Wednesday, 10 March 2021

हरयाणा समेत तमाम इंडिया के लोगों की साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग करता "हरयाणा विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव" गिरना!

बीजेपी की स्टेट-सेण्टर में सरकार होते हुए बीजेपी मना कर देती तो इस अविश्वास प्रस्ताव पर विधानसभा में ना डिबेट होनी थी ना वोटिंग लेकिन जैसे इन पर देश की जनता को ट्रेंड करने का भूत सवार हो, जनता में 99% को पता था कि यह प्रस्ताव गिरेगा ही गिरेगा फिर भी होने दिया| इसके 3 मायने मुख्यत: निकाले जा सकते हैं:

1) ताऊ देवीलाल परिवार की राजनीति को भविष्य के लिए समूल दफन करने की बीजेपी-आरएसएस की इस खानदान से खानदानी दुश्मनी की साजिस को क्रियान्वित करना : विधानसभा में उन ताऊ देवीलाल तक को नेचुरल जनसंघी बोल दिया (उन्हीं के पड़पोते ने) जिनकी राजनीति का टैग ही "लुटेरा बनाम कमेरा" होता था| क्या इनको आभास हुआ कि यह क्या कर बैठे कल? इतनी अपरिपक्वता का ब्यान कि पुरखे की लिगेसी भी खाते दिखे कल? राजनीति में अलायन्स करना गलती कही जा सकती है, नासमझी कही जा सकती है परन्तु राष्ट्रीय ताऊ जैसी हस्ती को पूर्णत: संघी बता देना; ना सिर्फ इनकी किसान राजनीति पर सवाल लगा गया वरन कुछ दिनों-महीनों तक तो लोग ताऊ के दूसरे पोते को जिसने किसानों के पक्ष में विधायकी छोड़ दी, उन तक को संदेह के घेरे में खड़ा करवाएगा| मैं इस परिवार में सबसे ज्यादा चौधरी ओमप्रकाश चौटाला का फैन रहा हूँ क्योंकि 1999 से 2004 के इनेलो राज में ताऊ के साथ 1990-91 में बीजेपी व् संघ ने जो किया था, अपने बाप के उस अपमान का सूद समेत बदला किसी ने लिया था तो इस शेर ने लिया था; फिर चाहे वह मोदी को उस वक्त उसकी औकात दिखाना था या रामबिलास शर्मा समेत सारी बीजेपी-संघ को खुड्डे लाइन लगाना था| मैं कदाचित भी बड़े चौटाला जी के लिए उदास नहीं हूँ क्योंकि उनके साथ बदले में यह होना स्वाभाविक था| परन्तु जैसे उन्होंने ग्रीन-ब्रिगेड बना अपने बाप के लिए बीजेपी-आरएसएस खुड्डे लाइन लगाई थी ऐसे ही जिम्मेदारी बड़े चौटाला जी के बेटे-पोतों की बनती थी कि 1990-91 का बदला तुम्हारे बाप-दादा ने 1999-2004 में लिया तो बीजेपी-आरएसएस पलटवार करेगी, उसकी तैयारी रखो; परन्तु यह तो कुछ और ही तैयारी खा गए| अब चौधरी अभय चौटाला व् इनके लड़के तो बेशक कुछ इस खानदान की पॉलिटिक्स को बचा लें; उसके लिए भी अगर यह बड़े चौटाला साहब की तरह वापिस "ग्रीन ब्रिगेड" को खड़ा कर पाए तो| इनफैक्ट इनको अपना पुराना कैडर तैयार कर, इस ब्रिगेड को फिर से खड़ा करने की तैयारी अभी से करनी होगी, आरएसएस की शाखाओं को मुंह-चिढ़ाती इनेलो के ग्रीन-ब्रिगेड ट्रेनिंग के कैडर कैम्प्स अभी से लगाने शुरू करने होंगे जो ताऊ देवीलाल वाले कमेरे शब्द में आने वाले लोगों से बने हों अन्यथा वही 1-2 सीट से ज्यादा कुछ नहीं मिलना| यही तो प्रॉब्लम व् डिसकनेक्ट है जो हमारे लोग समझते नहीं कि ग्रीन-ब्रिगेड की KINSHIP carry-forward क्यों नहीं की गई? इस लेख के लेखक जैसे लोग आजकल इसी KINSHIP शब्द पर फोकस्ड हैं अपने साथियों के साथ| इनेलो भी जितना जल्दी इसको संभाल ले, उतना दुरुस्त|
2) 6 महीने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की सरदर्दी से पीछा छुड़वाना: बस बीजेपी अपने को सिर्फ इतना ही सिक्योर कर पाई है|
