Wednesday, 3 March 2021

ये जो थारे खंडकों और डोगे वाले चौधरी थे ना, फद्दू नहीं थे वो!

कभी भैंस को कुरड़ियों पे या कचरे के ढेरों पर कचरा खाते देखा है? गाय को देखा है ना? - जिस दिन फंडियों की मान गाय में माता की जगह सिर्फ जानवर देखना शुरू कर दोगे, उस दिन गाय की भी भैंस जैसी स्थिति होगी|

कभी खापलैंड पर आज तक कोई दलित-ओबीसी की औरत किसी धर्मस्थल में देवदासी बना पब्लिक के संज्ञान में होते हुए पंडों द्वारा उसका सामूहिक देह-भोग लगते देखा है या पढ़ा हो कभी? जबकि साउथ-ईस्ट इंडिया में जाओ हजारों में मिलती हैं| - क्यों? क्योंकि वहां के लोग अपनी औरतों को औरत की बजाए देवी कहलवाने में बोर मानने लगे| और देवी से देवदासी बनाना पंडों का देवी के आगे का टारगेट होता ही है|
ये जो थारे खंडकों और डोगे वाले चौधरी थे ना, फद्दू नहीं थे वो| इन फंडियों को खोद पे रखते थे क्योंकि इनकी औकात जानते थे| जानते थे कि इनके दिमाग में कोई धर्म नहीं, वीर्य व् वासना रहती है| सम्भल जाओ वक्त रहते| कुछ नहीं धरा अपनी औरतों को देवी बनाने में, यह कौर कही हैं हमारे पुरखों ने; इनको कौर ही रख लोग तो बड़ी शाबाशी मानना| हांडो बंधुआ मजदूर बने फंडियों के; और गाम वालों से भी दो चंदे अगा के शहरी पढ़े-लिखे मूर्ख हांडै सैं|
इनका रत्ती भर भी धर्म व् मानवता से कोई लाग्गा-देग्गा होता तो सिखों व् मुस्लिमों के गुरुद्वारों व् मस्जिदों की तरह किसानों के धरना स्थलों पर लंगर चल रहे होते इनकी तरफ से| यह प्रैक्टिकल सच्चाई देख के ही ठिठक जाओ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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