राजनैतिक तौर की बजाए धार्मिक थ्योरियों व् सोशल इंजीनियरिंग मॉडल्स के हिसाब से जब तक समस्याएं पकड़नी शुरू नहीं की जाएंगी, राह नहीं मिलेंगी|
आप-हम एक ऐसे देश के वासी हैं जहाँ धर्म को जो "इस हाथ ले और उस हाथ दे" नीति से चलाते हैं, वही राज करते हैं| और जो ऊलंढों की तरह खालिस भावना के आधार पे सिर्फ "दे ही दे" के सिद्धांत पे धर्म पोषित करते हैं, वही 35 बनाम 1 से ले शुद्रपणा, नीचपणा सब झेलते हैं|
सीधे-सीधे समझ आती हो तो सीधे समझ लो, नहीं तो लुट-पिट-छित के समझोगे परन्तु तब तक इतनी देर हो चुकी होगी कि बंधुआ बने रहने में ही भलाई समझोगे| और उस वक्त तक मानसिक तौर पर इतने टूट चुके होंगे कि पछताने को भी अपनी तौहीन समझोगे|
इंडिया में दो तरीके के धर्म व् सोशल इंजीनियरिंग हैं:
एक जो कोरी सामंती विचारधारा पोषित करते हैं: फंडी पोषित तमाम धार्मिक व् सोशल इंजीनियरिंग मॉडल्स|
एक जो उदारवादी विचारधारा पोषित करते हैं: सिख, बुद्ध, ईसाई, इस्लाम, दादा नगर खेड़ा/भैया/भूमिया/जठेरा आध्यात्म (जिसके मूल-सिद्धांत मूर्तिपूजा नहीं करने पर आर्य-समाज स्थापित है) व् सर्वखाप सोशल इंजीनियरिंग सिस्टम|
अब लगा लो अंदाजा, किसान आंदोलन के इतने पीक पर होने पर भी, किसान आंदोलन के चोटी के नेताओं में एक चौधरी युद्धवीर सिंह जी को जिस राज्य में गिरफ्तार किया गया है; वहां सामंती प्रभाव ज्यादा हैैं या उदारवादी?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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