3) कांग्रेस को नीचे दिखाना: बीजेपी खुश हो सकती है कि उसने कांग्रेस की नहीं चलने दी, परन्तु चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी पॉलिटिक्स में कल मुझे महाराजा सूरजमल की प्रति-कॉपी के रूप में विधानसभा में दिखे, वही महाराजा सूरजमल जिनकी विलक्षण बुद्धि ने बिना लड़े ही एक तरफ अब्दाली को कंपाया तो दूसरी तरफ पुणे के पेशवाओं की हेकड़ी निकाली| 1980 के अड़गड़े से बॉलीवुड सिनेमा के जरिये जिस तरीके की 4th grade पॉलिटिक्स जनता को परोस जनता का दिमाग उसी तरह का बनाने की कवायद चल रही थी, कल वह पॉलिटिक्स "सांप की केंचुली" की भांति जनता के आगे नंगी होती दिखी| और यह इस स्तर तक नंगी हो गई है कि हरयाणा के लोग तो खासकर अब "जमना पार", "मर जायेंगे परन्तु बीजेपी को साथ नहीं देंगे" जैसे, ऐसे-ऐसे शब्दों के सम्बोधनों से प्रभावित होने वाले नहीं| मतलब साफ है नेताओं को अपने भाषण व् नियत दोनों अपडेट करने होंगे| किसान-मजदूरों के नेताओं को भी वही कमिटमेंट व् साफ़ नियतें दिखानी होंगी जैसे अभी उत्तराखंड में एक वर्ग विशेष के नाराज होने से उनकी पार्टी ने वहां सीएम ही बदल दिया| जनता व् नेताओं को इस नयी लाइन की पॉलिटिक्स पर डालने हेतु हुड्डा साहब का नाम इतिहास में दर्ज हो गया| वैसे छोटे-मोटे आरोप-प्रत्यारोप छोड़ दिए जाएँ तो चौधरी बंसीलाल के बाद हरयाणा को असली में तरक्की की राह कोई ले कर गया तो वह चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही ले कर गए| कोई रोता-पीटता या वर्ण-जाति के मोह-द्वेष में पड़ के हुड्डा साहब बारे जो बड़बड़ाता रहे परन्तु तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो उनके शासनकाल को स्वच्छतम शासनकालों में लोग आज भी याद करते हैं| हरयाणा के भविष्य की राजनीति की एक बड़ी सुबह की आहट कांग्रेस के ऐसे दिग्गज नेताओं के होते हुए इस दर से आती है| बस हुड्डा साहब को यह ध्यान रखना होगा कि फंडियों की emotional v spiritual कारगुजारियों में ना उलझ जाएँ कहीं|
इस प्रस्ताव के गिरने से बीजेपी को खुद क्या नुकसान हुआ अब थोड़ी इस पर बात हो जाए:
1) लोगों की वह सोच मिट गई होगी जिसके अनुसार वह यह आस लिए हुए रहें होंगे कि बीजेपी के भीतर कोई तो 2-4-5 MLA ऐसे होंगे जो वैसे ना सही परन्तु किसान-मजदूर पृष्ठभूमि का होते हुए ही साढ़े तीन महीनों से दिल्ली बॉर्डर्स पर आंदोलनरत किसान-मजदूर के दर्द-पीड़ा-तप को समझेंगे व् पार्टी से बगावत करते हुए उनके पक्ष में वोट करेंगे|
2) "बीजेपी सिर्फ सर छोटूराम वाली बात वाली फंडियों की पार्टी है" पहले यह बात पुरखे कहते-बताते व् इनसे दूर रहने के रूप में बरतते भी थे, कल उन्हीं पुरखों की नई पीढ़ी ने यह बात ऑफिसियल तौर पर साबित होती देखी| किसान-मजदूर की युवा पीढ़ियों को यह फ्री की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देने के लिए बीजेपी का साधुवाद|
3) आरएसएस का किसान-मजदूर प्रेमी चेहरा भी ऑफिशियली बेनकाब हो गया अन्यथा आरएसएस ही रुकवा देती इनको इस प्रस्ताव को लाने से ही| लगता है या तो बीजेपी की तरह यह भी ओवरकॉन्फिडेन्स में हैं अन्यथा इनको यह नहीं पता कि यह किसान आंदोलन इंसान नहीं अपितु प्रकृति-परमात्मा-पुरखे तीनों मिलके चला रहे हैं; इसलिए इस वक्त में यह दांव तुम्हें भारी साइकोलॉजिकल नुकसान दे के जाएगा इसलिए इसको ना होने दिया जाए|
चलिए अब इनको पैक कर देते हैं| कोई और आउटपुट आपको लगा हो तो जरूर बताएं-बतलाएं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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