रामायण-महाभारत, ये कथा, फलां पुराण की मनघढ़ंत माईथोलोजियों से भरे परिवार तोड़क व् हद से ज्यादा मैं-का-बहम-भरक टीवी सीरियलों व् काल्पनिक साहित्य पढ़-पढ़ बंद हो चले लोगों के दिमाग खोल दिए इस किसान आंदोलन ने|
दशक से ज्यादा हो चला था लोग बैठकों में खुल के बैठना-बतलाना छोड़ते जा रहे थे| माणसो को तरस चुकी गामों की परस-चौपाल-चुपाड़-नोहरे-दरवाजे-हवेली-बैठकों में जो किसान आंदोलन की स्ट्रेटेजी बनाते भाईचारे के सैलाब मुड़े हैं, यह निसंदेह उस सीरी-साझी कल्चर की वापसी है जो हमारी उदारवादी जमींदारी सभ्यता की बुनियाद है| इसको अब खोने मत देना बालको-गाभरूओं-वयस्कों!
और समझना और समझाना कि असली व् व्यवहारिक ज्ञान इन काल्पनिक गपोड़-कथाओं में नहीं, अपितु आपके दादा खेड़ाई आध्यात्म व् खापों के लोकतान्त्रिक विधानों में हैं; जिनके तुम में अभी भी बहते अंशों की बदौलत ही यह आंदोलन परवान चढ़ता जा रहा है| वरना कोई ना इन माईथोलोजियों वाला अभी तक एक लंगर तक लगाने आया तुम्हारे किसान धरनों पर और आया हो तो बता दो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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