Saturday, 27 March 2021

हमारा कल्चर नहीं कि हम किसी लुगाई को आग में जला के उसके इर्दगिर्द "झींगा ला-ला हुर्र-हुर्र" करें!

फिर भले वह लुगाई अच्छी थी या बुरी थी| अगर वह हकीकत में थी भी तो आप कौन होते हो उसको आए साल जलाने वाले? मर ली, मरा ली; हो ली, जा ली| जंगली-वहशी हो आप जो ऐसे करते हो?

होळ-होळा-फाग मनाइए, किसी लुगाई को जला के नहीं अपितु आपके पुरखों (उदारवादी जमींदार) की भांति आपके खेतों में पकने को आई चणे की फसल के कच्चे दानों को आग में भून के बनने वाले "होळ" खा के, रंग-गुलाल-मिटटी-गारा (कीचड़ नहीं) लगा के; भाभियों संग फाग खेल के|

खामखा, देखो फंडियों की कुबुद्धि व् आपकी गैर-जिम्मेदारी ने एक अच्छे-खासे त्यौहार का क्या कुरूप बना दिया है| कहाँ पुरखे आग में होळ भून के खाते थे और कहाँ आप लुगाई भूनने लगे? तीज-त्यौहार-मान-मान्यता के नाम पर इससे पहले कि बिल्कुल ही वहशी जानवर बना दिए जाओ या बन जाओ; सम्भालो अपने पुरखों के तर्क व् मानवता से भरी "Kinship" को|

बताओ जिनकी खाप पंचायतों ने आज तक किसी को हत्या की सजा नहीं सुनाई; उनकी औलादें औरतों को आग में जलाने को त्यौहार मान बैठी हैं| Have self-check!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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