Friday, 12 March 2021

आलोचना करने वालों को तो बस आलोचना से मतलब होता है, हालात से नहीं!

आज जो यह कह रहे हैं कि अजी जब पता था कि, "किसान आंदोलन के समर्थन में अविश्वास प्रस्ताव गिरेगा तो कांग्रेस लाई ही क्यों"? खुद ही जवाब भी दिए दे रहे हैं कि, "भाजपा को अगले 6 महीने के लिए सुरक्षित जो करना था"|

और अगर इसी विधानसभा सत्र में यह प्रस्ताव नहीं लाया गया होता तो इन्हीं आलोचकों ने यह कह के आलोचना करनी थी कि, "जब पता था कि इस सत्र के बाद अगला सत्र 6 महीने बाद सितंबर में आएगा तो अभी अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका क्यों गंवाया? और इसका भी जवाब खुद ही दे रहे होते कि, "अजी, बीजेपी के हाथों जो बिके हुए हैं हरयाणा कांग्रेस के लीडर; सीबीआई के केसों से डर गए जी; हिम्मत ही नहीं पड़ी प्रस्ताव लाने की; कर दिया बीजेपी को अगले 6 महीने के लिए सुरक्षित, क्योंकि अगला विधानसभा सत्र अब 6 महीने बाद सितम्बर में आएगा; किसानों से, उनके दर्द से तो इनको कोई लेना देना ही नहीं जी"|
बताओ, हो सकता है ऐसे लोगों का कुछ? जबकि ऐसे लोग यह भी जानते हैं कि हरयाणा विधानसभा सत्र 6 महीने के अंतराल के बाद होते हैं; परन्तु जेजेपी, निर्दलीय, यहाँ तक कि बीजेपी के MLA चाहें तो वह आज की आज भी समर्थन वापिस ले, इस्तीफे दे किसानों के पक्ष में आन खड़े हो जावें; या नहीं हो सकते? अब दोनों तरह के आलोचक फ्रंट्स समझ लिए हों तो इसी सत्र में इस अविश्वास प्रस्ताव को लाने और इसके गिर जाने के फायदे भी देख लें?
फायदा 1) फ्री-फंड में किसानों के हितैषी जो बने घूम रहे थे, उनके नकाब 6 महीने बाद यानि सितंबर में उतरवाने की बजाए, अभी उतरवा दिए|
फायदा 2) 6 महीने और किसान इनके आगे-पीछे दुहाई देते, गुहार लगाते फिरते; वह आस, ऊर्जा बची और उसको फ्रेश स्ट्रेटेजी बनाने में लगा सकेंगे|
फायदा 3) हरयाणा में खासकर किसान आंदोलन भावनात्मक रूप से और मजबूत हुआ| जेजेपी, निर्दलीय समेत बीजेपी वाले भी और दोहरे निशाने पर आ गए| पिछले तीन दिन से प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक से ले सोशल मीडिया यही बोल रहा है ना कि किसान दोगुने और भड़क गए हैं, दोगुने और दृढ हो गए हैं, दोगुने और लामबंद हो गए हैं? तो इसका मतलब यह प्रस्ताव उनमें नई ऊर्जा व् आग भर गया, राइट?
फायदा 4) यह भी पता लग गया कि आरएसएस का बनाया तथाकथित "राष्ट्रीय किसान संघ" भी किसी काम का नहीं? मात्र मुखौटा है, जिसमें किसान के नाम पे बंधुआ बैठे हैं| वरना पूरे साढ़े तीन महीने तो यह कुछ बोला ही नहीं था, अब तो बोलता, बीजेपी पे दबाव डालता?
फायदा 5) हरयाणा कांग्रेस के शिखर के नेता में वो गट्स निकले कि दिन के दिन पहले वह सीबीआई कोर्ट से अपनी बेल करवाते हैं और उसी दिन विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव की अर्जी लगाते हैं| अब बताओ बीजेपी को विधानसभा सत्र के दौरान ही ऐन अविश्वास प्रस्ताव से पहले हुड्डा जी पर सीबीआई छोड़ने की क्या पड़ी थी; इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि बीजेपी नहीं चाहती थी कि अविश्वास प्रस्ताव आये?
फायदा 6) किसी बीजेपी-आरएसएस को यह बहम रहा हो कि दबाव डाल के भी किसी कांग्रेसी नेता को प्रयोग कर सकते हैं; तो उसी कांग्रेसी नेता ने कैसे उसी बीजेपी-आरएसएस को विधानसभा में नंगा किया; उनको भी समझ आ गया होगा? प्रस्ताव बेशक गिरा (जिसका पहले से पता ही था), परन्तु भरे बाजार ऑफिसियल व् साबित रूप से यूँ नंगे भी आज तक हुड्डा साहब के अलावा किसी ने नहीं किये ये, या किये?
फिर भी किसी को आलोचना की रट्ट ही लगाए रखनी है तो रखो| लेखक दावा नहीं रखता कि आज के दिन किसानों का सबसे बड़ा हितैषी कौन, परन्तु उनसे तो बड़े ही साबित हुए जिनके पड़पोतों ने खुद की तो छोडो अपने पड़दादा तक को विधानसभा में "नेचुरल संघी" ही बता दिया| इनको इतना भी भान नहीं रहा कि तुम संघ की चाटुकारिता में बोल क्या गए? और एक एंडी तो मुद्दा किसानों का और टेशन पकड़े मिला कश्मीर व् अयोध्या का? खटटर के मुंह से क्या-क्या नहीं उगलवाया, हुड्डा साहब व् कादयान जी की जोड़ी ने? गोयल तो देशद्रोही ही बोल गया?
विशेष: लेखक आज के हालात के हिसाब से लिखता है, भारतीय राजनीति है यह, जो ब्यांदड भैंस की तरह आज इस करवट बैठ के उक्मती होती है तो कल उस करवट; सो आज की लिखी, कल की यह राजनीति रुपी रोज-रोज उक्मती भैंस जाने|
फूल मलिक

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