सर्वखाप व् मेरी लाइफ-जर्नी ऐसी रही कि दोस्तों से ले रिश्तेदारों ने इनके प्रति मेरे लगाव व् विश्वास बारे मुझे हड़काया-झिड़का, कईयों ने तो इस लगाव को मुझसे अलगाव की वजह बनाया| मेरे सामने से जानबूझ के सोशल मीडिया से ऐसी पोस्टें गुजारी/गुजरवाई जिनमें खापों बारे व्यंग्य या तिरस्कारिता होती थी| परन्तु आज किसान आंदोलन के वक्त इनके रोल बारे जब इन्हीं दोस्तों को इनका मुरीद हुआ देखता हूँ तो आत्मविश्वास आता है कि सर्वखाप के प्रति मेरी सोच, मेरा स्टैंड सही था| लोगों को अक्सर कहता था कि जैसे साँपों के लिपटने से चंदन अपनी शीतलता नहीं छोड़ा करता ऐसे ही खापों में कुछ खराब लोग हो जाने से खाप का कांसेप्ट बेमानी नहीं हो जाता| आज उसी कांसेप्ट ने अपना ऐसा तेज दिखाया कि लगभग मरणास्सन पहुँच चुका किसान आंदोलन रातों-रात जिन्दा हो आया, वह भी दोगुनी ताकत-तेज व् प्रभाव के साथ| ऐसी आभा से उभरा की आलोचकों की आखें चकाचौंध हैं| परिणाम चाहे जो होवे परन्तु आलोचकों की जुबान शब्दहीन हो गई हों जैसे; ऐसी आभा उभरी इस आंदोलन की सर्वखाप के साथ में उठ खड़ा होने से|
एक दूसरा पहलु जिसको ले कर मेरे दोस्तों में मेरे बारे इसी तरह का रवैया रहता आया है, वह है आर्य-समाज| मेरे को अक्सर सुनने को मिलता रहा कि यह आर्य-समाज व् खापों को छोड़ दे तो हम बहुत आगे बढ़ जाएँ| वह कितना आगे बढ़े इसकी हालत वह भी जानते हैं और उनके अगल-बगल वाले भी| मैं आज भी कहता हूँ कि सिस्टम्स रोज-रोज खड़े नहीं होते| तुम-हम या हमारे पुरखे यहाँ सिस्टम्स बना के फंडियों को देने/परोसने हेतु मात्र को नहीं हैं या थे| कोई नया सिस्टम खड़ा करना या ट्राई करना जितना जरूरी है उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने पुरखों के खड़े किये सिस्टम्स से कमियां दूर करके उनकी निरंतरता व् उन पर अपना कब्जा बनाए रखना| और आज वह कब्जा हमारा आर्य-समाज से उठता जा रहा है| दर्जनों-सैंकड़ों लेख हैं मेरे इस बात पर कि किसका क्या कब्जा होता जा रहा है आर्य समाज के कांसेप्ट से ले इसकी प्रॉपर्टीज पर, जमीनों पर| इस पर भी लेख हैं कि आर्य-समाज में क्या कमियां जानबूझकर छोड़ी गई व् क्या अनजाने में छोड़ी गई|
और ऐसा नहीं है कि खापों के प्रति मेरे लगाव ने मुझे कुछ दिया नहीं| फ्रांस में बैठे हुए को भी जितना ओब्लाइज खाप चौधरी करते हैं मुझे, मैं उसको देखते हुए, उनका कृतज्ञ भी हूँ और उनसे मिलने वाले आदर-मान, आशीष-आशीर्वाद से अभिभूत भी| बस जरूरत है तो अपने इन बुजृगों से निस्वार्थ व् विश्वास के निहित व्यवहार व् आचार की| इनको बावला मान के इनसे डील करने जाते हो तो यह चुटकियों में पकड़ लेते हैं कि छोरा कौनसी खूंट में बोल रहा; परन्तु व्यापक सामाजिक सरोकार से जाते हो तो यह आपको, आपके आईडिया को अंगीकार करने में पलक झपकने जितनी भी देरी नहीं लगाते| और यह मैं इनके साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता रहा हूँ|
अब आईये, इस किसान आंदोलन के बाद; आर्य-समाज को संसोधित करवाने का अभियान चलाएं| इनमें जो मूर्ती-पूजक घुस आये हैं उनको निकाल बाहर करें व् जिन दादा नगर खेड़ों के मूर्ती-पूजा रहित कांसेप्ट के आधार पर आर्यसमाज टिका है उसको वापिस लावें| और अबकी बार संस्कृत के साथ-साथ एरिया मुताबिक अपनी मातृभाषा हरयाणवी व् पंजाबी में इसको लावें| हम जल्द ही आर्यसमाज संवाद समिति बनाएंगे, जो हर एक गुरुकुल में सम्पर्क साधेगी व् इनमें घुस चुके फंडियों को इनसे कैसे बाहर किया जाए इस पर मंत्रणाएं शुरू करेगी| मंत्रणा करेगी कि आर्य-समाज वर्जन 2 का नाम यही हो या कुछ और| मंत्रणा करेगी कि दादा नगर खेड़ों को आर्य-समाज से दूर किस षड्यंत्र के तहत रखा गया, जबकि दोनों मूर्ती-पूजा रहित आध्यात्म के कांसेप्ट हैं| मंत्रणा होगी कि सत्यार्थ प्रकाश के 11वें व् 12वें सम्मुलासों में जिस माइथोलॉजी को प्रतिबंधित किया गया वह दिनप्रतिदिन कैसे इन्हीं गुरुकुलों के जरिए समाज में उतारी जा रही है|
आदि-आदि!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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