लेख का निचोड़: सही मायनों में यह आंदोलन है ही छोटे किसान का, सफल हुआ तो इसके सबसे ज्यादा फायदे होने ही छोटे किसान को हैं|
वो कैसे आईये जानते हैं:
बड़ा किसान: अमूमन 5 या 10 एकड़ से ज्यादा के किसान को बड़ा किसान कहा जाता है| हरयाणा में जितना भी बड़ा किसान है वह सिर्फ किसान नहीं अपितु व्यापारी भी है| वह विरला ही सीजन पर मंडी में फसल उतारता है| बल्कि वह तो अपने अनाज-तूड़े आदि को स्टोर कर लेता है व् ऑफ-सीजन में दिल्ली जैसी जगहों की आटा मीलों व् मंडियों में सीजन से डेड से ले डबल रेट पर बेच कर; आढ़ती या सेठ जो मात्र स्टोरेज के दम पर व्यापार कमाता है; वह यह बड़ा किसान खुद कमाता आ रहा है| और आज से नहीं न्यूनतम सर छोटूराम के जमाने से ऐसा होता आ रहा है; कहीं कोई यह सोचे कि मोदी ने पहली बार मार्किट ओपन की है किसान के लिए; यह जमानों से ओपन है| तो बड़े किसान की चिंता MSP नहीं है अपितु मात्र PAN Card चाहिए होगा बड़े किसान को अपने इस सिस्टम को जारी रखने हेतु|
छोटा किसान: अमूमन 5 एकड़ से कम वाला या 2 एकड़ से कम वाला| बड़े किसान की भांति इसके घर में फाइनेंसियल बैक-अप इतना नहीं होता कि यह एक सीजन की भी फसल ऑफ-सीजन में बेचने तक भी होल्ड करके रख ले| उसको घर-रिश्ते चलाने को तुरंत पैसा चाहिए होता है| इसलिए ऑन-सीजन फसल बेचना/ निकालना इसकी मजबूरी होती है| और मंडी में इसकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं खरीददार| जहाँ MSP नहीं है (पंजाब-हरयाणा से बाहर) व् APMC नहीं है वहां तो यह किसान प्राइवेट प्लेयर्स की मेहरबानी पर आश्रित होता है जैसे कि बिहार-बंगाल| ऐसे में इसका आर्थिक शोषण इस हद तक होता है कि घोषित MSP के आधे से कम पर फसलें बेचने को मजबूर किया जाता है| और इस आमदन से तो उसकी फसल की लागत भी पूरी नहीं होती, इसलिए अगली बार फिर से कर्जे उठा के फसल बोता है और यह कुचक्र अंतहीन चला जाता है| इतना अंतहीन कि उसको जमीन बेच कर इस धंधे से अपना पिंड छुड़वाना भला लगता है|
तो अगर MSP पर गारंटी कानून होगा तो हुआ ना छोटे किसान को सबसे ज्यादा फायदा? उसको खेती के खर्चे निकाल के आमदन भी बचेगी, घर के खर्चे निकलेंगे व् कर्जे लेने की नौबत नहीं आएगी| और इन कर्जों के जाल में फंसा के छोटे किसान की जमीन ही सबसे ज्यादा हड़पी जाती है, वह बचेगी|
तो निचोड़ यह है कि यह कानून व् बिना MSP की गारंटी के ऐसे ही चलता रहा तो बड़ा किसान जो आज के दिन व्यापारी भी है, वह मात्र किसान रह जायेगा और छोटा किसान, मात्र मजदूर रह जायेगा; मजदूर भी बंधुआ वाला|
यह ठीक ऐसे ही है जैसे यह सरकार बड़े व्यापारियों (अडानी-अम्बानी) टाइप के शॉपिंग माल्स चलवाने हेतु किरयाना-खुदरा दूकान वालों के पेटों पर लात मार रहे हैं; ऐसे ही कृषि में पहले से स्थापित कृषक व्यापारियों के तो व्यापार खत्म होवेंगे व् छोटे किसान की तो इतनी मर आ जाएगी कि उसको जमीनें बेच के पिंड छुड़वाने पड़ेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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