवादी जमींदारी की जगह इनकी क्रूरता-अमानवता-घमंड वाली सामंती जमींदारी आ जाएगी और वही यह लाने को आमादा हैं इस 3 कृषि अध्यादेशों के षड्यंत्र के जरिये| तो आप इस "जिस दिन खेती करनी छोड़ दी" लाइन के जरिये इनको अपील कर रहे हो या डरा रहे हो तो ना इनको आपकी अपील का असर पड़ता और ना ये इससे डरते| क्योंकि इनको आपकी उदारवादी जमींदारी का हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी का मॉडल जमता ही नहीं; इनको तो सामंती जमींदारी जमती है और इसके लिए यह तैयार बैठे हैं| 

तो बजाये इन स्टेटसों के उन लोगों को अपनी बात समझाईये जो आपकी साथी बिरादरी हैं, जैसे कि उदारवादी जमींदारी के तरीके से खेती करने वाले हरयाणे-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी के जाट-बाह्मण-राजपूत-रोड़-बिश्नोई, ओबीसी व् एससी/एसटी| यह सारा झगड़ा ही आपका उदारवादी सिस्टम खत्म कर बिहार-बंगाल वाला वह सामंतवादी सिस्टम लाने की योजना है कि जिसके तहत 8 एकड़ वाला बिहार-बंगाल का जमींदार भी हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी के 2 एकड़ वाले के यहाँ आके जीरी लगाता है तब जा के उसका घर चलता है| कल को आपके साथ भी यही होगा| आज अभिमान करते हो ना कि बिहार-बंगाल तक के लोगों को रोजगार देते हो, अगर यह 3 कृषि अध्यादेश यूँ के यूँ लागू हो गए तो कल को तैयारी कर लो, ऐसे ही बाहर जा के मजदूरी करके परिवार पालने की| और इससे बचना है तो जगाओ उदारवादी जमींदारी के "सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर के जाट-बाह्मण-राजपूत-रोड़-बिश्नोई, ओबीसी व् एससी/एसटी को कि आवें वह भी रोड़ों पर अन्यथा इसके बाद कुछ नहीं बचना| 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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