हर इंसान जिन्दा रहे की इंसानियत वाला धर्म पालने व् अपने कमाए में से भी बाँट के खाने की सबसे बड़ी समानता है| इसी वजह से बीते वक्त तक कहावत चलती आई है कि इन क्षेत्र के गामों में कोई भूखा-नंगा नहीं सोता, शायद आज भी बदस्तूर चलन में है यह कहावत| यही इनके दादे खेड़े कहते हैं कि सर्वधर्म व् 36 बिरादरी बराबर हैं| संवेदना के पैमाने पर औरत, मर्द से पहले है; इसीलिए तो खेड़ों पर 100% धोक-ज्योत औरत ही करती है| भीख-भिखारी का कांसेप्ट ही नहीं इनकी आइडियोलॉजी में|
तो फिर यह खाप वाले, दान-धर्म के नाम पर ऐसे लोगों के चक्कर में क्यों पड़ जाते हैं; जो सिर्फ लेते ही लेते हैं| देने के नाम पर कुछ मिलता है तो घोर मर्दवाद वाला लिंगभेद, वर्णवाद व् छूत-अछूत वाला अलगाववाद, 35 बनाम 1 के नफरती अखाड़े, धर्मस्थलों में एक समूह की मोनोपॉली? या तो इनको भी यह मर्दवाद, वर्णवाद, छूत-अछूत, नफरती अखाड़े व् मोनोपॉली हटवाने की कही जाए अन्यथा ऐसी ताकतों को अपना ध्यान-धन देने का मतलब है समाज में नाजायज अशांति-हेय-नश्लवाद को बैठे-बिठाए न्यौता देना|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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