व्यवहार व् भावनाओं के आधार भाषा तीन प्रकार की होती है:
1) मातृ-भाषा: वह भाषा जो माँ को बोलते-देखते हुए बच्चा सीखता है व् जिसमें आपके लोकगीत-लोक्कोक्ति-लोकव्यवहार आदि होता है|
2) सहेली-भाषा: वह भाषा जिसमें आपकी मातृ-भाषा के 50% से अधिक शब्द मिलते हैं, लोकगीत-लोक्कोक्ति-लोकव्यहार मिलते हैं|
3) व्यापारिक-मात्र-भाषा: वह भाषा जो रुपया-पैसा कमाने को प्रयोग की जाती है या इसमें सहायक हो, परन्तु इसमें "व्यापारिक-मात्र" क्यों लिखा, क्योंकि व्यापार आप अपनी मातृभाषा व् सहेली-भाषा के जरिये भी कमा सकते हो, लेकिन इनसे मुख्यत: व्यापार ही कमा सकते हो इसलिए|
एक हरयाणवी (हरयाणवी के 10 रूप वर्तमान हरयाण-दिल्ली-वेस्ट यूपी में बोले जाते हैं) के मद्देनजर इन तीनों प्रकारों को जानते हैं:
एक हरयाणवी की मातृ-भाषा हरयाणवी है: क्योंकि यही एक हरयाणवी जब पैदा होता है तो माँ को बोलते-बरतते सुनता-देखता है और सीखता है व् इसी में एक हरयाणवी का लोकगीत-लोक्कोक्ति-लोकव्यवहार चलता है|
एक हरयाणवी की सहेली भाषाएँ: पंजाबी, मारवाड़ी व् उर्दू; क्योंकि इनके लोकगीतों से ले लोकव्यहार व् बोलने में प्रयोग आने वाले 50% से अधिक शब्द साझे हैं|
एक हरयाणवी की व्यापारिक-मात्र भाषाएँ: हिंदी, संस्कृत, इंग्लिश, फ्रेंच आदि| हिंदी "सहेली-भाषा" में आ सकती थी परन्तु सिर्फ शब्द कॉमन हैं शायद 40-50% के करीब परन्तु लोकगीत-लोक्कोक्ति व् लोकव्यवहार हिंदी व् हरयाणवी दोनों के भिन्न हैं|
विशेष: कोई भाषा अनादरणीय नहीं है, सभी का अपना-अपना महत्व व् आदर है; यहाँ सिर्फ इनकी प्रकार समझाने के उद्देश्य से इनका एक हरयाणवी के परिवेश में वर्गीकरण किया है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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